करीब दो दशक पहले की बात है, एक बार एक विधवा औरत अपने बेटी की शादी के लिए मुख्तार अंसारी के घर जिसको फाटक कहा जाता है, वहां पहुंची, मुख्तार अंसारी की निगाह गेट पर खड़ी उस औरत पर पड़ी, मुख्तार ने उन्हे बुलाया और पूछा क्या परेशानी है।
उन्होने बताया हमारी बेटी की शादी की तारीख तय है लेकिन पैसे नही है, मैं एक दिन और आई थी लेकिन कोई दिखा नही और मै चली गई, आज फिर आई हूँ।
मुख्तार ने अपने बड़े भाई अफजाल अंसारी को बुलाया और कहां कि कोई कैसे आकर यहां से वापस चला जा रहा है, देखिए इनकी बेटी की शादी है, आप पूरा इंतजाम कर दीजिए. अफजाल अंसारी ने पूरी व्यवस्था की और शादी के दिन वहां रहे भी। यह महज एक किस्सा है। ऐसी हजारों कहानियां है मदद की।
मुख्तार अंसारी के परिवार ने इस देश के लिए शहादत दी है। मुख्तार अंसारी के दादा डा.मुख्तार अहमद अंसारी लंदन में डाक्टर थे। गांधीजी और नेहरू जी के कहने पर वहां से आकर देश के स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। लंदन के जिस हास्पिटल में वह डाक्टर थे वहां के एक वार्ड का नाम आज भी उनके नाम पर है। उनका देश के स्वतंत्रता आंदोलन में कद इतना बडा़ था कि 1927 के राष्ट्रीय अधिवेशन में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने।
मुख्तार अंसारी के नाना ब्रिगेडियर उस्मान को देश के बंटवारे के समय मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा कि आप पाकिस्तान में चले आइए हम आपको पाकिस्तान की सेना का जनरल बना देंगें लेकिन ब्रिगेडियर उस्मान ने कहा कि मैं भारत मां का बेटा हूं, यहीं शहीद हो जाऊंगा लेकिन पाकिस्तान हरगिज नही आऊंगा। ब्रिगेडियर उस्मान के बहादुरी और शहादत के किस्से कौन नही जानता। जब वह पाकिस्तानी सेना से लड़ते शहीद हुए तो भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने उनकी अर्थी को कंधा दिया था।
गाजीपुर में मुख्तार अंसारी के दरवाजे पर जो भी गरीब इंसान शादी ब्याह, दवा, पढ़ाई के लिए मदद मांगने गया कभी निराश नही हुआ। किसी से जाति, धर्म और मजहब के बारे में नही पूछा गया कभी। सबकी मदद हुई।
(यह लेखक के अपने विचार है, लेखक अश्विनी सोनी सोशल एक्टिविस्ट है)