राजधानी दिल्ली में जमीअत उलमा-ए-हिंद की कार्यसमिति की एक अहम बैठक का अयोजन हुआ जिसमें अध्यक्ष जमीअत उलमा-ए-हिंद मौलाना अरशद मदनी ने देश की वर्तमान स्थिति पर विचार-विमर्श करते हुए देश में बढ़ती हुई सांप्रदायिकता, उग्रवाद, बिगड़ती क़ानून व्यवस्था और मुस्लिम अल्पसंख्यक के खिलाफ घोर भेदभाव पर गंभीर चिंता व्यक्त की।
बैठक में कहा गया कि देश की एकता, शांति और अखण्डता के लिए यह कोई अच्छा संकेत नहीं है, संप्रदायिक ताकत द्वारा संविधान के उल्लंघन का यह तरीक़ा देश के लोकतांत्रिक ढाँचे को बर्बाद कर रहा है, इसके साथ ही अन्य अहम मिल्ली और सामाजिक मुद्दों, आधुनिक शिक्षा, समाज सुधार के तरीकों पर विस्तार से चर्चा हुई।
बैठक में विभिन्न मामलों को लेकर जमीअत उलमा-ए-हिंद की क़नूनी इमदाद कमेटी जो मुकदमे लड़ रही है उनकी प्रगति की समीक्षा भी की गई, इन मुकदमों में असम में नागरिकता और देश में धार्मिक स्थान संरक्षण एक्ट को बाक़ी रखे जाने वाले विचाराधीन अहम मुकदमे भी शामिल हैं, असम नागरिकता के संबंधम में सुप्रीम कोर्ट ने जो एनआरसी कराई है उसका आधार 1971 है, अगर 1951 को आधार बनाया गया तो एक बार फिर असम के लाखों लोगों की नागरिकता पर संकट मंडलाने लगेगा। इस सिलसिला में सुप्रीम कोर्ट 10 जनवरी को सुनवाई करेगी, इस मामले में जमीअत उलमा-ए-हिंद एक अहम पार्टी है, जमीअत उलमा-ए-हिंद की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, सलमान खुर्शीद, इंदिरा जयसिंह और एडवोकेट आन रिकार्ड फ़जैल अय्यूबी पेश होंगे।
इसी तरह पूजा स्थल संरक्षण अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 9 जनवरी को सुनवाई करेगी, जमीअत उलमा-ए-हिंद ने याचिका दाखिल करके 1991 के पूजा स्थल संरक्षण कानून की रक्षा का अदालत से अनुरोध किया है। लम्बी चर्चा के बाद तय पाया कि जमीअत उलमा-ए-हिंद के निदेशक मण्डल की बैठक बिहार की राजधानी पटना में आयोजित की जाएगी, इसके लिए 24-25 फरवरी की तारीखें तय की गई हैं जबकि 26 फरवरी को आम सभा होगी।
गरीब और जरूरतमंद छात्रों को दी जाने वाली स्कालरशिप को छात्रों की बढ़ती संख्या को देखते हुए एक करोड़ से बढ़ा कर इस वर्ष दो करोड़ रुपये कर दी गई है। आशा है कि हम अपने प्रस्तावित बजट से अधिक से अधिक जरूरतमंद बच्चों तक अपनी आर्थिक सहायता पहुंचा सकेंगे।
इस अवसर पर कार्यसमिति से संबोधित करते हुए अध्यक्ष जमीअत उलमा-ए-हिंद मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि एक ओर जहां धार्मिक उग्रवाद को हवा देने और लोगों के दिमाग में नफरत का ज़हर भरने का निन्दनीय सिलसिला पूरे ज़ोर-शोर से जारी है, वहीं दूसरी ओर मुसलमानों को शिक्षा और राजनीतिक रूप से लाचार बनाने की खतरनाक योजना भी शुरू हो चुकी है।
मौलाना मदनी ने कहा कि पिछले चंद बरसों में देश की वित्तीय एवं आर्थिक स्थिति बहुत कमज़ोर हुई है और बेरोज़गारी में खतरनाक हद तक इज़ाफा हो चुका है मगर इसके बावजूद सत्ता में बैठे लोग देश के विकास का ढिंडोरा पीट रहे हैं और इस अभियान में जानिबदार मीडीया उनका खुल कर साथ दे रहा है।
