भारत का 12 जून 2025 को संयुक्त राष्ट्र में गाजा युद्धविराम पर मतदान से दूर रहना एक चौंका देने वाली नैतिक कायरतापूर्ण कृत्य है।
यह हमारी उपनिवेशवाद विरोधी विरासत और स्वतंत्रता संग्राम के मूल्यों के साथ शर्मनाक विश्वासघात है। कभी भारत ने फिलिस्तीन के लिए मजबूती से खड़ा होकर इतिहास रचा था – 1974 में फिलिस्तीन मुक्ति संगठन (PLO) को मान्यता देने वाला पहला गैर-अरब देश बना, 1983 में नई दिल्ली में आयोजित 7वें गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) शिखर सम्मेलन में यासिर अराफात को आमंत्रित किया और 1988 में औपचारिक रूप से फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता दी।
हमने न्याय के लिए रणनीति के तौर पर नहीं, बल्कि सिद्धांत के तौर पर खड़े होने का चुनाव किया था। लेकिन आज, वह गौरवशाली विरासत मलबे में तब्दील हो चुकी है।
आज भारत तेल अवीव के आगे झुक गया है, उन सिद्धांतों को छोड़कर, जिन्होंने कभी हमें दुनिया की नैतिक मूल्यों का दिशा देने वाला बनाया था।
दिसंबर 2024 में गाजा में स्थायी युद्धविराम के पक्ष में भारत के मतदान से भी ज्यादा डरपोक पलटी इस मतदान से दूर रहना है, जिससे यह साबित होता है कि मोदी सरकार को न तो कुछ याद है, न ही किसी चीज के लिए खड़ी होती है, और सिर्फ फोटो खिंचवाने के पीछे भागती है, चाहे उसमें खून से सने हाथ मिलाने पड़ें।
एक भाजपा सांसद का हाल ही में फिलिस्तीन के समर्थन में भारत की भूमिका का महिमामंडन और इस मतदान से दूर रहाना,, पाखंड की पराकाष्ठा और सरकार की दोहरी विदेश नीति के रूप में उजागर करता है।
एक ऐसी सरकार जो गाजा में बच्चों के जलाए जाने के बावजूद युद्धविराम के लिए वोट देने से डरती है, वह भारत या दुनिया को नैतिक दिशा और नेतृत्व देने के लायक नहीं है।
वैश्विक नेतृत्व चुप्पी और चापलूसी पर नहीं बनता। अगर हम चाहते हैं कि वैश्विक मंच पर हमारी आवाज़ मायने रखे, तो हमें सबसे जरूरी वक्त पर बोलने का साहस दिखाना होगा। हमारी ताकत हमेशा हमारी आवाज़ के नैतिक वजन से आई है। जब भारत विदेशों में निर्दोष जिंदगियों की रक्षा करने से इनकार करता है, तो हम वह नैतिक पूंजी गंवा देते हैं जो विदेशों में भारतीयों की रक्षा करती है।
जब इज़राइल पश्चिम एशिया को आग में झोंक रहा है – गाजा, वेस्ट बैंक, लेबनान, सीरिया, यमन और अब ईरान पर बमबारी कर रहा है – मोदी की मिलीभगत ने भारत की अंतरात्मा को छोड़ दिया है।
दुनिया सबसे ऊंची आवाज़ में बोलने वाले देश को नहीं सुनती, वह उस देश की सुनती है जो स्पष्टता, साहस और अंतरात्मा के साथ बोलता है। और भारत को कभी भी अपनी वह आवाज़ नहीं खोनी चाहिए।
(यह पोस्ट पवन खेड़ा के एक्स (ट्विटर) से ली गई है)