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मुसलामानों के खिलाफ हिंसा में वृद्धि हो रही है: जमाअत-ए-इस्लामी हिंद

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने अलीगढ़ में चार मुस्लिम मांस व्यापारियों पर हुए क्रूर हमले की निंदा करते हुए इसे अत्यंत चिंताजनक बताया है. उन्होंने कहा, गुस्साई भीड़ ने इन लोगों को रोका, उनके कपड़े उतार दिए और बेल्टों तथा डंडों से उनकी बेरहमी से पिटाई की, जिससे वे लहूलुहान और सदमे में आ गए।

इससे भी अधिक चौंकाने वाली बात यह है कि पुलिस ने हमलावरों और पीड़ितों दोनों के खिलाफ गौहत्या अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया है। यह न्याय की पूर्ण विफलता है तथा कानून को हाथ में लेने वाले अपराधियों को संरक्षण देना है।

ऐसी हरकतें इन असामाजिक तत्वों को बढ़ावा देती हैं क्योंकि उन्हें भरोसा होता है कि हमें किसी भी मुस्लिम विरोधी हिंसा के लिए सज़ा नहीं मिलेगी। यह कोई अकेली घटना नहीं है।

भारत ने हाल के वर्षों में मुसलमानों, दलितों और उपेक्षित समूहों के खिलाफ भीड़ द्वारा हत्या और घृणा अपराधों का एक परेशान करने वाला पैटर्न देखा है, जो अक्सर गौरक्षा या “लव जिहाद” की आड़ में किया जाता है।

कर्नाटक के बंटवाल में अब्दुल रहमान की हत्या से लेकर मंगलुरु में अशरफ की नृशंस हत्या, नागपुर में सांप्रदायिक झड़पें और देश भर में कश्मीरी मुसलमानों को निशाना बनाकर उत्पीड़न, ये घटनाएं हमारे देश की छवि पर बदनुमा दाग हैं। मॉब लिंचिंग के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के 2018 के फैसले के बावजूद, अनुपालन अभी भी अनियमित है, और जवाबदेही दुर्लभ है। कानून तो मौजूद हैं, लेकिन न्याय धीमा और चयनात्मक है।

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता, 2023 के तहत लिंचिंग विरोधी प्रावधानों को सख्ती से लागू करने की अपनी मांग दोहरा ती है, जिसमें आजीवन कारावास या मृत्युदंड सहित अनुकरणीय दंड शामिल हैं, ताकि कानून का डर पैदा हो और दंड से मुक्ति का माहौल खत्म हो।

हम सावधान करना चाहते हैं कि मुसलमानों को लगातार निशाना बनाए जाने से न केवल हमारे धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र का ताना-बाना कमजोर हो रहा है, बल्कि भारत की एकता और सुरक्षा को भी खतरा है। सरकार को शीघ्रता एवं निर्णायक रूप से कार्रवाई करनी चाहिए; अपराधियों को जवाबदेह ठहराना चाहिए, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए, तथा न्याय एवं कानून के शासन में जनता का विश्वास बहाल करना चाहिए।

हम सभी नागरिकों से नफरत को अस्वीकार करने, मानवीय गरिमा को बनाए रखने तथा समाज में शांति और न्याय के लिए मिलकर काम करने का आग्रह करते हैं।

बुलडोजर और अन्याय
जमाअत-ए-इस्लामी हिंद मुस्लिम संपत्तियों, घरों और शैक्षणिक संस्थानों के चल रहे अवैध और अमानवीय विध्वंस की कड़ी निंदा करती है, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में हाल ही में की गई बुलडोजर कार्रवाई की।

एक चिंताजनक प्रवृत्ति सामने आई है, जिसमें मदरसों – शिक्षा और सामुदायिक सहायता के केंद्रों – को तुच्छ बहानों के के ज़रिये व्यवस्थित रूप से निशाना बनाया जा रहा है। हाल ही में जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के एक प्रतिनिधिमंडल द्वारा बहराइच और श्रावस्ती जैसे जिलों में किए गए फैक्ट-फाइंडिंग दौरे से पता चला कि वैध पंजीकरण वाले कई मदरसों को बिना किसी उचित प्रक्रिया के सील कर दिया गया है या ध्वस्त कर दिया गया है, जो मुस्लिम नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

ये विध्वंस, जिन्हें अक्सर “कानून और व्यवस्था” या “अवैध निर्माण” की आड़ में उचित ठहराया जाता है, अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों को असंगत रूप से निशाना बनाते हैं। बिना किसी सुनवाई या उचित प्रक्रिया के दंड के साधन के रूप में बुलडोजर का उपयोग करने की प्रथा ने पुलिस और प्रशासन को न्यायाधीश, जूरी और वधिक में बदल दिया है।

यह संवैधानिक मानदंडों का स्पष्ट उल्लंघन है और हमारे लोकतांत्रिक ताने-बाने के लिए गंभीर खतरा है। जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने सर्वोच्च न्यायालय की इस टिप्पणी को दोहराती है कि “किसी संपत्ति को केवल इसलिए ध्वस्त नहीं किया जा सकता क्योंकि वह किसी आरोपी व्यक्ति की है।” हम प्रशासन से आग्रह करते हैं कि वह मनमाने ढंग से ध्वस्तीकरण को रोके और कानून के शासन को बनाए रखने के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी दिशानिर्देशों का पालन करे।

यह अत्यंत चिंताजनक है कि इस तरह के ध्वस्तीकरण अभियान अक्सर सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं के बाद चलाए जाते हैं, जहां अल्पसंख्यकों के घरों और संस्थानों को चुन-चुन कर निशाना बनाया जाता है, जबकि हिंसा करने वालों को पूरी तरह से छूट मिल जाती है। इन कार्रवाइयों से मुस्लिम समुदाय में भय और असुरक्षा का माहौल पैदा होता है।

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद इन अवैध बुलडोजर कार्रवाइयों पर तत्काल रोक लगाने, जिम्मेदार अधिकारियों की जवाबदेही तय करने तथा सभी नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा की मांग करती है, चाहे वे किसी भी धर्म के हों। हम सरकार से कानून का शासन बहाल करने, न्याय सुनिश्चित करने तथा सभी के लिए समानता, स्वतंत्रता और सम्मान के संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने का आह्वान करते हैं।

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