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सुप्रीम कोर्ट का आदेश: सुनाली खातून को बांग्लादेश से भारत वापस लाया जाए

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सुनाली खातून और उनके 8 वर्षीय बेटे को तत्काल भारत वापस लाने का आदेश दिया। केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि सरकार “मानवीय आधार पर” उनकी वापसी के लिए तैयार है, क्योंकि सुनाली गर्भावस्था के उन्नत चरण में हैं।

हालाँकि, इस बयान को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं कि जब सुनाली भारतीय नागरिक हैं, तो क्या उनके संवैधानिक अधिकार ही उनकी वापसी के लिए पर्याप्त आधार नहीं थे?

यह वही सुनाली खातून हैं जिन्हें जून 2025 में दिल्ली पुलिस ने “अवैध घुसपैठिया” बताकर हिरासत में लिया था।

इसके बाद उन्हें असम ले जाया गया और फिर सीमा पार कर बांग्लादेश भेज दिया गया। इस दौरान उनका बेटा भी साथ था। बताया जाता है कि इस कार्रवाई ने उनके जीवन में असहनीय मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न पैदा किया।

चौंकाने वाली बात यह है कि सुनाली के माता-पिता — 62 वर्षीय भोदू शेख और 55 वर्षीय ज्योत्सना बीबी — पश्चिम बंगाल में ही रहते हैं। दोनों 2002 की SIR सूची में दर्ज हैं और हाल ही में उन्होंने नया जनगणना/नामांकन फ़ॉर्म भी भर दिया है। यानी माता-पिता भारतीय मतदाता हैं, लेकिन बेटी को “विदेशी” करार देकर देश से बाहर कर दिया गया।

लंबे संघर्ष और उत्पीड़न के बाद जब सुप्रीम कोर्ट ने आज उनके भारत लौटने का रास्ता साफ किया, तो सुनाली ने अपने बेटे सबीर को सीने से लगाकर मुस्कुराहट बिखेरी। वह मुस्कुराहट पीड़ा से निकली हिम्मत और हालात से लड़ने की ताकत का प्रतीक कही गई है।

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह मामला “कृपा” नहीं, बल्कि राज्य प्रणाली द्वारा की गई गंभीर गलती को स्वीकार करने का समय है। अधिकारों को छीनकर, फिर “मानवीय आधार” पर वापसी दिलाने को किसी उदारता के रूप में नहीं देखा जा सकता।

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