बीते 24 जून को चुनाव आयोग ने आधिकारिक तौर पर नोटिफिकेशन जारी कर बिहार की वोटर लिस्ट का दुबारा से गहन निरीक्षण करने का फैसला किया है। जिसकी वजह से बिहार के लगभग 8 करोड़ वोटर पर न सिर्फ उनके वोटर होने पर संदेह पैदा किया है बल्कि उन सबकी नागरिकता पर भी सवाल खड़ा हो गया है।
चुनाव आयोग के इस फैसले पर विपक्ष के नेताओं ने आपत्ति जताते हुए इसे बैकडोर से NRC बोलना शुरू कर दिया है। बिहार विधानसभा नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने चुनाव आयोग पर सवाल उठाते हुए कहा है की – “जिस वोटर लिस्ट से 2024 के लोकसभा चुनाव हुए थे उसमें एक साल के अंदर संशोधन की क्या ज़रूरत है? 2024 का लोकसभा चुनाव इसी मतदाता सूची के आधार पर हुआ था क्या इससे उस सूची के आधार पर बनी सरकार की वैधता पर सवाल नहीं उठता?
पहले ये जान लेते हैं कि चुनाव आयोग ने ऐसा फैसला क्यों लिया? आखिर चुनाव से पहले इतने काम समय में निरिक्षण कि ज़रूरत क्यों?
चुनाव आयोग ने स्पष्टता कहा है कि ‘पिछले 20 वर्षों के दौरान, बड़े पैमाने पर नाम जोड़ने और हटाने के कारण मतदाता सूची में महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं और “तेजी से शहरीकरण और आबादी का एक जगह से दूसरी जगह लगातार पलायन हुआ है। इसलिए यह ‘विशेष गहन संशोधन’ अंततः सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) को कवर करेगा। साथ ही चुनाव आयोग का ये भी कहना हैं कि- “बिहार में पिछली बार विशेष गहन पुनरीक्षण 2003 में किया गया था, लेकिन तब इतनी सख्ती नहीं बरती गई थी। उस समय राजनीतिक संरक्षण के चलते बड़ी संख्या में बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों ने फर्जी दस्तावेजों के सहारे मतदाता सूची में अपने नाम दर्ज करवा लिए थे।” सिर्फ इतना ही नहीं चुनाव आयोग ने ये भी कहा हैं कि ये गहन निरिक्षण केवल बिहार तक सिमित नहीं रहेगा बल्कि असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, पुडुचेरी और केरल में भी किया जायेगा। जानकारी के लिए बता दें कि इन सभी राज्यों में आगामी समय में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं।
इस निरिक्षण के लिए चुनाव आयोग ने आखिर क्या आदेश दिए हैं?
चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट के मामले में मुख्य तौर पर तीन बिंदु कहे है:-
-पहला जो लोग 1 जुलाई 1987 से पहले जन्मे हैं, उनको अपने जन्म का प्रमाण देना होगा।
-दूसरा जो 1987 से 2 दिसम्बर 2004 के बीच जन्मे हैं, उन्हें अपने साथ-साथ माता-पिता में से किसी एक का कागज दिखाना होगा।
-तीसरा 2 दिसंबर 2004 के बाद जन्मे लोगों को अपना और अपने माता-पिता दोनों का कागज दिखाना होगा अर्थात जन्म प्रमाणपत्र देने होंगे।
-सीधे तौर पर समझे तो जो व्यक्ति मतदाता के रुप में पंजीकरण करवाना चाहता है, उसे यह साबित करना होगा कि वह या उसके माता-पिता 1 जुलाई 1987 से पहले भारत में जन्मे थे। यदि जन्म तिथि 1 जुलाई 1987 से 2 दिसंबर 2004 के बीच की है, तो माता-पिता के जन्म के प्रमाण भी प्रस्तुत करने होंगे।
-चुनाव आयोग के इस आदेश के बाद खूब हंगामा होने के बाद ECI ने इस मामले में 30 जून को दुबारा नोटिफिकेशन जारी कर के कहा है कि 2003 की लिस्ट में शामिल 4.96 करोड़ वोटर को केवल फॉर्म भर के डिक्लेरेशन के साथ देना है। बाकि जो 2003 के बाद बने वोटर बने है उनको सभी को डॉक्यूमेंट के साथ वेरीफाई करवाना होगा।
पूरी प्रक्रिया कब से कब तक ?
चुनाव आयोग ने अपने आदेश में स्पष्ट करते हुए इस पूरी प्रक्रिया के लिए एक टाइम लाइन तय की है। बिहार के तमाम वोटर के पास BLO एक तय फॉर्म के साथ जायेंगे जिसकी शुरुआत 25 जून से हो चुकी है। एक वोटर के पास इस फॉर्म को डॉक्यूमेंट के साथ जमा करवाने की अंतिम तिथि 26 जुलाई 2025 है।
चुनाव आयोग के अनुसार, 26 जुलाई तक बीएलओ को मौजूदा मतदाताओं वाले हर घर में जाकर पहले से भरे हुए फॉर्म पर हस्ताक्षर करवाने होंगे और ज़रूरत पड़ने पर अतिरिक्त दस्तावेज़ भी इकट्ठा करने होंगे।
बीएलओ हर घर में कम से कम तीन बार ऐसा करेंगे। मतदाताओं के पास ECI की वेबसाइट या ईसीआईएनईटी ऐप से अपने फॉर्म डाउनलोड करने और उन्हें ऑनलाइन जमा करने का विकल्प भी होगा। जिन मतदाताओं के गणना प्रपत्र 25 जुलाई तक प्राप्त नहीं होंगे, उनका नाम सूची से हटा दिया जाएगा। नाम हटाने के लिए 1 अगस्त से 1 सितंबर तक चुनौती दी जा सकती है। अंतिम मतदाता सूची 30 Sep 2025 तक जारी कर दी जाएगी।
राजनितिक पार्टियों के नेतााओं का क्या कहना हैं?
