रणनीतिक रूप से भारत ने दरअसल पाकिस्तान में सेना और आतंकवादियों (गैर-राज्यीय तत्वों) के बीच के अंतर को ख़त्म करने के मामले में एक नया चरण शुरू किया है। इसके मायने हैं कि किसी भी आतंकवादी गतिविधि का जवाब सेना द्वारा सीधे हमलों से दिया जाएगा और इसलिए यह सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी पाकिस्तानी सेना पर है कि वह आतंकवादियों और गैर-राज्यीय तत्वों के पीछे ना छिपे।
पाकिस्तानी सेना बहुत लंबे समय से हथियारबंद गैर-राज्यीय तत्वों का इस्तेमाल हमारे [भू-राजनैतिक क्षेत्र को अस्थिर करने के लिए करती रही है और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर [आतंकवाद से] पीड़ित होने का दावा भी करती रही है। पाकिस्तानी सेना ने उन्हीं लोगों का इस्तेमाल – जिनमें से कुछ को ताज़ा [भारतीय] हमलों में निशाना बनाया गया था -पाकिस्तान में सांप्रदायिक तनाव को भड़काने के लिए भी किया है।
ऑपरेशन सिंदूर ने भारत-पाक संबंधों की सभी पुरानी धारणाओं को उथल दिया है [अब] आतंकवादी हमलों का जवाब सैन्य प्रतिक्रिया से दिया जाएगा और इस तरह दोनों [पाकिस्तानी सेना और आतंकवादियों] के बीच कोई भी अर्थगत अंतर नहीं रह गया है।
इस अंतर के ख़ात्मे के बावजूद, भारतीय सशस्त्र बलों ने सैन्य या नागरिक प्रतिष्ठानों या बुनियादी ढांचे को निशाना नहीं बनाने का ध्यान रखा है ताकि हिंसा में कोई अनावश्यक इज़ाफ़ा ना हो। संदेश स्पष्ट है: यदि आप अपनी आतंकवाद की समस्या से नहीं निपटते हैं तो हम निपट लेंगे! नागरिक जीवन का नुकसान दोनों पक्षों के लिए दुखद है और इसी अहम वजह से युद्ध से बचना चाहिए।
कुछ लोग बिना सोचे-समझे युद्ध की वकालत कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने [असल में] कभी युद्ध देखा नहीं है, संघर्ष क्षेत्र में रहना या वहाँ जाना तो दूर की बात है। किसी छद्म नागरिक सुरक्षा अभ्यास गतिविधि का हिस्सा बनने से आप सैनिक नहीं बन जाते और न ही आप कभी किसी ऐसे व्यक्ति का दर्द जान पाएँगे जो संघर्ष के कारण नुकसान उठाता है।
युद्ध क्रूर होता है। और गरीब लोग इसका सबसे ज़्यादा ख़ामियाज़ा भुगतते हैं, केवल राजनेता और रक्षा कम्पनियाँ ही इसका फ़ायदा उठाती हैं। हालाँकि युद्ध अपरिहार्य है क्योंकि राजनीति मुख्य रूप से हिंसा पर आधारित है कम से कम मानव इतिहास हमें यही सिखाता है – हमें यह समझना होगा कि राजनीतिक संघर्षों को कभी भी सैन्य रूप से हल नहीं किया गया है।
अंत में, मैं कर्नल सोफ़िया कुरैशी की प्रशंसा करने वाले इतने सारे दक्षिणपंथी टिप्पणीकारों को देखकर बहुत खुश हूँ, लेकिन शायद वे उतनी ही ज़ोर से यह माँग भी कर सकते हैं कि भीड़ द्वारा हत्या (मॉब लिंचिंग), मनमाने ढंग से बुलडोज़र चलाने और भाजपा द्वारा फैलाई नफ़रत के शिकार अन्य लोगों को भी भारतीय नागरिक होने के नाते संरक्षित किया जाए। दो महिला सैनिकों द्वारा जानकारियों को प्रस्तुत करने का दिखावा अहम है, लेकिन यह दिखावा ज़मीनी हक़ीक़त में भी बदलना चाहिए नहीं तो यह केवल पाखंड है।
जब एक प्रमुख मुस्लिम राजनेता ने “पाकिस्तान मुर्दाबाद” कहा और ऐसा करने के लिए पाकिस्तानियों द्वारा उसे ट्रोल किया गया भारतीय दक्षिणपंथी टिप्पणीकारों ने यह कहकर उसका बचाव किया कि “वह हमारा मुल्ला है।” बेशक यह मज़ेदार है, लेकिन यह इस बात की ओर भी इशारा करता है कि सांप्रदायिकता ने भारतीय राजनीति को कितनी गहराई से संक्रमित कर दिया है।