भाजपा के राज्यसभा सांसद भीम सिंह ने संविधान की प्रस्तावना से “धर्मनिरपेक्ष” और “समाजवादी” शब्द हटाने के लिए राज्यसभा में एक निजी सदस्य विधेयक पेश किया है। उनका कहना है कि ये दोनों शब्द मूल संविधान का हिस्सा नहीं थे और इन्हें आपातकाल के दौरान अलोकतांत्रिक तरीके से जोड़ा गया था।
सिंह ने कहा कि 1949 में स्वीकृत संविधान में यह शब्द शामिल नहीं थे। बाद में इन्हें 1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार द्वारा लाए गए 42वें संशोधन के तहत जोड़ा गया, जब विपक्षी नेता—अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी और जॉर्ज फर्नांडीस—जेल में थे। उन्होंने आरोप लगाया कि “लोकतंत्र को कुचलते हुए” ये संशोधन किए गए।
सिंह के अनुसार, संविधान सभा ने पहले ही इन विषयों पर व्यापक चर्चा की थी और डॉ. भीमराव आंबेडकर ने स्पष्ट किया था कि संविधान की संरचना ही भारत को धर्मनिरपेक्ष बनाती है, इसलिए अलग से इस शब्द की आवश्यकता नहीं है। वहीं “समाजवादी” शब्द जोड़े जाने पर उन्होंने कहा कि आंबेडकर ने भविष्य की पीढ़ियों को किसी तय राजनीतिक-आर्थिक नीति से न बांधने की चेतावनी दी थी।
उन्होंने दावा किया कि दोनों शब्द राजनीतिक हित साधने के उद्देश्य से शामिल किए गए— “समाजवादी” शब्द सोवियत संघ को खुश करने के लिए और “धर्मनिरपेक्ष” शब्द मुसलमानों को संतुष्ट करने के लिए है।
सिंह ने कहा कि भारत 1976 से पहले भी पूर्णतः धर्मनिरपेक्ष था और पूछा— “क्या नेहरू और शास्त्री जी सांप्रदायिक सरकार चला रहे थे?”
उन्होंने स्पष्ट किया कि उनके विधेयक में किसी अन्य संवैधानिक प्रावधान या मौलिक अधिकार में बदलाव की मांग नहीं की गई है, बल्कि केवल प्रस्तावना को उसके मूल स्वरूप में पुनर्स्थापित करने की बात है।
हालाँकि उन्होंने यह स्वीकार किया कि निजी सदस्य विधेयकों के कानून बनने की संभावना बेहद कम है। अब तक केवल 14 निजी विधेयक ही कानून बने हैं और 1970 के बाद से कोई भी दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित नहीं हुआ।
सिंह ने इस बात से इनकार किया कि यह संविधान पर हमला है। उनके मुताबिक, उनका उद्देश्य संविधान को उसके मूल दर्शन के अनुरूप बनाए रखना है।

