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क़ानून सबके लिए बराबर है, यह वाक्य पढ़ने और सुनने में बहुत अच्छा लगता है: वसीम अकरम त्यागी

मुफ़्ती सलमान अज़हरी! 38 वर्षीय इस इस्लामिक स्काॅलर ने किसी धर्म संप्रदाय के ख़िलाफ कोई भड़काऊ टिप्पणी नहीं की थी। फिर भी उनके द्वारा पढ़े गए शेर को दूसरे संप्रदाय से जोड़ दिया गया, उन पर तमाम तरह के गंभीर मुकदमे लगाए गए।

आज दस महीने बाद सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया के आदेश पर मुफ़्ती सलमान अज़हरी को रिहा किया गया है। उन पर गुजरात सरकार ने असामाजिक गतिविधियों की रोकथाम एक्ट (PASA) के तहत कार्रावाई की थी। चूंकि मुफ़्ती सलमान अज़हरी ऐसे संप्रदाय से ताअल्लुक रखते हैं जिसके खिलाफ़ बयानबाजी करके सत्ता शिखर तक पहुंचना फैशन बन गया है। इसलिए मुफ़्ती सलमान को दस महीनों तक जेल में रखा गया।

अब दूसरी ओर देखिए! भाजपा और उसके अनुषांगिक संगठनों के लोगों द्वारा मुसलमानों के ख़िलाफ आए दिन हेट स्पीच की जाती है, हद तो यह है कि पैग़ंबर साहब के ख़िलाफ अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल कर मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं को रौंदा जाता है लेकिन मंजाल भला कि भारतीय पुलिस ऐसा करने वालों को गिरफ्तार कर सके। क़ानून सबके लिए बराबर यह वाक्य पढ़ने और सुनने में बहुत अच्छा लगता है।

जब बात मुसलमानों की आती है तब समान न्याय सहिंता का असमान न्याय चरित्र मुसलमानों को ‘संदेश’ देता है कि विश्व के सबसे ‘बड़े’ लोकतंत्र में उनके लिए अलग से अघोषित न्याय सहिंता है।

असमानता भेदभाव का यह खुल्लम खुल्ला प्रदर्शन अगर भारतीय नागरिकों, बुद्धिजीवियों, पत्रकारों को ‘परेशान’ नहीं कर रहा है तो उन्हें स्वीकार कर लेना चाहिए कि वो इस देश में मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक देखना चाहते हैं।

(यह लेखक के अपने विचार है लेकर वरिष्ठ पत्रकार है)

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