भारत में आजकल लोगों के अधिकारों एवं पहचान पर बहुत तेज़ी से हमले हो रहें हैं, कभी मुस्लिमों से उनके धार्मिक अधिकार छीने जाते हैं तो कभी आदिवासियों से उनकी पहचान छीनी जाती हैं।
ताज़ा मामला जम्मू कश्मीर का हैं जहां पर आदिवासी समुदाय गुज्जर एवं बकरवाल अपनी पहचान और अधिकारों की रक्षा के लिए पिछले 1 हफ़्ते से पैदल मार्च कर रहें हैं. हालांकि इस ख़बर को मीडिया नहीं दिखा रहा हैं लेकिन सोशल मीडिया पर ये मार्च काफ़ी चर्चा का विषय बना हुआ हैं।
खबरों के मुताबिक भाजपा सरकार अनुसूचित जनजाति की सूची में पहाड़ी भाषी, कोहली, गड्ढा ब्रह्मण समेत अन्य जातियों को भी शामिल करना चाहती हैं, जिससे जम्मू कश्मीर के आदिवासी समुदाय गुज्जर-बकरवाल का अस्तित्व खतरे में आ सकता हैं।
क्योंकि आदिवासी समुदाय होने के चलते गुज्जर-बकरवाल को 9 विधानसभा सीटों एवं शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 10 फ़ीसदी आरक्षण मिलता हैं. अगर अन्य समुदाय को भी इस सूची में जोड़ दिया जाएगा तो यह गुज्जर-बकरावल समुदाय के हक़ और अधिकारों पर हमला होगा।
अपने अस्तित्व को बचाने के लिए आदिवासी लोग पिछले एक हफ्ते से मार्च कर रहें हैं तथा सरकार की इस पॉलिसी का विरोध कर रहे हैं, यह मार्च 500 किलोमीटर लंबा होगा तथा 20 जिलों को कवर करेगा।
गुज्जर बकरवाल यूथ वेलफेयर कांफ्रेंस जम्मू कश्मीर के प्रवक्ता गुफ्तार अहमद का कहना हैं कि, हम अपने समुदाय के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए कुपवाड़ा से कठुआ तक पैदल मार्च कर रहे हैं. गुर्जर बकरवाल हमेशा देश के लिए खड़े रहे लेकिन दुर्भाग्य से सिर्फ वोट बैंक की राजनीति के लिए भाजपा आदिवासी पहचान को कमजोर कर रही है।
ट्राइबल आर्मी के अनुसार, जम्मू कश्मीर में सामान्य जातियों को एसटी वर्ग में शामिल किए जाने के खिलाफ स्थानीय आदिवासी गुज्जर बकरवाल जनजाति लोग पिछले पांच दिनों से पैदल #TribalBachaoMarch करके विरोध दर्ज करा रहें है. लेकिन ना अभी बेशर्म नरेंद्र मोदी सरकार ने इस पर संज्ञान लेकर वार्ता की ना मीडिया ने दिखाया।
बीजेपी एक तरफ सवर्णों को आर्थिक आधार पर 10% ईडब्ल्यूएस आरक्षण देने का संविधान विरोधी कृत्य कर रही है वहीं दूसरी तरफ हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर में पहाड़ी भाषी होने के आधार पर स्थानीय सवर्ण जातियों को एसटी वर्ग में शामिल करने का प्रस्ताव ला रही है. ये अनैतिक व असंवैधानिक है।