गुजरात के बेट द्वारका और आसपास के द्वीपों में सरकार द्वारा बड़े स्तर पर विध्वंस अभियान चलाए जाने से क्षेत्र में विवाद की स्थिति बन गई है। इस विध्वंस अभियान में सरकार द्वारा मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने और संवैधानिक और कानूनी दिशा निर्देशों का उल्लंघन करने पर APCR ने गहरी चिंता जताई है।
इंडिया टुमारो की रिपोर्ट के मुताबिक़, ज़िला प्रशासन, वन विभाग और पुलिस ने 73 करोड़ रुपये मूल्य की 1.27 लाख वर्ग मीटर से अधिक भूमि पर स्थित घरों, मस्जिदों और मंदिरों सहित 525 संरचनाएं नष्ट कर दी। इसके साथ ही स्थानीय प्राथमिक विद्यालय को भी बंद कर दिया गया जिसके कारण वहां पढ़ने वाले 400 से अधिक बच्चें शिक्षा से भी वंचित हो गए।
एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (APCR) ने इस मामले पर एक फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट तैयार की है। जिसमें मुख्य रूप से मुसलमानों के खिलाफ अन्याय और भेदभाव को उजागर किया गया है, जो विध्वंस की कार्रवाई के नतीजे में अपने घरों के साथ-साथ साधनों से भी वंचित हो चुके हैं।
ये पीड़ित मुसलमान न सिर्फ अपनी आजीविका खो चुके हैं बल्कि अब भय और सदमे का भी सामना कर रहे हैं।
एपीसीआर गुजरात के अध्यक्ष शमशाद ख़ान पठान के अलावा, सामाजिक कार्यकर्ता शीबा जॉर्ज, सांस्कृतिक कार्यकर्ता सरूप ध्रुव, पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज के राष्ट्रीय सचिव प्रसाद चाको, वकील हुज़ैफ़ा उज्जैनी और एपीसीआर की गुजरात इकाई के सचिव इकराम मिर्ज़ा, इस फैक्ट फाइंडिंग टीम के सदस्य थे।
फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट के अनुसार, विध्वंस अभियान एक प्रताड़ित करने वाली कार्रवाई थी और इसका उद्देश्य नियमों का पालन करने के बहाने मुसलमानों को परेशान करना था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि “इस तरह की कार्रवाइयां और नीतियां न केवल संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन करती हैं बल्कि एक लोकतांत्रिक राज्य के विचार के भी खिलाफ हैं। कानूनी नियम कायदे कहते हैं कि सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए और उनके अधिकारों का सम्मान किया जाना चाहिए।
बुलडोज़र कार्रवाईयां यह संदेश देती है कि शासन पूरी तरह से सत्ता के अनुसार चलता है, और कोई कानून-व्यवस्था नहीं है. रिपोर्ट के मुताबिक़, द्वारका में नष्ट किये गये लगभग 90% घर मुसलमानों के थे।