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सम्पादकीय

मुस्लिम बहुल सीट पर यादव/पांडेय जी को उम्मीदवार बनाना समाजवादी पार्टी का कौन सा मुस्लिम-यादव समीकरण है?

उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर ज़िले में पांच विधानसभा सीटें हैं। पिछले विधानसभा इलेक्शन में पांचों सीटों पर भाजपा के उम्मीदवार जीते थे। या यूं कहें कि बहुसंख्यक की आंधी में सिद्धार्थनगर का सेक्युलरिज़्म रेज़ा-रेज़ा हो गया था।

सिद्धार्थनगर ज़िले में तक़रीबन 31 फ़ीसद मुस्लिम आबादी है। ज़िले की पांच विधानसभा सीटों में सबसे अधिक मुस्लिम डुमरियागंज और इटवा विधानसभा में हैं। डुमरियागंज में तक़रीबन 38 फ़ीसद और इटवा में तक़रीबन 37 फ़ीसद मुस्लिम आबादी है। बावजूद इसके समाजवादी पार्टी ने पिछले असेंबली इलेक्शन में एक सीट से भी किसी मुसलमान को उम्मीदवार नहीं बनाया था।

फिर वही हुआ कि ज़िले का मुसलमान तो सेक्युलरिज़्म बचाने की ख़ातिर वही किया जो 65 सालों से करता आ रहा है लेकिन हिन्दू राष्ट्र और मुस्लिम मुक्त भारत बनाने का ख़्वाब जो मोदी जी ने दिखाया था उस ख़्वाब ने अक्सरियत के दिल पर कमल के फूल का मुहर लगा दिया था। और पांचों सीट पर भाजपा ने प्रचंड जीत हासिल किया।

अब आप समाजवादी पार्टी का मुस्लिम-यादव समीकरण देखिये। ज़िले की जिस विधानसभा सीट (डुमरियागंज) पर सबसे अधिक मुस्लिम हैं उस सीट से ‘यादव’ को उम्मीदवार बनाती है और जिस दूसरी विधानसभा सीट (इटवा) पर दूसरे नम्बर पर मुस्लिम आबादी ज़्यादा है उस सीट से ‘माता प्रसाद पांडेय’ को उम्मीदवार बनाती है। मतलब आप ही बताइए जिन सीटों पर सबसे अधिक मुस्लिम वोटर्स हैं उन सीटों से यादव/पांडेय जी को उम्मीदवार बनाना समाजवादी पार्टी का कौन सा मुस्लिम-यादव समीकरण है?

माने मुसलमान तुम्हें जीताने का ठेका लिया है क्या? मुसलमान सिर्फ़ वोट देगा? ये सवाल सिर्फ़ असदउद्दीन ओवैसी को नहीं बल्कि हर मुसलमान को करनी चाहिए।

सिद्धार्थनगर नगर सदर सीट (आरक्षित) पर तक़रीबन 27 फ़ीसद मुस्लिम आबादी है। शोहरतगढ़ विधानसभा सीट पर तक़रीबन 27 फ़ीसद और बांसी विधानसभा सीट पर तक़रीबन 21 फ़ीसद मुस्लिम आबादी हैं।

इन 5 सीटों में दो पर ही सबसे अधिक 37 फ़ीसद के क़रीब मुस्लिम आबादी है। भाई जब तुम उन सीटों पर मुसलमानों को उम्मीदवार नहीं बनाओगे जिन सीटों पर 37 फ़ीसद मुस्लिम आबादी है तो फिर मुसलमान कहाँ जाएगा इलेक्शन लड़ने? तुर्की?

फिर ओवैसी यही बोलता है तो कहते हो- ओवैसी की सियासत से बहुत नुक़सान होगा। दिस, दैट, व्हाट! अरे भाई बाक़ी क्या है जो नुक़सान होगा? होने दीजिए जो हो रहा है थोड़ा सह लेंगे।

(यह लेखक के अपने विचार हैं लेखक शाहनवाज अंसारी सोशल एक्टिविस्ट हैं)

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