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फ़िलिस्तीन के समर्थन में देशभर के मैकडॉनल्ड्स के बाहर IPSP ने किया विरोध प्रदर्शन, बोले- ग़ज़ा नरसंहार में मैकडॉनल्ड्स भी शामिल है

दिल्ली, हैदराबाद, मुम्बई समेत देश के अलग-अलग हिस्सों में “Indian People in Solidarity with Palestine (IPSP)” के आह्वान पर मैकडॉनल्ड्स के बाहर विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया गया। यह शान्तिपूर्ण प्रदर्शन फ़िलिस्तीनी जनता के विरुद्ध ज़ायनवादी इज़रायल द्वारा किये जा रहे नरसंहार और औपनिवेशिक हिंसा के ख़िलाफ़ था।

IPSP ने कई जन संगठनों के साथ मिलकर देशव्यापी “बॉयकॉट, डाइवेस्टमेण्ट एण्ड सैंक्शन”(BDS) अभियान चला रहा है। मैकडॉनल्ड्स भी उन कम्पनियों में से एक है जो फ़िलिस्तीनी अवाम के बर्बर नरसंहार में शामिल है।

मैकडाॅनल्ड्स ने इज़रायली रक्षा बलों (IDF) को मुफ़्त में खाना दिया है। वही IDF जो भोजन और सहायता सामग्री का इन्तज़ार कर रहे सैकड़ों भूखे-प्यासे फ़िलिस्तीनियों पर गोलियाँ बरसा रहा है। वही IDF जो, अस्पतालों, स्कूलों, विश्वविद्यालयों पर बमबारी करके उसे मलबे के ढेर में तब्दील कर चुका है। बच्चों पर गोलियाँ चलाकर, पत्रकारों और डॉक्टरों को मारकर और उन्हें अपंग बनाकर, स्वतन्त्रता सेनानियों को दशकों तक इज़रायली जेलों में क़ैद करके उनपर अत्याचार कर रहा है।

ग़ाज़ा को दुनिया की सबसे बड़ी खुली जेल के रूप में बनाये रखने के लिए चिकित्सा और खाद्य सहायता रोककर निर्दोष फ़िलिस्तीनियों का निर्मम नरसंहार कर रहा है। नरसंहार में ज़ायनवादी ताक़तों के साथ खड़े होने के कारण दुनिया भर में इन्साफ़पसन्द नागरिकों द्वारा मैकडॉनल्ड्स का बहिष्कार (boycott) किया जा रहा है।

भारत में भी मैकडॉनल्ड्स के बहिष्कार का आह्वान करते हुए दिल्ली, मुम्बई, हैदराबाद, पुणे, रोहतक, चण्डीगढ़, विशाखापट्टनम, विजयवाड़ा, पटना सहित अनेक जगहों पर विरोध प्रदर्शन आयोजित किया गया। इसमें भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI), नौजवान भारत सभा, दिशा छात्र संगठन, स्त्री मुक्ति लीग, दिल्ली स्टेट ऑंगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन (DSAWHU) सहित कई अन्य जन संगठनों और आम नागरिकों ने भाग लिया। इससे पहले, IPSP देशभर में नरसंहार के साथ खड़ी कम्पनियों जैसे, स्टारबक्स, रिलायंस रिटेल, टाटा ज़ुडिओ, डॉमिनोज़ के आउटलेट्स के सामने, इनके सामानों के बहिष्कार का आह्वान करते हुए विरोध प्रदर्शन आयोजित कर चुका है।

प्रदर्शन के दौरान बात रखते हुए IPSP की सदस्य प्रियम्वदा ने बताया कि दुनियाभर में ज़ायनवादी इज़रायल और उसके समर्थन में खड़ी संस्थाओं, कम्पनियों और उद्यमों के ख़िलाफ़ बॉयकॉट, डाइवेस्टमेण्ट एण्ड सैंक्शन (BDS) अभियान चलाया जा रहा है। इसका मक़सद ज़ायनवादी इज़रायल का पूर्ण राजनयिक, अकादमिक, वाणिज्यिक और सांस्कृतिक बहिष्कार करना है। इसके साथ ही उन तमाम कम्पनियों का बहिष्कार करना है जो फ़िलिस्तीनी अवाम के नरसंहार में ज़ायनवादी इज़रायल को मदद कर रही हैं।

उन्होंने आगे कहा कि हमारे देश की गोदी मीडिया और सरकारी मशीनरी फ़िलिस्तीन और इज़रायल के मसले को मुसलमान बनाम यहूदी का मसला बता रही है। लेकिन हक़ीक़त तो यह है कि यह कोई धर्म का मसला नहीं बल्कि फ़िलिस्तीनी अवाम द्वारा अपनी मुक्ति के लिए जारी संघर्ष है। दुनियाभर के इन्साफ़पसन्द लोग फ़िलिस्तीन के समर्थन में और इज़रायल के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतर रहे हैं। इन प्रदर्शनों ने ज़ायनवादी इज़रायल के बर्बर चरित्र को बेनक़ाब करने में अहम भूमिका निभायी है। यही वजह है कि आज कुछ ही देशों के नेता ज़ायनवादी इज़रायल का खुलकर समर्थन कर पा रहे हैं।