उन्होंने कहा कि आर्थिक और बेरोजगारी की समस्या से लोगों का ध्यान हटाने के लिए ही धार्मिक उग्रवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है। मौलाना मदनी ने आगे कहा कि धार्मिक घृणा और वर्ग के आधार पर लोगों को बांटने का यह खेल देश को तबाह कर देगा, धर्म का नशा पिलाकर बहुत दिनों तक मूल समस्या से गुमराह नहीं किया जा सकता। रोटी, कपड़ा और मकान इन्सान की मूल आवश्यकताएं हैं इसलिए नफरत की सियासत को बढ़ावा देने की जगह अगर रोजगार के साधन नहीं पैदा किए गए, पढ़े लिखे युवाओं को नौकरियां नहीं दी गईं तो वो दिन दूर नहीं जब देश की युवा पीढ़ी पूर्ण रूप से प्रदर्शनकारी हो कर सड़कों पर नजर आएगी।
असम, मध्य प्रदेश और उत्तराखण्ड में मुसलमानों को बेघर करने की योजना की कड़े शब्दों में निंदा करते हुए मौलाना मदनी ने कहा कि असम में सरकारी ज़मीनों पर कब्ज़ा करने के आरोप में जहां सौ-सौ साल से बसने वाली मुस्लिम बस्तियों को उजाड़ा जा रहा है वहीं मध्य प्रदेश के शहर उज्जैन में महाकुंभ की एक पार्किंग के निर्माण के लिए मुसलमानों को बेघर कर देने की योजना बनाई जा रही है, जबकि उत्तराखण्ड के हरिद्वार में रेलवे ट्रैक को चैड़ा करने की आड़ में 43 सौ मुस्लिम और कुछ गैरमुस्लिम परिवारों को बेघर कर देने का अभियान शुरू हो चुका है। लेकिन सुप्रीमकोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी है लेकिन ख्तरा अभी बरकरार है।
उन्होंने कहा कि यह क्या न्याय है कि दशकों से आबाद लोगों को बेघर कर दिया जाए, उन्हें उचित मुआवजा भी न दिया जाए और उनके पुनर्वास के लिए वैकल्पिक ज़मीन भी न दी जाए।
देश में तेज़ी से फैल रहे इर्तिदाद (धर्मत्याग) के फित्ने को ख्तरनाक क़रार देते हुए मौलाना मदनी ने कहा कि मुसलमानों के खिलाफ इसे योजनाबद्ध तरीक़े से शुरू किया गया है, जिसके तहत हमारी बच्चियों को निशाना बनाया जा रहा है, अगर इस फित्ने को रोकने के लिए तुरंत प्रभावी उपाय न किए गए तो आने वाले दिनों में स्थिति विस्फोटक हो सकती है, उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि इस फित्ने को सहशिक्षा के कारण ऊर्जा मिल रही है और हमने इसी लिए इसका विरोध किया था। तब मीडीया ने हमारी इस बात को नमारात्मक अंदाज़ में प्रस्तुत करते हुए यह प्रोपैगंडा किया था कि मौलाना मदनी लड़कियों की शिक्षा के खिलाफ हैं, जबकि हम सहशिक्षा के खिलाफ हैं, लड़कियों की शिक्षा के खिलाफ नहीं।
मौलाना मदनी ने कहा कि मुसलमानों के कल्याण और उनकी शिक्षा के विकास के लिए अब जो कुछ करना है हमें ही करना है। मौलाना मदनी ने कहा कि देश की आज़ादी के बाद हम एक समूह के रूप में इतिहास के बहुत नाजुक मोड़ पर आ खड़े हुए हैं, हमें एक ओर अगर विभिन्न प्रकार की समस्याओं में उलझाया जा रहा है तो दूसरी ओर हम पर आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और शिक्षा के विकास के रास्ते बंद किए जा रहे हैं, इस खामोश साजिश को अगर हमें नाकाम करना है और सफलता पानी है तो हमें अपने बच्चों और बच्चियों के लिए अलग अलग शिक्षण संस्थाएं खुद स्थापित करनी होंगे।
उन्होंने अंत में कहा कि क़ैमों का इतिहास गवाह है कि हर दौर में विकास की चाभी शिक्षा रही है, इसलिए हमें अपने बच्चों को न केवल उच्च शिक्षा की ओर आकर्षित करना होगा बल्कि उनके अंदर से हीन भावना को बाहर निकाल कर हमें उन्हें प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए प्रोत्साहन देना होगा। इस तरह हम अपने खिलाफ होने वाली हर साजिश का मुंह तोड़ जवाब दे सकते हैं।