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युवा लेखक शहाब खान ने फिलिस्तीन के हालात को लेकर ग़ज़ा डायरी के नाम से एक किताब लिखी है जो आजकल काफी चर्चा का विषय बनी हुई है।
शहाब खान के मुताबिक ‘ग़ज़ा डायरी’ सिर्फ़ एक किताब नहीं, बल्कि एक ज़िंदा दस्तावेज़ है— उन अनकहे दर्द , उम्मीदों, और सपनों का आईना जो ग़ज़ा और फ़िलिस्तीन की ज़मीन पर रोज़मर्रा की जंग लड़ते लोगों और मासूम बच्चों की ज़िंदगी में बसते हैं।
यह कहानी हमें उस संघर्षशील माहौल में ले जाती है जहाँ की आग में भी इंसानियत की चमक बची रहती है, और हर टूटे हुए सपने के बीच उम्मीद की किरण झिलमिलाती है।
यह उन सपनों का संग्रह है जो आँखों में पलते हैं, पर होंठों पर नहीं आ पाते। यह उन आवाज़ों का गवाह है जो युद्ध के शोर में दब जाती हैं, पर ख़ामोश नहीं होतीं।
यह एक 12 साल की बच्ची मरियम की कहानी है, जो जंग से घिरे ग़ज़ा में अपनी ज़िन्दगी की सच्ची बातें अपनी डायरी में लिखती है। इस डायरी के ज़रिए मरियम हमें बताती है कि कैसे एक बच्ची भी डर, तबाही और मुश्किल हालात में उम्मीद और हिम्मत से जीती है।
यह किताब जंग में फँसे लोगों की ज़िन्दगी को एक सच्चे और मासूम नज़रिए से दिखाती है। मरियम की बातें दिल को छू जाती हैं और हमें सोचने पर मजबूर करती हैं कि ऐसे हालात में भी लोग कैसे आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं।
किताब का ई-बुक एडिशन हिन्दी और अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में वेबसाइट पर मुफ़्त में उपलब्ध है तथा अंग्रेज़ी में पेपरबैक एडीशन भी अमेज़न पर उपलब्ध है।
हिन्दी एडिशन : https://authorshahabkhan.com/gaza-diary-hindiedition/
अंग्रेज़ी एडिशन : https://authorshahabkhan.com/gaza-diarybook/