नौजवान भारत सभा से सुजन ने ग़ाज़ा में जारी नरसंहार पर बात रखी। उन्होंने कहा कि फ़िलिस्तीनी जनता द्वारा 7 अक्टूबर 2023 को किये गये लड़ाकू प्रतिरोध के ज़वाब में इज़रायल ने ग़ाज़ा पर अब तक का सबसे बर्बर हमला किया है। आधिकारिक ऑंकड़ों के अनुसार, पिछले 21 महीने में 60 हज़ार से अधिक लोग मारे जा चुके हैं, लाखों लोग घायल हैं और 4 लाख से ज़्यादा लोग “लापता” हैं।

ज़ायनवादी इज़रायल महीनों से खाद्य सहायता पर रोक लगाये हुए है। खाने के इन्तज़ार में खड़े भूखे – प्यासे फ़िलिस्तीनियों पर बम बरसा रहा है। पिछले छह हफ़्तों में इस तरह के सहायता केन्द्रों पर 800 से अधिक फ़िलिस्तीनियों का क़त्लेआम किया जा चुका है। सुजन ने बताया कि 1948 के पहले इज़रायल का कोई नामोनिशान नहीं था। आज जिस ज़मीन के टुकड़े को इज़रायल कहा जाता है वहाँ 1948 के पहले मुसलमान, यहूदी, ईसाई फ़िलिस्तीनी अरब लोग सैकड़ों सालों से रहते आए थे।

1948 में फ़िलिस्तीनियों के भयंकर क़त्लेआम को अंजाम दिया और उन्हें बन्दुक़ की नोक पर अपनी ही ज़मीन से बेदखल करके इज़रायल की स्थापना हुई। इज़रायल कोई देश या राष्ट्र नहीं बल्कि फ़िलिस्तीन पर जबरन क़ब्ज़ा करने की एक सेटलर औपनिवेशिक परियोजना है।

पश्चिमी साम्राज्यवादियों की शह पर इज़रायल, फ़िलिस्तीन में बर्बर नरसंहार जारी रखे हुए है ।
लेकिन फ़िलीस्तीनी अवाम अपनी आज़ादी की लड़ाई बहादुरी के साथ लड़ रही है।

स्वप्नजा ने बीडीएस इण्डिया की तरफ़ से बात रखते हुए बताया कि फ़िलिस्तीन के समर्थन में दुनियाभर मे तेज़ी से फैल रहा है। इस अभियान का ही असर है कि दुनियाभर में कई इज़रायल समर्थक कम्पनियों की दुकानें बन्द हो गयी हैं। तुर्की में मैकडॉनल्ड्स दिवालिया हो चुका है वहीं मिस्र में इसकी बिक्री में 70% की गिरावट देखी गयी है। बीडीएस आन्दोलन के कारण इसे हाल के वर्षों में भारी नुकसान हुआ है।

2024 की तीसरी तिमाही में, मैकडॉनल्ड्स की वैश्विक बिक्री में 1.5 प्रतिशत की कमी आयी , जो कोरोना महामारी के दौरान हुए नुकसान से भी ज़्यादा है। बहिष्कार के कारण मैकडॉनल्ड्स को 7 अरब डॉलर से ज़्यादा का नुकसान हुआ , जिसके बाद उन्होंने इज़रायली सैनिकों को दी गयी रियायतें और प्रस्ताव वापस ले लिये।

एक तरफ़ दुनियाभर में फ़िलिस्तीन के समर्थन में और ज़ायनवादी इज़रायल के ख़िलाफ़ लोग सड़कों पर उतर रहें हैं। वहीं दूसरी तरफ़ शासक वर्ग इन विरोध प्रदर्शनों को कुचलने की हर सम्भव कोशिश में लगा हुआ है। अमेरिका और कई यूरोपीय देशों में फ़िलिस्तीन समर्थक प्रदर्शनों का बर्बरतापूर्वक दमन किया गया है।

ब्रिटेन में “Palestine Action” नामक शान्तिपूर्ण संगठन को “आतंकवादी संगठन” घोषित कर दिया गया और इससे जुड़े कई लोगों को गिरफ़्तार भी किया गया। ‘ग्लोबल मार्च टू ग़ाज़ा’ को रोकने में मिस्र ने कोई कसर नहीं छोड़ी। भारत में ही IPSP द्वारा आयोजित इज़रायली दूतावास के बाहर शान्तिपूर्ण प्रदर्शन का बर्बर दमन किया गया और प्रदर्शनकारियों पर झूठे मुक़दमे दायर किये गये।

हमारा देश जिसने 200 सालों की गुलामी का दंश झेला है, हमें ऐसे शोषण के दुख और आज़ादी की क़ीमत बेहद अच्छे से मालूम है। आज फ़िलिस्तीन के साथ खड़ा होना इन्सान होने की पूर्व शर्त बन गया है। बीडीएस अभियान ज़ायनवादी इज़रायल के ख़िलाफ़ प्रतिरोध में एक शशक्त हथियार है। फ़िलिस्तीनी आवाम के समर्थन में भारत के इन्साफ़पसन्द लोगों को बड़ी तादाद में आगे आना होगा। यही आज इन्साफ़ और न्याय की कसौटी को पूरा करने का लिटमस टेस्ट है।

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