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ग़ाज़ा में ईद-उल-अज़हा पर फ़िलिस्तीनियों ने अपनी जानें कुर्बान कीं

ग़ाज़ा की ज़मीन पर यह शब्द अब किसी इमेजिनरी दुखभरे कविता के टुकड़े नहीं, बल्कि एक सच्ची और जीवित हकीकत बन चुके हैं। ध्वस्त मस्जिदों के मलबे पर नमाज़, युद्धविराम की दुआएँ, राहत केंद्र फिर बंद, “न खाना है, न आटा, न पनाह, न मस्जिदें, न घर। इन हालातों में भी, फ़िलिस्तीनियों ने ईद-उल-अज़हा मनाई, बिना बकरे, बिना खाना, बिना सुरक्षा और बिना घर।

लगभग डेढ़ साल से जारी इज़रायली हमलों में तबाह हो चुके ग़ाज़ा में शुक्रवार को ईद-उल-अज़हा मनाई गई, लेकिन जानवरों की क़ुर्बानी के बिना। ग़ाज़ा के अधिकांश हिस्से 7 अक्टूबर 2023 से जारी हमलों में मलबे में तब्दील हो चुके हैं, और लोग इब्राहीमी सुन्नत निभाने की स्थिति में नहीं हैं। इस ईद पर भी फ़िलिस्तीनियों ने अपनी जानें कुर्बान कीं।

ग़ाज़ा के घिरे हुए शहर ख़ान यूनुस में बेघर फ़िलिस्तीनियों ने एक ध्वस्त मस्जिद के मलबे पर ईद की नमाज़ अदा की, जबकि इज़रायली हमले लगातार जारी हैं। यह वही शहर है जो इज़रायली टैंकों, हवाई हमलों और भूख की मार से सबसे ज़्यादा प्रभावित इलाक़ों में गिना जा रहा है। नमाज़ियों की आँखों में आँसू थे, ज़ुबान पर सिर्फ एक ही दुआ, “यह जंग खत्म हो जाए।

युद्धविराम प्रस्ताव पर अमेरिका का वीटो दोहरी नीति
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बार-बार पेश हुए युद्ध-विराम प्रस्तावों पर अमेरिका का वीटो इस बात का साफ़ संकेत है कि इज़रायल को वैश्विक समर्थन प्राप्त है, और युद्ध विराम का बयान केवल एक नाटक है। अमेरिका एक तरफ़ युद्ध विराम की बात करता है और दूसरी तरफ़ इज़रायल के समर्थन में वीटोलेता है। हालिया प्रस्ताव मई 2025 में लाया गया था, जिसमें अमेरिका ने युद्ध-विराम के किसी भी दबाव को खारिज कर दिया। इसी वजह से, राहत एजेंसियों को भी इज़रायली सैन्य नियंत्रण के तहत काम करना पड़ता है, और उनके पास “रिलीफ़ या रिट्रीट” के अलावा कोई विकल्प नहीं।

मुस्लिम देश और मानवाधिकार संगठन सिर्फ़ ‘कड़ी निंदा’ तक सीमित

ग़ाज़ा के लिए तमाम मुस्लिम देश और मानवाधिकार संगठन सिर्फ़ ‘कड़ी निंदा’ और ‘गहरी चिंता’ तक सीमित हैं। अरब लीग की बैठकें होती रहीं, ओआईसी के बयान आते रहे, लेकिन ज़मीनी स्तर पर फ़िलिस्तीनियों को कोई ठोस मदद नहीं मिली। इस्लामी दुनिया में नाराज़गी तो है, लेकिन नेतृत्व में इच्छाशक्ति की कमी स्पष्ट है। फिलिस्तीनी समाज अपने “सब्र” और “इबादत” के लिए जाना जाता है। लेकिन डेढ़ साल से जारी जंग, लगातार अपनों की मौत, और दुनिया की चुप्पी ने अब उनके हौसले को भी थका दिया है। फिर भी, लोग हर दिन जीने की कोशिश कर रहे हैं, अपने बच्चों को सिखा रहे हैं कि भगवान ज़ुल्म से बड़ा है।

