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मौलाना कलीम सिद्दीकी और उमर गौतम को सज़ा का देने का फैसला अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों को एक खास संदेश देने के लिए तैयार किया गया: सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी

जमाअत-ए- इस्लामी हिन्द के अमीर (अध्यक्ष) सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी ने एनआईए-एटीएस कोर्ट के हालिया फैसले पर चिंता व्यक्त की है जिसमें मौलाना कलीम सिद्दीकी, मौलाना उमर गौतम और 12 अन्य को अवैध धर्मांतरण मामलों में कथित संलिप्तता के लिए दोषी ठहराया गया है।

मीडिया को जारी एक बयान में जमाअत के अमीर ने एनआईए-एटीएस कोर्ट के फैसले पर गहरी निराशा और चिंता व्यक्त की, जिसमें मौलाना कलीम सिद्दीकी, मौलाना उमर गौतम एवं 12 अन्य को भारतीय दंड संहिता की धाराओं 417,120बी, 153ए, 153बी, 295ए, 121ए, 123 और अवैध धर्मांतरण अधिनियम (धारा 3, 4 और 5) के तहत दोषी ठहराया गया है और आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है।

हम ऐसे गंभीर आरोप लगाने के संबंध में माननीय न्यायालय के आकलन से पूरी तरह असहमत हैं। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में कौन किसी को अपना धर्म बदलने के लिए मजबूर कर सकता है? इस्लाम इसकी बिल्कुल भी इजाजत नहीं देता।

प्रत्येक व्यक्ति को अपनी पसंद का धर्म चुनने, पालन करने और प्रचार करने का अधिकार है और यह अधिकार हमारे संविधान में निहित है। कोई भी किसी नागरिक को इस अधिकार से वंचित नहीं कर सकता। आरोपों की गंभीरता, जैसे – आतंकवाद, आपराधिक षडयंत्र, शत्रुता को बढ़ावा देना, तथा राज्य के विरुद्ध अपराध की साजिश रचना – न केवल निराधार हैं, बल्कि गंभीर रूप से परेशान करने वाली मिसाल भी स्थापित करते हैं।

हमारा मानना है कि ऐसे आरोप न्याय और लोकतंत्र के उन सिद्धांतों को कमजोर करते हैं जिन्हें हमारा संविधान कायम रखने का प्रयास करता है।

ऐसा लगता है कि यह पूरा मामला अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों को एक खास संदेश देने के लिए तैयार किया गया है जो बिना किसी भय या दबाव के अपने धर्म का पालन और प्रचार-प्रसार करने के संवैधानिक अधिकार का पालन कर रहे हैं।

जमाअत के अमीर ने कहा, “जिस तरह से मौलाना सिद्दीकी और मौलाना गौतम को गिरफ्तार किया गया और फंसाया गया, साथ ही कुछ मीडिया की सनसनीखेज प्रतिक्रियाओं से पता चलता है कि पूरी कवायद राजनीतिक लाभ के लिए भय, धमकी और नफरत का माहौल बनाकर जनता की भावनाओं का फायदा उठाने के लिए थी।

यह मामला एक खतरनाक मिसाल कायम करता है, जो किसी व्यक्ति के अपनी पसंद के धर्म का पालन करने और उसका प्रचार करने के मौलिक अधिकार पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।

वास्तविक सार्वजनिक मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए सांप्रदायिक और भावनात्मक रूप से आवेशित माहौल बनाना अत्यंत खेदजनक है।
हम न्यायप्रिय लोगों, संगठनों और राजनीतिक दलों से आग्रह करते हैं कि वे ऐसे अन्याय के खिलाफ आवाज उठाएं।

हम आशा करते हैं कि उपरोक्त दोषसिद्धि पर निवारण हेतु मामला उच्चतर न्यायालयों तक ले जाया जा सकेगा। यह मामला मौलिक अधिकारों, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और भारत के संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों से संबंधित है। इन अधिकारों और स्वतंत्रताओं का कोई भी उल्लंघन बहुसंख्यकवाद और अधिनायकवाद का समर्थन है तथा लोकतंत्र और संवैधानिक कानून के शासन के लिए खतरा है।

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