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भारत

बहादुरी में बेजोड़ होने के बावजूद टीपू सुल्तान को हिंदुस्तान में वह जगह नहीं मिली जो राणा प्रताप और लक्ष्मी बाई को दी जाती है

राणा प्रताप के ग्रैंडफादर ने बाबर को दिल्ली पर हमला करने के लिए आमंत्रित किया था जिससे इब्राहिम लोदी को निपटाया जा सके और राणा प्रताप का लड़का बाद में जहांगीर की शरण में चला गया।

रानी लक्ष्मीबाई की झांसी पहले से एक अर्द्ध-गुलाम राज्य था जो सहायक संधि के तहत अंग्रेजों के मातहत था .1857 के सिपाही विद्रोह के समय उन्होंने बकायदा अंग्रेजों से पत्राचार किया कि यदि आप मेरे राज्य के अधिग्रहण का विचार छोड़ दें तो हम विद्रोहियों का साथ नहीं देंगे।

राणा ने हल्दीघाटी की लड़ाई हारने के बाद जंगल में शरण ली, रानी पीछा करते हुए अंग्रेजों द्वारा मारी गई उन्हें अंग्रेज सलामी दी कहा कि विद्रोहियों में सबसे बहादुर यह महिला थी।

टीपू किले की सुरक्षा में एक सिपाही की तरह लड़ता हुआ मारा गया. लाशों के बीच उसकी लाश दब गई .खबर उड़ी कि टीपू भाग गया. लाशों के बीच से उसे खोजा गया.
ब्रिटिश टुकड़ी ने सलामी दी, विगुल बजाए।

विलेजली ने उसके हाथ की अंगूठी निकाल ली, मरते समय उसके हाथ में तलवार थी वह तलवार ब्रिटिश म्यूजियम में सुरक्षित है इस पर सीरियल बने किताबें लिखी गई…. “the sword of tipu sultan”.

टीपू ने कहा था कि “कुत्ते की 100 साल की जिंदगी से 2 दिन शेर की जिंदगी बेहतर है”.

इन वीरों की बहादुरी को सलाम है परंतु हम एक राष्ट्र के रूप में अंग्रेजों से संघर्ष करके इकट्ठे हुए हैं और अंग्रेजों को कड़ी टक्कर केवल टीपू सुल्तान ने दी थी, हमारा सांप्रदायिक माइंडसेट टीपू के मुसलमान होने के कारण उन्हें वह महत्व नहीं देता जिसका वे हकदार है. …….वरना हम हिंदुस्तानी, हर चौराहे को टीपू सुल्तान की स्टेचू से पाट देते।

(साभार: जे पी शुक्ला जी फेसबुक वॉल से)

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