कर्नाटक विधानसभा ने गुरुवार को भाजपा के तीखे विरोध के बावजूद घृणास्पद भाषण और घृणा अपराध (रोकथाम) विधेयक, 2025 पारित कर दिया।
इस कानून के साथ कर्नाटक ऐसा करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है, जिसने घृणास्पद भाषण और उससे जुड़े अपराधों से निपटने के लिए एक समर्पित कानून बनाया है।
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार द्वारा लाए गए इस विधेयक का उद्देश्य समुदायों के बीच नफरत, दुश्मनी और असामंजस्य फैलाने वाली गतिविधियों पर सख्त रोक लगाना है। कानून के तहत दोषी पाए जाने पर सात साल तक की कैद और एक लाख रुपये तक जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
इस विधेयक को 4 दिसंबर को राज्य मंत्रिमंडल की मंजूरी मिली थी और 10 दिसंबर को गृह मंत्री जी. परमेश्वर ने इसे विधानसभा में पेश किया था। अंतिम चरण में एक संशोधन के जरिए बार-बार अपराध करने पर अधिकतम सजा को पहले प्रस्तावित 10 साल से घटाकर सात साल कर दिया गया।
कानून में घृणास्पद भाषण की परिभाषा व्यापक रखी गई है। इसके तहत मौखिक, लिखित, सांकेतिक, दृश्य या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से सार्वजनिक रूप से की गई ऐसी कोई भी अभिव्यक्ति शामिल होगी, जो धर्म, जाति, लिंग, भाषा, यौन अभिविन्यास या विकलांगता के आधार पर किसी व्यक्ति या समूह के खिलाफ नफरत, शत्रुता या दुर्भावना फैलाने का उद्देश्य रखती हो।
विधेयक पर बहस के दौरान सदन में उस समय भारी हंगामा हुआ जब शहरी विकास मंत्री बायराथी सुरेश ने तटीय कर्नाटक में बढ़ती घृणास्पद घटनाओं का जिक्र किया। इस पर भाजपा विधायकों ने सरकार पर एक खास क्षेत्र को निशाना बनाने का आरोप लगाते हुए सदन के वेल में आकर विरोध प्रदर्शन किया। हालांकि हंगामे के बावजूद सरकार ने ध्वनि मत से विधेयक पारित करा लिया।
नए कानून के तहत प्रशासन को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और मध्यस्थों को आपत्तिजनक सामग्री हटाने के निर्देश देने, पीड़ितों को मुआवजा दिलाने और संगठनों को उनके बैनर तले हुए घृणा अपराधों के लिए जवाबदेह ठहराने का अधिकार मिलेगा।
जहां सरकार और समर्थक इसे बढ़ते सांप्रदायिक तनाव के बीच सामाजिक सौहार्द बनाए रखने की दिशा में जरूरी कदम बता रहे हैं, वहीं भाजपा और अन्य आलोचकों का कहना है कि इस कानून का दुरुपयोग कर राजनीतिक विरोधियों, पत्रकारों और असहमति की आवाजों को दबाया जा सकता है। अब इस कानून के लागू होने के बाद उसके क्रियान्वयन और प्रभाव पर सबकी नजरें टिकी रहेंगी।

