अखिल भारतीय मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत (एआईएमएमएम) ने देश में बढ़ते सांप्रदायिक ध्रुवीकरण, कमजोर होते लोकतांत्रिक मूल्यों और मुसलमानों को व्यवस्थित तरीक़े से निशाना बनाए जाने पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। रविवार को आयोजित कार्यकारी परिषद और आम सभा की संयुक्त बैठक में संगठन ने मौजूदा हालात को “गहराता संकट” बताया।
एआईएमएमएम के अध्यक्ष एडवोकेट फ़िरोज़ अहमद ने कहा कि देश भय, धमकी और सत्तावादी अतिक्रमण के दौर से गुजर रहा है। उन्होंने कहा, “हमारा सबसे शक्तिशाली हथियार वोट है, लेकिन आज इसका भी दुरुपयोग हो रहा है या इसे समाज के सबसे कमज़ोर वर्गों से छीन लिया जा रहा है। अब समय है कि उत्पीड़ित लोग एकजुट हों, रणनीति बनाएं और मिलकर काम करें।”
बैठक में बरेली की हालिया हिंसा और मौलाना तौकीर रज़ा खान की गिरफ़्तारी की कड़ी आलोचना की गई। प्रस्ताव में कहा गया कि “आई लव मुहम्मद” का नारा लगाने वालों पर पुलिस कार्रवाई संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
एआईएमएमएम ने भाजपा शासित राज्यों में मुस्लिम परिवारों के घरों पर बुलडोज़र चलाने की निंदा करते हुए इसे “सज़ा” की राजनीति बताया। संगठन ने पीड़ितों के लिए मुआवज़ा और जवाबदेही तय करने की मांग की।
इसके अलावा, वक्फ संशोधन अधिनियम को निरस्त करने और सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश को खारिज करने का प्रस्ताव भी पारित किया गया।
बैठक में दिल्ली, महाराष्ट्र, झारखंड, गुजरात, कश्मीर और अन्य राज्यों से आए नेताओं ने प्रस्तावों का समर्थन किया। इसमें मौलाना असगर अली इमाम मेहदी सलाफी, सैयद अज़ीज़ पाशा, कुंवर दानिश अली, डॉ. अनवारुल इस्लाम, प्रोफ़ेसर बसीर अहमद खान और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के मुहम्मद आसिफ जैसे नेताओं ने भाग लिया और एकता व युवा नेतृत्व का आह्वान किया।
एक वरिष्ठ सदस्य ने बैठक की भावना को सारांशित करते हुए कहा, “नागरिक अधिकारों, वक्फ संपत्तियों और लोकतांत्रिक स्वतंत्रता की रक्षा का संघर्ष केवल एक सामुदायिक मुद्दा नहीं है, यह एक राष्ट्रीय अनिवार्यता है।”

