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थाईलैंड से इज़राइल तक: एक थाई किसान रिन्थालाक की अधूरी यात्रा और 7 अक्टूबर की त्रासदी

सुध्तिसाक रिन्थालाक थाईलैंड का एक साधारण, शांत स्वभाव वाला कृषि मज़दूर अपने परिवार के लिए उम्मीद का सहारा था। उसके घर की दीवारों पर बस यही सपना लिखा था कि कड़ी मेहनत कर वह अपने बच्चों को बेहतर भविष्य दे सके। इसी सपने ने उसे हज़ारों किलोमीटर दूर, इज़राइल के खेतों तक पहुंचा दिया।

थाईलैंड के ग्रामीण इलाक़ों में रोज़गार सीमित था। खेती की कमज़ोर पैदावार और बढ़ते खर्चों ने सुध्तिसाक को विदेश जाने का कठिन फ़ैसला लेने पर मजबूर किया। वह अपने छोटे बेटे की स्कूल फ़ीस, अपनी बुज़ुर्ग माँ की दवाइयों और परिवार की रोटी-पानी की चिंता से बोझिल था। इज़राइल में मज़दूरी भले कठिन थी, पर कमाई स्थिर थी और यही उसे आशा देता था।

इज़राइल में उसके साथी याद करते हैं कि सुध्तिसाक हमेशा मुस्कुराकर सबका अभिवादन करता था। खेतों में लंबी पारी के बाद भी वह घरवालों से वीडियो-कॉल करना नहीं भूलता था। उसकी जेब में हमेशा अपने बच्चों की पुरानी तस्वीरें रहती थीं वही तस्वीरें जो उसे हर सुबह मेहनत करने की ताक़त देती थीं।

लेकिन 7 अक्टूबर 2023 की सुबह उसकी इस मेहनत, उसके सपनों और उसके परिवार की उम्मीदों को ऐसी बर्बरता ने निगल लिया, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। उस दिन इज़राइल के दक्षिणी इलाक़ों पर अचानक हमला हुआ। खेतों, प्रभावित समुदायों और श्रमिक आवासों में मौजूद कामगार भी इस हिंसा की चपेट में आ गए।

गोलियों और विस्फोटों की आवाज़ों के बीच सुध्तिसाक अपने साथियों के साथ सुरक्षित जगह की ओर भागने की कोशिश कर रहा था, लेकिन यह तूफ़ान बहुत तेज़ था। निहत्थे श्रमिकों पर भी कोई दया नहीं दिखाई गई। सुध्तिसाक को न केवल बेरहमी से मारा गया, बल्कि उसके शरीर को ग़ज़ा ले जाया गया यह एक ऐसा कृत्य था जिसने दुनिया को दहला दिया।

उस दिन 39 थाई नागरिकों की हत्या कर दी गई और 31 को बंधक बना लिया गया।
ये लोग न सैनिक थे, न राजनेता बस मेहनतकश कामगार, जो अपने परिवारों की भूख मिटाने के लिए धरती जोत रहे थे।
सुध्तिसाक की मौत सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मज़दूरों की उस अनदेखी दुनिया का दर्द है जो सीमाओं के पार जाकर दूसरे देशों की ज़मीन सींचते हैं, पर कभी-कभी घृणा और हिंसा का सबसे आसान निशाना बन जाते हैं।

उसकी माँ आज भी कहती हैं, “मेरा बेटा केवल मेहनत करना जानता था। उसे लड़ाई-झगड़े से कोई मतलब नहीं था।” उसकी पत्नी को अब भी विश्वास नहीं होता कि जो आदमी रोज़ व्हॉइस मैसेज भेजकर बच्चों का हाल पूछता था, वह अब कभी वापस नहीं आएगा।

यह कहानी सिर्फ सुध्तिसाक की नहीं यह हर उस निर्दोष इंसान की कहानी है जिसे हिंसा ने छीन लिया। यह हमें याद दिलाती है कि आतंक का कोई औचित्य नहीं होता। और चाहे दुनिया कितनी भी उलझ जाए, ऐसे निर्दोष जीवन सबसे बड़ी कीमत चुकाते हैं।

सुध्तिसाक रिन्थालाक अब दुनिया में नहीं है, पर उसकी मेहनत, उसकी मुस्कान और उसका सपना एक बेहतर भविष्य हमेशा जीवित रहेगा।

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