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स्टारबक्स के आउटलेट के बाहर देशभर में हुआ विरोध प्रदर्शन, फिलिस्तीन में ज़ारी नरसंहार के लिए स्टारबक्स को ठहराया जिम्मेदार

‘फ़िलिस्तीन के समर्थन में अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिरोध दिवस’ के मौके पर भारत के विभिन्न शहरों और कस्बों में इज़रायली ज़ायनवाद की समर्थक कॉफी कम्पनी स्टारबक्स के आउटलेटों के बाहर इसके बहिष्कार की अपील के साथ विरोध प्रदर्शनों का आयोजन किया गया।

बीडीएस इण्डिया की ओर से श्रीजा ने बताया कि इन प्रदर्शनों में ‘फ़िलिस्तीन के साथ एकजुट भारतीय जन’ (इण्डियन पीपल इन सोलिडेरिटी विद पैलेस्टाइन) के बैनर तले विभिन्न जन संगठनों ने भागीदारी की। इन प्रदर्शनों का मकसद फ़िलिस्तीन की जनता पर ज़ायनवादी इज़रायल द्वारा किये जा रहे जनसंहार का विरोध करना है।

स्टारबक्स नामक कम्पनी का जाल दुनिया भर में फैला हुआ है। स्टारबक्स का पूर्व सीईओ और इसका सबसे बड़ा शेयर होल्डर हावर्ड शुल्ट्ज ज़ायनवाद का मुखर समर्थक है। इसके मालिक (शेयर धारक) फ़िलिस्तीन में जारी कत्लेआम में पूरे-पूरे भागीदार हैं। इसके मालिकों का इज़रायली अर्थव्यवस्था में भारी निवेश है। यही नहीं इज़रायली सैन्य कम्पनियों के साथ इनकी साँठ-गाँठ जग-ज़ाहिर है।

फिलिस्तीन में इज़रायल द्वारा किये जा रहे युद्ध–अपराधों का विरोध करने के कारण स्टारबक्स के मालिकों ने अपने कर्मचारियों का दमन भी किया था। स्टारबक्स के बहिष्कार के आह्वान के साथ भारत के दिल्ली, मुम्बई, हैदराबाद, पुणे, चण्डीगढ़, विशाखपट्टनम, पटना समेत विभिन्न शहरों में आयोजित इन विरोध प्रदर्शनों में भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI), नौजवान भारत सभा, दिशा छात्र संगठन, स्त्री मुक्ति लीग, दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेलपर्स यूनियन और अन्य जन संगठन व आम नागरिक शामिल रहे।


‘बीडीएस’ मुहिम के बारे में बताते हुए प्रियम्बदा ने कहा कि इस अभियान का मतलब है बी यानी बॉयकोट (बहिष्कार), डी यानी डाइवेस्टमेण्ट (विनिवेश) और एस यानी सैंक्शन (प्रतिबन्ध)। ‘बीडीएस’ अभियान के रूप में दुनियाभर की इन्साफ़पसन्द जनता द्वारा इज़रायली ज़ायनवादियों के मालिकाने वाली और इनसे किसी भी तरह की साँठ-गाँठ रखने वाली कम्पनियों/ब्राण्डों के उत्पादों के पूर्ण बहिष्कार का आह्वान किया जा रहा है। इसके साथ ही इज़रायली ज़ायनवादी बुद्धिजीवियों, लेखकों, कलाकारों, अकादमिकों, फ़िल्मों आदि का भी बहिष्कार किया जा रहा है।

उन्होंने आगे कहा कि इज़रायल साम्राज्यवादी मदद के इतर इन्हीं कम्पनियों के पैसे की मदद और समर्थन के दम पर फ़िलिस्तीन में क़त्लेआम जारी रखे हुए है और ठीक इसीलिए यह बहिष्कार मुहिम ज़रूरी है। ज़ायनवादी इज़रायल के विरोध का ही एक रूप है ‘बीडीएस’ अभियान। इज़रायल द्वारा फ़िलिस्तीन में जारी जनसंहार के समय दुनिया के इन्साफ़पसन्द लोग चुप नहीं बैठे हैं।

संसार भर के छात्र-युवा फ़िलिस्तीनी कौम के साथ गहरी हमदर्दी व्यक्त कर रहे हैं। तमाम देशों के जनद्रोही शासक वर्ग भले ही कहीं खुले तो कहीं छुपे तौर पर इज़रायल नामक हत्यारी सेटलमेण्ट के साथ हाथ मिला रहे हों लेकिन सभी महाद्वीपों के तमाम देशों के आम लोग फ़िलिस्तीनियों के समर्थन में हज़ारों-लाखों की तादाद में सड़कों पर उतर रहे हैं।

भारत की क्रान्तिकारी मजदूर पार्टी (RWPI) के योगेश ने कहा कि 7 अक्तूबर 2023 के जुझारू प्रतिरोध के बाद से इज़रायली ज़ायनवादियों ने इक्यावन हज़ार से ज़्यादा फ़िलिस्तीनियों को मौत के घाट उतार दिया है। कुल मरने वालों में तक़रीबन 70 प्रतिशत संख्या महिलाओं और बच्चों की है। इसके अलावा लाखों जन घायल हैं और कई हज़ार लोग गायब हैं।

