देश में जब भी मुसलमानों के ऊपर कोई बात आती हैं या मुसलमानों पर जुल्म ढहाया जाता हैं तो अक्सर देखा जाता हैं कि ज्यादातर राजनेता और बुद्धिजीवी उस मुद्दे को नज़रअंदाज़ करने की कोशिश करते हैं या किसी ओर मुद्दे की आड़ में उस बात को दबा देते हैं।
इस मामले पर पत्रकार तारिक अनवर चंपारणी का कहना हैं कि, जब असल मुद्दा से भटकाने वाली पोस्ट मेरी नजर से गुजरती है तब मैं पोस्टकर्ता को अनफॉलो कर देता हूं. भले वह कितना बड़ा लिखाड़ी क्यों न हो. बाबरी मस्जिद शहीद की गई तो तर्क दिया गया की मण्डल आंदोलन को कमज़ोर करना मक़सद था।
बाबरी मस्जिद की जगह राममंदिर बनाने का फैसला आया तो तर्क दिया गया की ओबीसी आरक्षण पर चल रही तलवार से ध्यान भटकाना था. मुसलमानों की लिंचिंग होती है तब तो तर्क दिया जाता है की राज्यों के चुनावों में भाजपा को चुनाव जीतना था।
CAA/NRC लाया गया तब तर्क दिया गया की असम और बंगाल का चुनाव जीतने के लिए लाया गया. उत्तराखण्ड रेलवे कॉलोनी का ममला आया तब तर्क दिया गया की राहुल की भारत जोड़ों यात्रा से ध्यान भटकाने के लिए किया गया।
दिल्ली दंगा हुआ तब तर्क दिया गया की उत्तर प्रदेश चुनाव जीतने के लिए किया गया. बुर्का का मामला आया तब तर्क दिया गया की बेरोजगारी और महंगाई से ध्यान भटकाने के लिए तूल दिया गया।
अभी जुनैद और नासिर का मामला आया तो उसे राजस्थान के चुनाव से जोड़ा गया. अतीक के बेटा असद का एनकाउंटर हुआ तब तर्क दिया गया की उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव जीतने के लिए भाजपा ने जमीन तैयार किया है।
आज अतीक अहमद और उसके परिवार वालों की हत्या हो गई तो तर्क दे रहे है की सत्यपाल मलिक के ब्यानों को दबाने का प्रयास है।
यानि इस देश के सेक्युलर, समाजवादी और सामाजिक न्याय की बात करने वाले बुद्धिजीवियों के लिए मुसलमानों का शोषण, हत्या और अन्याय असल मुद्दा नहीं है।