सुप्रीम कोर्ट ने आज (17 फरवरी) को पूजा स्थल अधिनियम 1991 से संबंधित याचिकाओं की सुनवाई अप्रैल तक के लिए टाल दी। सीजेआई संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने निर्देश दिया कि मामले को 1 अप्रैल से शुरू होने वाले सप्ताह में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाए।
गौरतलब है कि इस मामले की सुनवाई पहले सीजेआई संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की तीन जजों की पीठ ने की थी।
सुप्रीम कोर्ट एक तरफ अधिनियम की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाने वाली याचिकाओं की जांच कर रहा है, तो दूसरी तरफ जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी और अन्य की याचिकाओं की, जिसमें अधिनियम के सख्त क्रियान्वयन का आग्रह किया गया है। चूंकि आज मुख्य न्यायाधीश की अदालत में दो न्यायाधीशों की बेंच थी, इसलिए मामले की सुनवाई स्थगित कर दी गई।
जमीयत की ओर से अधिवक्ता मंसूर अली खान और नियाज अहमद फारुकी अदालत में पेश हुए। जमीयत के वकीलों ने सरकार की लगातार चुप्पी और जवाब दाखिल न करने पर चिंता जताई और आग्रह किया कि सरकार को राष्ट्र की अखंडता, मुद्दे की संवेदनशीलता और कानून का सम्मान करने की आवश्यकता को देखते हुए तुरंत अपना जवाब दाखिल करना चाहिए।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कई बार समय विस्तार दिए जाने के बावजूद केंद्र सरकार ने अभी तक मामले में अपना जवाबी हलफनामा दाखिल नहीं किया है। 11 जुलाई, 2023 को न्यायालय ने केंद्र सरकार से 31 अक्टूबर, 2023 तक जवाबी हलफनामा दाखिल करने को कहा।
गौरतलब है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति पीवी संजय कुमार और केवी विश्वनाथन की पीठ ने 12 दिसंबर को एक महत्वपूर्ण आदेश पारित कर धार्मिक स्थलों के खिलाफ नए मुकदमों और सर्वेक्षण आदेशों पर रोक लगा दी थी।
न्यायालय ने यह भी आदेश दिया कि लंबित मुकदमों (जैसे ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा शाही ईदगाह, संभल जामा मस्जिद आदि से संबंधित) में न्यायालयों को सर्वेक्षण के आदेश सहित प्रभावी अंतरिम या अंतिम आदेश पारित नहीं करने चाहिए।
अंतरिम आदेश पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 को चुनौती देने वाली याचिकाओं और अधिनियम के कार्यान्वयन की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया गया।