ग़ाज़ा में इस बार भी ईद पर जानवरों की कुर्बानी नहीं दी जा सकी, क्योंकि ज़्यादातर लोग खुद ही मौत के साए में जी रहे हैं। “उन्होंने इस बार बकरे नहीं काटे, उनकी जानें ही हमारी कुर्बानी हैं, लोगों ने कहा कि क़ुर्बानी न दे पाने के बावजूद, वे ईद की इबादतों को ज़िंदा रखे हुए हैं। यह ग़ाज़ा की लगातार दूसरी ईद-उल-अज़हा है जो युद्ध के साये में आई है। बड़ी संख्या में मस्जिदें नष्ट हो चुकी हैं, इसलिए लोग खुले आसमान के नीचे नमाज़ पढ़ने पर मजबूर हैं। इज़रायल द्वारा राहत सामग्री की आपूर्ति रोक देने के कारण खाद्य वस्तुओं की भी भारी कमी है और लोग ईद के तीन दिनों में जो थोड़ा बहुत सामान मिल जाए, उसी में गुज़ारा कर रहे हैं।इस समय ग़ाज़ा पट्टी में “न खाना है, न आटा, न पनाह, न मस्जिदें, न घर…”

जब भी किसी राहत केंद्र पर लोग जमा होते हैं, इज़रायली सेना उन्हें निशाना बनाती है, पहले गोलीबारी, फिर भीड़ का बहाना बनाकर राहत बंद। यही ‘डबल ब्लेम गेम’ अब तक सैकड़ों फ़िलिस्तीनियों की जान ले चुका है। अब हालात ये हैं कि तीन महीने से लगातार राहत सामग्री की आपूर्ति ठप्प है, और ग़ाज़ा के कई हिस्सों में लोग घास, पत्ते और गंदा पानी पीने पर मजबूर हैं। ग़ाज़ा के बच्चे जो पहले खिलौनों और मिठाइयों से ईद मनाते थे, अब मलबे में अपने मारे गए भाई-बहनों की क़ब्रों पर फूल चढ़ाकर रोते हैं।

कई बच्चों ने बताया कि वे दो दिन से कुछ खाए बिना ईद की नमाज़ के लिए उठे थे। ईद की मिठाइयाँ और नए कपड़े अब किसी अधूरी कहानी का हिस्सा हैं। वहां के बच्चों का कहना है, “हमारी ईद में अब सिर्फ़ बम गिरते हैं, मिठाई नहीं।” इज़रायली बमबारी के सबसे दुखद पहलुओं में यह शामिल है कि कई बार राहत केंद्र, अस्पताल, स्कूल, और यहां तक कि एंबुलेंस को भी जानबूझकर निशाना बनाया गया है। जून 2025 की शुरुआत में ‘अल-मावासी’ में स्थित एक यूएन स्कूल पर हमला हुआ जिसमें दर्जनों शरणार्थी मारे गए। इसी प्रकार, अल-कुद्स अस्पताल के नज़दीक चल रही एक मेडिकल कैंप पर बमबारी की गई।

गोलाबारी के बीच भी ईद नहीं रुकी

ख़ान यूनुस में नमाज़ के बाद ग़ाज़ा निवासियों ने एपी से बात करते हुए कहा, “यह हमारी सबसे बदतर ईद है। हम पर ज़ुल्म की जंग थोपी गई है।” इज़रायल ने उत्तरी ग़ाज़ा में फिर एक चेतावनी जारी की है कि इलाके को तुरंत खाली किया जाए क्योंकि सैन्य कार्रवाई तेज़ होने वाली है। ईद के दिन भी इज़रायली सेना ने ख़ान यूनुस के दक्षिणी हिस्सों में टैंकों से हमला किया। यह हमले हवाई बमबारी की आड़ में हुए, जहां जो भी हिला, उसे निशाना बनाया गया। इसी दौरान ग़ाज़ा के पूर्वी इलाक़े ‘अत-तुफ़ाह’ में टैंकों की एक और कार्रवाई देखी गई, जिसमें तोपों से गोलाबारी भी हुई।

भूख का क़हर और बंद राहत केंद्र

इन सभी कार्रवाइयों के बीच इज़रायल ने राहत केंद्र फिर से बंद कर दिए हैं, जिससे मानवीय संकट और गहरा गया है। ग़ाज़ा के कई इलाक़ों में भूख का संकट खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है। अमेरिका ने युद्ध-विराम के प्रस्ताव को वीटो कर दिया, जिससे स्थिति और बिगड़ गई है। अब इज़रायल, अमेरिकी समर्थन से, राहत वितरण पर भी नियंत्रण रख रहा है, लेकिन “ग़ाज़ा ह्यूमैनिटेरियन फ़ाउंडेशन” के ज़रिए चल रही राहत वितरण फिर से रोक दी गई है।

इन केंद्रों पर भीड़ जमा होते ही इज़रायली सेना फायरिंग करती है, और फिर इसी को बहाना बनाकर मदद रोकी जाती है। राहत वितरण तीन महीने से रुकी हुई है।

(यह लेखक के निजी विचार है लेखक रिज़वान हैदर मिडिल ईस्ट के जानकर एवं पत्रकार है)

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