अफगानिस्तान में सत्ता परिवर्तन हो चुका है अब वहां की कमान तालिबान के नेताओं के हाथ में आ चुकी है लेकिन भारत का अभी तक अफगानिस्तान को लेकर रूख साफ नही है।
भारत जिसको आतंकवादी संगठन मानता था अब अफगानिस्तान पर वही तालिबान शासन करने वाला है इसलिए भारत सरकार को अब अपना रूख साफ कर देना चाहिए।
ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुसलीमिन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष एवं हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने तालिबान से बातचीत की वकालत की है।
असदुद्दीन ओवैसी का कहना है कि “अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी एक दिन जरूर होनी थी। 2013 की शुरुआत में, मैंने सरकार को हमारे सामरिक हितों को सुरक्षित करने के लिए तालिबान के साथ राजनयिक मुददों पर बातचीत करने की सलाह दी थी। हमने अफगानिस्तान में 3 अरब डॉलर का निवेश किया है। लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया और अब सरकार क्या करेगी?
THREAD: US withdrawal from #Afghanistan was inevitable. As early as 2013, I’d advised govt to open diplomatic channels with #Taliban to secure our strategic interests. We’ve made $3 billion in investments in Afghanistan. But no one paid heed & now what’ll the govt do? 1/3 pic.twitter.com/uTyCZMzdhg
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) August 16, 2021
असदुद्दीन ओवैसी ने 2019 में भी अफगानिस्तान से अमेरिका की सेना के वापस जाने की सच्चाई के बारे में अपनी चिंताओं को दोहराया था।
ओवैसी के अनुसार जब पाकिस्तान, अमेरिका और तालिबान मास्को में बातचीत कर रहे थे तब हमारा प्रधानमंत्री कार्यालय यह गिन रहा था कि मोदीजी ने कितनी बार ट्रम्प को गले लगाया। हम अभी भी नहीं जानते कि सरकार की अफगानिस्तान नीति क्या है।
भारत तालिबान को मान्यता दे या नहीं, सरकार को बातचीत के माध्यम खोलने होंगे। यहां ऐसा कुछ नहीं है जो नीले रंग से बाहर है। हमेशा की तरह नरेंद्र मोदी जी की सरकार अपनी गहराई से बाहर होती दिख रही है। यह तभी कार्य करना शुरू करते है जब कोई संकट दरवाजे पर होता है।