घोषित तौर पर मजहबी आतंकवादियों ने धर्म पूछकर मार डाला तो बहुत सारे लोगों को लगा कि ये ग़लत है, धर्म पूछकर मारना अन्याय है, बर्बरता है।
बिल्कुल सही बात है। इससे भला कौन इंकार कर सकता है।
लेकिन पिछले ग्यारह साल से धर्म पूछकर या देखकर जाने कितनी हत्याएं कर दी गईँ। कभी गौ हत्या के नाम पर, कभी लव जिहाद के नाम पर तो कभी किसी और वज़ह से।
धर्म देखकर घरों पर बुल्डोजर चला दिए गए। धर्म पूछकर दुकानें हटवाईँ, बंद करवाई जा रही हैं। धर्म के आधार पर सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार किया जा रहा है।
किसी खास धर्म के हुए तो आपको किराए का मकान नहीं मिलेगा, बहुत सारी सोसायटी में धर्म की वज़ह से फ्लैट नहीं ख़रीद पाएंगे।
हमारे प्रधानमंत्री धर्म के आधार पर भाषण देते हैं। सरकार धर्म देखकर कानून बना रही है। बहुत सारे अदालती फ़ैसले धर्म को ध्यान में रखकर दे दिए गए।
जाने कितने धर्मस्थल तोड़े जा रहे हैं धर्म के नाम पर। विशेष धर्म को ध्यान में रखकर सीएए बनाया गया, तलाक का कानून बनाया गया और अब वक़्फ़ का कानून बना दिया गया।
अरे जो लोग मजहब के नाम पर मार-काट कर रहे हैं, उनसे क्यों अपेक्षा रखते हो कि वे इंसानों की तरह व्यवहार करेंगे। लेकिन तुम अगर अपने को इंसान समझते हो तो इंसानों की तरह व्यवहार क्यों नहीं करते।
इसके जवाब में आएंगे अंधभक्तों के घृणा और हिंसा से भरे कमेंट, जिनमें मां-बहन की ग़ालियाँ दी जाएंगी और इस तरह वे अपनी सभ्यता और संस्कृति का परिचय स्वयं दे देंगे।
(यह लेख डॉक्टर मुकेश कुमार के एक्स एकाउंट से उठाया गया है)