कलकत्ता हाईकोर्ट ने आज एक अहम फैसले में FRRO (दिल्ली) के हिरासत और डिपोर्टेशन आदेश को अवैध ठहराते हुए छह लोगों, जिनमें बीरभूम की एक गर्भवती महिला भी शामिल है, की तत्काल रिहाई और पुनर्वास का आदेश दिया। इन लोगों को “बांग्लादेशी प्रवासी” करार देकर देश से बाहर कर दिया गया था।
अदालत के इस फैसले ने बंगालियों को निशाना बनाकर की जा रही कथित “व्यवस्थित उत्पीड़न मुहिम” की पोल खोल दी है।
TMC सांसद अभिषेक बनर्जी के मुताबिक़, इस पूरे मामले को लेकर बंगाल विरोधी ताक़तों पर ज़मीनदार मानसिकता से राजनीति करने और ज़ेनोफोबिया (विदेशी विरोध) फैलाने का आरोप लगाया गया है।
संबंधित पक्षों ने कहा है कि जिम्मेदार लोगों को अदालत, जनचर्चा और चुनावी मैदान—हर जगह जवाबदेह ठहराया जाएगा।
उनका कहना है कि बंगाल की जनता अपमान, भय और बहिष्कार की राजनीति बर्दाश्त नहीं करेगी।
2026 के विधानसभा चुनाव की ओर इशारा करते हुए राजनीतिक हलकों का कहना है कि डर और उत्पीड़न की राजनीति करने वालों को जनता करारा जवाब देगी।
फिलहाल अदालत के इस आदेश ने प्रभावित परिवारों को राहत दी है और इसे बंगाल की अस्मिता और हक़ की रक्षा की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।