आतंकवाद-निरोधक कानूनों का दुरुपयोग कर असहमति की आवाजों और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है: SDPI
सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) ने दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा उमर खालिद, शरजील इमाम और सात अन्य कार्यकर्ताओं की जमानत अर्जी खारिज किए जाने पर कड़ा विरोध जताया है।
एसडीपीआई के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मोहम्मद शफी ने इसे “न्याय में देरी यानी न्याय से इनकार” बताते हुए गहरी चिंता व्यक्त की।
हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति नवीन चावला और शालिंदर कौर की पीठ ने आज फैसला सुनाया। इन कार्यकर्ताओं को 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों से जुड़े “बड़े षड्यंत्र” मामले में कठोर यूएपीए कानून के तहत हिरासत में रखा गया है और वर्षों बीत जाने के बावजूद मुकदमे की सुनवाई शुरू नहीं हुई है।
एसडीपीआई का कहना है कि आतंकवाद-निरोधक कानूनों का दुरुपयोग कर असहमति की आवाजों और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है।
संगठन ने कहा कि उमर खालिद, शरजील इमाम, खालिद सैफी, गुलफिशा फातिमा, मीरान हैदर, शिफा-उर-रहमान, शादाब अहमद, अतहर खान और मोहम्मद सलीम खान छात्र और सामाजिक कार्यकर्ता हैं, न कि आतंकवादी।
पार्टी ने आरोप लगाया कि अभियोजन पक्ष केवल भाषणों, चैट्स और गवाहों के बयानों पर निर्भर है, जबकि किसी के हिंसा में सीधे शामिल होने का ठोस सबूत नहीं है। यह मामला दर्शाता है कि कैसे यूएपीए का इस्तेमाल “सज़ा के बजाय प्रक्रिया को ही सज़ा” बनाने के लिए किया जा रहा है।
एसडीपीआई ने यह भी सवाल उठाया कि जब देवांगना कलिता, नताशा नरवाल और आसिफ इकबाल तन्हा को 2021 में जमानत मिल चुकी है तो बाकी नौ कार्यकर्ता अब भी जेल में क्यों हैं। पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप कर निष्पक्ष सुनवाई और जमानत सुनिश्चित करने की मांग की है।
संगठन ने सरकार से यूएपीए कानून को वापस लेने या उसमें सुधार करने और दिल्ली दंगों की स्वतंत्र जांच कराकर पीड़ितों को न्याय दिलाने की अपील की है।