बिहार में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव इस मामले में सीधे तौर पर चुनाव आयोग पर ही सवालिया निशान खड़े कर रहे है। उन्होंने कहा है कि, “आखिरी बार इस तरह की प्रक्रिया 2003 में हुई थी और तब इसे पूरा करने में लगभग 2 साल लगे थे। बिहार विधानसभा चुनाव नवंबर में होने वाले हैं और नोटिफिकेशन आने में केवल 2 महीने बचे हैं। चुनाव आयोग को 8 करोड़ लोगों की वोटर लिस्ट को फिर से तैयार करना है, वो भी सिर्फ 25 दिनों भीतर। लोगों से 11 तरह के दस्तावेज मांगे जा रहे हैं, जिनमें से अधिकतर दस्तावेज भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार केवल 2-3 प्रतिशत लोगों के पास ही होते हैं यानी साफ साजिश की बू आ रही है।”
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के कद्दावर नेता दिग्विजय सिंह ने कहा कि – “बिहार के आधे जिले बाढ़ से प्रभावित हैं। लोग अपनी जान बचाएंगे या फिर सरकार के सामने कागजात उपलब्ध कराने के लिए जद्दोजह करेंगे। चुनाव आयोग ने प्रक्रिया को शुरु करने से पहले राजनीतिक दलों से कोई सहमति नहीं ली है। सरकार की साजिश है कि गरीब मतदाताओं के नाम सूची से बाहर किए जाएं। जिस तरीके से महाराष्ट्र और हरियाणा में मतदाताओं के नाम निकल गए, वहीं प्रक्रिया बिहार में भी शुरु की गई है। इसके खिलाफ महागठबंधन के तमाम घटक दल लड़ाई के लिए तैयार हैं और भविष्य में हम न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाएंगे”
AIMIM प्रमुख और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने इसे ‘बैकडोर एनआरसी’ करार दिया है। यह प्रक्रिया एनआरसी की तरह आम नागरिकों को संदिग्ध बना सकती है। उन्होंने ने स्पष्ट कहा है कि “बिहार में जो बैकडोर NRC लाया जा रहा है, वो असली नागरिकों और वोटरों को भी बाहर कर देगा।”
अब ये जानते हैं कि चुनाव आयोग कि इस पूरी प्रक्रिया पर सवाल क्यों उठ रहे है ?
सबसे बड़ा सवाल तो यही पैदा हो रहा है कि आखिर चुनाव आयोग ने किस रिपोर्ट या जाँच के आधार पर ये तय किय है कि बिहार की वोटर लिस्ट में बड़ी गिनती में अवैध घुसपैठिये शामिल हो चुके हैं। ऐसी रिपोर्ट को सार्वजानिक किया जाना चाहिए। अगर मान भी लिया जाये कि वोटर लिस्ट में अवैध घुसपैठिये शामिल हो गए तो उन अधिकारीयों पर क्या करवाई होगी जिनके एक साइन की वजह से ये सब हुआ है। जिस BLO ने ऐसे वोटर बनाये उसी को अधिकार दिया जा रहा है कि वो लोगों की नागरिकता की जाँच करें।
अब यहाँ संवैधानिक सवाल भी उत्पन्न हो रहा हैं कि- क्या क़ानूनी तौर पर ये तय हो चूका हैं कि नागरिकता को तय करने का अधिकार अघोषित तौर पर चुनाव आयोग के पास होगा। सबसे अहम सवाल तो यह उठता है जो मतदाताओं से जुड़ा हुआ है कि आखिर एक महीने के इतने काम समय में मतदाता सूची डॉक्यूमेंट सहित कैसे अपडेट कि जाएगी। बिहार में पलायन का मामला सबसे अधिक हैं काफी मतदाता बिहार से बहार हैं। दूसरा खेती का पीक टाइम चल रहा है। एक बड़ी आबादी बाढ़ से पीड़ित हैं ऐसे में 26 जुलाई तक अपने डाक्यूमेंट्स के साथ गणना फॉर्म कैसे जमा करवा पाएंगे।
चुनाव आयोग के इस आदेश के बाद एक बात तय हो चुकी है कि ब्लॉक लेवल ऑफिसर (BLO) को बेहद ताकतवर बना दिया गया है। इस पूरी प्रक्रिया में (BLO) के पास ऐसे अधिकार है कि वो किसी को भी नागरिकता का आधार बना कर वोटर लिस्ट से बाहर कर सकता है। जैसे वक़्फ़ कानून के नए कानून में जिलाधिकारी को एक असीम ताकत दी गई है कुछ वैसा ही इस मामले में (BLO) के लिए देखने को मिला है। जिस बिहार में गरीबी अपनी चरमसीमा पर है, लोगों के पास रोजगार का कोई साधन नहीं है, अपने परिवार के पालन पोषण के लिए दूसरे राज्यों में पलायन कर के जाना पड़ता है वहां पर यक़ीनन इस पूरे प्रोसेस का सबसे बड़ा शिकार गरीब समुदाय ही होगा।
(यह लेखक के अपने विचार है लेखक फ़ैयाज़ आलम रिसर्चर है)