अन्तर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के द्वारा इज़रायली प्रधानमन्त्री नेतान्याहू को युद्धअपराधी घोषित कर रखा है। लेकिन अमरीकी शह के कारण इसके बारे में कोई पूछने वाला नहीं है। योगेश ने आगे कहा कि फ़िलिस्तीन पर इज़रायल का यह हमला कोई नया नहीं है।

फ़िलिस्तीन की जनता 1948 से ही इज़रायली कब्ज़े और इसके द्वारा अंजाम दिये जा रहे एक भीषण जनसंहार की चपेट में है। अपने निर्माण के साथ ही इज़रायल ने फ़िलिस्तीनी क़ौम को ख़ून की नदी में डुबोने की कोशिश में कोई कसर नहीं छोड़ी है। असल में इज़रायल कोई देश नहीं है बल्कि एक सतत औपनिवेशिक परियोजना है जिसका अस्तित्व ही फ़िलिस्तीनी राष्ट्र की क़ीमत पर क़ायम हुआ है।

इस सेटलर बस्ती ने पहले ब्रिटिश साम्राज्यवाद की शह पर और उसके बाद अमरीकी साम्राज्यवाद की मदद के दम पर फ़िलिस्तीनी कौम पर एक भीषण युद्ध थोप रखा है। इज़राइल का काम मध्यपूर्व में अमरीकी सैन्य चौकी का काम करना है और उसके आर्थिक और राजनीतिक हितों की सुरक्षा करना है। जहाँ दमन होता है वहाँ प्रतिरोध का होना भी अवश्यम्भावी होता है।

इज़रायल द्वारा अपने लोगों की नस्लकुशी को फ़िलिस्तीन के बहादुर लोग गर्दन झुकाकर सहन करने के लिए तैयार नहीं हैं। आज़ादी और न्याय की ख़ातिर फ़िलिस्तीनियों का प्रतिरोध हिम्मत, जज़्बे, बहादुरी और जिजीविषा के नये-नये कीर्तिमान स्थापित कर रहा है।

आज हालात यह हैं कि फ़िलिस्तीन की ग़ज़ा पट्टी को मलबे में तब्दील कर दिया गया है और वेस्ट बैंक के तमाम इलाक़ों में भी इज़रायली सैनिक और ज़ायनवादी गुण्डा गिरोह आये दिन हमले कर रहे हैं।
अन्त में बीडीएस इण्डिया की ओर से श्रीजा ने कहा कि फ़िलिस्तीन के प्रति एकजुटता दर्शाने के लिए ‘बीडीएस’ नामक यह अभियान दुनिया भर में तेज़ी से फ़ैल रहा है। ‘बीडीएस’ अभियान का ही प्रभाव है कि कई देशों में इज़रायल की समर्थक कम्पनियों/ब्राण्डों की दुकानें बन्द हो चुकी हैं।

कुछ देशों में तो फ़िलिस्तीन पर हमले की समर्थक कई कम्पनियाँ दिवालिया तक हो चुकी हैं। इज़रायली सेटेलमेण्ट की समर्थक स्टारबर्क्स नामक कॉफी कम्पनी की मलेशिया में कम से कम 50 दुकानें (आउटलेट) बन्द हो चुकी हैं। मध्यपूर्व के देशों में यही कम्पनी काम की कमी के चलते हज़ारों कर्मचारियों की छँटनी कर चुकी है।

तुर्की में मैकडोनाल्ड नामक इज़रायल समर्थक कम्पनी दिवालिया हो चुकी है और मिश्र में इसकी बिक्री 70 प्रतिशत तक गिर चुकी है। एक सर्वे के अनुसार जॉर्डन के 93 प्रतिशत लोगों ने ‘बीडीएस’ मुहिम को अपना समर्थन दिया है। तमाम अरब देशों के साथ दुनिया के अलग-अलग देशों में ‘बीडीएस’ मुहिम के असर देखने को मिल रहे हैं।

हमें यह याद रखना होगा कि दक्षिण अफ़्रीका से नस्लभेदी औपनिवेशिक सत्ता के पाँव उखाड़ने में ऐसी बहिष्कार मुहिमों ने अहम भूमिका अदा की थी। हम भारतीय जन जिन्होंने तक़रीबन 200 वर्ष तक औपनिवेशिक ग़ुलामी झेली है वे ग़ुलामी के दर्द को और आज़ादी की क़ीमत को अच्छी तरह से समझ सकते हैं। इसलिए हमें हर कीमत पर फ़िलिस्तीन के साथ खड़ा होना चाहिए।

हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन के तमाम नेताओं ने फ़िलिस्तीनी कौम के दमन का विरोध किया था। आज भी हमें न्याय के पक्ष में खड़ा होना चाहिए। ‘बीडीएस’ अभियान’ फ़िलिस्तीन के समर्थन और ज़ायनवादी इज़रायल के खिलाफ़ हमें सक्रिय रूप से कुछ करने का मौका देता है।

भारत के इनसाफ़पसन्द लोगों को न्याय और आज़ादी की ख़ातिर लड़ने वाले अपने फ़िलिस्तीनी भाइयों के समर्थन में ‘बीडीएस’ मुहिम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना चाहिए।

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