क्या ऐसा नहीं हो सकता कि जितने लोग अभी-अभी आंतरिक सुरक्षा के एक्सपर्ट निकल कर आए हैं वो मणिपुर पर भी उसी तरह रिपोर्ट करें ? ठीक वैसे जैसे वे IC 814 के समय किया करते थे,जब भारत रत्न वाजपेयी की सरकार ने आतंकवादियों को छोड़ा था। कम से कम उनके कौशल से पता तो चले कि मणिपुर में क्या हो रहा है, कहाँ चूक हो रही है और कौन ज़िम्मेदार है , मणिपुर भी तो आंतरिक सुरक्षा का मामला है।
अनुभव सिन्हा की वेब सीरीज़ के बहाने यह पता तो चला ही कि उसी पत्रकार को पहले कितना पता होता था। सरकार में क्या चल रहा है, आंतरिक सुरक्षा से जुड़े अफ़सरान क्यों कंफ्यूज हैं वग़ैरह वग़ैरह। क्या अब वे ऐसा कर सकते हैं? तो पुरानी के साथ साथ आज की भी ऐसी कोई रिपोर्ट ट्वीट कर देते।
कहाँ गई वो सब जानकारियाँ जो ऑफ रिकार्ड के रास्ते निकल कर आती थीं? जिनके सहारे सरकार के ऑन रिकार्ड को चैलेंज किया जाता था। आज तो जो हैंड आउट थमा दिया जाता है वही फ़ाइनल मान लिया जाता है। अब तो ऑफ रिकार्ड ही ऑन रिकार्ड है। ऑन रिकार्ड कुछ भी नहीं । अच्छी बात है कि वेब सीरीज़ देख कर यह सब याद आया है। सवाल यह है कि इसी अधिकार और निरंतरता से मणिपुर पर कब लिखेंगे, जब अनुभव सिन्हा कोई वेब सीरीज़ बनाएँगे?
भारत का थर्ड क्लास और गुलाम मुख्यधारा का गोदी मीडिया अपने आप को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए मौक़ा खोजता रहता है। वह अपनी स्मृतियों के सहारे पत्रकार होने की छवि और उससे मिलने वाले सम्मान को हासिल करना चाहता है। उसका वर्तमान खंडहर है और उसके हाथ स्याही की जगह ख़ून से रंगे हैं। एक दो अच्छे पत्रकार और एक दो अच्छी स्टोरी बस इसी के दम पर गाड़ी खींच रहा है। आज उनकी रिपोर्टिंग या संपादकीय का स्तर आप देख सकते हैं जो 25 साल पहले की यादों में तरबूज़ का जूस हो रहे हैं।
उन्हें ठीक से पता है कि उनके पास कौशल तो है मगर वैसी रिपोर्टिंग नहीं कर सकते। कितनी रिपोर्ट ऐसी आती है जो सरकार के भीतर से निकलती है ?
नेताओं के बयान पर ही खेल कर और दिल्ली में कुछ फ़ालतू लोगों के इंटरव्यू से इनके टीवी की शामें भरी जाती हैं। ये फ़ालतू लोग जिन्हें इंटरव्यू देने और डिबेट में जाने का रोग है , एक महीने के लिए शहर से चले जाएँ तो डिबेट की शाम भरभरा कर दोपहर की तरह जलने लगेगी। इस मीडिया का नाम इंटरव्यू उद्योग रख देना चाहिए ।
बहरहाल, अनुभव सिन्हा की वेब सीरीज़ IC814 ने इतना तो बता दिया कि ग़ुलामी के दस साल जीने के बाद भी गोदी मीडिया के पत्रकारों के भीतर पत्रकारिता की चाह है। उन्हें याद है कि सम्मान मोदी मोदी करने से नहीं , किसी अच्छी रिपोर्ट की याद से मिलता है।
मगर इसमें भी एक नौटंकी है।
नौटंकी यह है कि तीस साल पहले रिटायर हुए ख़ुफ़िया विभाग के प्रमुख का इंटरव्यू हो रहा है मगर मौजूदा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का नहीं हो रहा जो उसी समय से इस व्यवस्था का अंग हे। उनसे बेहतर कौन बता सकता है इन मामलों पर। IC814 और मणिपुर पर।
भारत का गोदी मीडिया लोकतंत्र का हत्यारा है।हर जगह लिखवा दें। पुरानी अच्छी रिपोर्ट का कोई मतलब नहीं है।