देश में UAPA (गैरकानूनी गतिविधि निवारण अधिनियम) के तहत गिरफ़्तारियों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, लेकिन सज़ाओं का प्रतिशत बहुत कम बना हुआ है। यह जानकारी केंद्र सरकार ने मंगलवार को लोकसभा में दी।
गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बताया कि वर्ष 2023 में UAPA के तहत 2,914 लोगों को गिरफ़्तार किया गया, जबकि सिर्फ 118 लोगों को ही दोषी ठहराया गया। यह आंकड़े राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) द्वारा संकलित रिपोर्ट पर आधारित हैं।
2019 से 2023 के बीच कुल 10,440 लोगों को UAPA के तहत गिरफ़्तार किया गया, लेकिन सिर्फ 335 लोगों को सज़ा मिली — यानी केवल 3.2% की सज़ा दर।
यह जानकारी कांग्रेस सांसद शफी परंबिल द्वारा पूछे गए सवाल के लिखित जवाब में दी गई। सांसद ने UAPA के तहत बीते पाँच वर्षों में राज्यवार गिरफ़्तारियों, सज़ाओं और जेल में बंद कैदियों का विवरण मांगा था।
राय ने कहा कि जांच और पुलिसिंग राज्य सरकारों के अधीन है और केंद्र, NCRB की वार्षिक रिपोर्ट के आधार पर ही राष्ट्रीय आंकड़े संकलित करता है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि UAPA के तहत वर्तमान में जेलों में बंद लोगों का अलग से डेटा NCRB नहीं रखती।
2023 में सबसे अधिक गिरफ़्तारी उत्तर प्रदेश से दर्ज की गई, जहाँ 1,122 लोग UAPA में पकड़े गए। इसके बाद जम्मू-कश्मीर में 1,206 गिरफ़्तारियाँ दर्ज हुईं।
कुछ राज्यों — जैसे गोवा, हिमाचल प्रदेश, मिज़ोरम और सिक्किम — में 2019 से 2023 के बीच UAPA में एक भी गिरफ़्तारी दर्ज नहीं की गई।
कई राज्यों में बड़ी संख्या में गिरफ़्तारी के बावजूद एक भी सज़ा नहीं हुई। दिल्ली में 2023 में 24 लोगों को सज़ा मिली, जबकि यूपी में यह संख्या 75 रही।
2021- 1,621
2022- 2,636
2023- 2,914
आंकड़ों से स्पष्ट है कि गिरफ़्तारियों में हर साल तेज़ी से इज़ाफा हुआ है। UAPA को भारत का प्रमुख आतंक-रोधी कानून माना जाता है, लेकिन मानवाधिकार समूह इस कानून की कड़ी ज़मानत शर्तों और अस्पष्ट परिभाषाओं की आलोचना करते रहे हैं। उनका आरोप है कि कानून का राजनीतिक और मनमाने तरीके से इस्तेमाल बढ़ रहा है।
सरकार का कहना है कि यह क़ानून राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

