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लोकतंत्र का महापर्व और मुस्लिम समुदाय: मोहम्मद स्वालेह अंसारी

4 जून 2024 को भारतीय लोकतंत्र के सबसे बड़े महापर्व का परिणाम जनता के सामने है। एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी नरेंद्र मोदी की अगुवाई में सरकार बनाने में सफल हुई। यह चुनाव और इसका परिणाम अपने साथ कई संदेश और कई चुनौतियों के साथ आया। विपक्ष लगातार तीसरी बार सरकार बनाने में असफल रही और अलग अलग राज्यों में शून्य पर खड़ी दिखाई दी। विपक्ष गठबंधन ‘INDIA’ इस बार के परिणामों से खुश दिखाई दी और कार्यकर्ता ऊर्जावान नजर आए। इस लेख में हम सरकार के गठन और विपक्ष के सरकार बनाने से दूरी पर चर्चा करेंगे। इस पूरे लेख का केंद्र बिंदु मुस्लिम राजनीति, सरकार एवम् विपक्ष है।

चुनाव के बाद 3 महीने हो चुके हैं, कुछ राज्यों में राज्य के चुनाव की घोषणा हो चुकी है ऐसे में तमाम शंकाओं में बीच सरकार बन कर चलती दिखाई दे रही है। पिछले बार की अपेक्षा इस बार सरकार कुछ दबाव में है। यह दबाव लोक सभा के अध्यक्ष पद के चुनाव आयोजन में दिखा भी। ये अलग बात है कि ओम बिरला जो पिछली बार लोकसभा अध्यक्ष या स्पीकर थे वही पुनः लोकसभा अध्यक्ष चुने गए। उम्मीद है कि लोकसभा अध्यक्ष जी इस बार चुने गए सांसदों का निलंबन और तानाशाही रवैया नहीं दिखाएंगे बल्कि जनता की आवाज और जनप्रतिनिधियों को अपनी बात रखने का पूरा अवसर देंगे।

सपथ ग्रहण समारोह में जो एक चीज नई हुई वह यह कि विपक्ष के हाथों में संविधान की प्रतियां। ये अलग बात है कि मुस्लिम समुदाय की लगातार बढ़ती मबलिंचिंग, मध्य प्रदेश में 11 मकानों को अवैध बता कर तोड़ दिया जाना तथा विकास के नाम पर लखनऊ की बस्तियों पर सरकारी बुल्डोजर समेत कई मुद्दों पर, संविधान रक्षक होने का दावा करने वाले नेताओं की खामोशी ने निराश किया। संविधान की प्रतियां लिए नेताओ का सपथ लेना एक बार फिर भाजपा के संविधान विरोधी नीतियों पर पानी फेरता दिखाई दिया। जय संविधान, जय फिलिस्तीन, हिंदू राष्ट्र, जय समाजवाद, जय विहार, जय तेलंगाना जैसे नारों के बीच कुछ विवादित नारों ने भी लोगों का ध्यान आकर्षित किया। ये नारे कितना जनता के सरोकार के लिए लगे और कितना राजनीतिक समीकरण साधने या वोट बैंक की राजनीति को भेंट चढ़ाने के लिए ये तो आने वाले पांच साल तय करेंगे।

चुनावी मंच से नेता

चुनाव में चले धुआंधार भाषणों में सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने और संविधान बदलने की बातें भी खूब हुईं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राजस्थान व अन्य जगहों पर दिए भाषणों में ज्यादा बच्चे पैदा करने वाले, घुसपैठिया, मुसलमान और मंगलसूत्र जैसे शब्दों का खूब प्रयोग किया। परंतु परिणाम शून्य मिले। अर्थात जहां जहां ऐसे भाषणों का प्रयोग हुआ अधिकतर स्थानों पर पार्टी की हार हुई। दूसरी तरफ खुद को सेकुलर और लोकतांत्रिक गांधीवादी मानने वाली पार्टियां समाज के पिछड़े और अतिपिछड़ों के साथ मुसलमान शब्द से दूरी बनाए रखा। कांग्रेस पार्टी का दावा है कि उन्होंने अपने पूरे घोषणा पत्र में मुसलमान / हिंदू शब्द का प्रयोग नहीं किया अर्थात संविधान की दुहाई देने वाली पार्टी अपने ही देश की सब से बड़ी माइनॉरिटी समुदाय का नाम लेने से डरती है। कांग्रेस का यह डर चुनाव में साफ दिखाई दिया, जो अभी तक बना हुआ है।

विपक्ष इस बार पूरी ताकत के साथ लड़ा। भाजपा की पूरी राजनीति जिस राम मंदिर और बाबरी मस्ज़िद पर खड़ी थी उत्तर प्रदेश में INDIA गठबंधन का हिस्सा रही समाजवादी पार्टी ने वहीं से भाजपा को हार का रास्ता दिखाया। भाजपा के सांप्रदायिक नारों में से एक “बाबरी तो झांकी है काशी मथुरा बाकी है” जैसे नारों को समाजवादी पार्टी ने हथियार बनाया और इसी नारे में बदलाव कर “न मथुरा न काशी अबकी बार अवधेश पासी” के नारे से जीत हासिल की। रोचक बात यह है की अयोध्या में चुनाव प्रचार करने आए अखिलेश यादव ने पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी कि इस बार आप सांसद बनने वाले हैं। इस में कुछ काम भाजपा के कैंडिडेट द्वारा संविधान बदलने का वक्तव्य और राज्य की भाजपा सरकार की अनसुलझी विकासवादी नीति ने भी किया। विकास के नाम पर तोड़े गए मकानों और लोगो को वादे के आधार पर (जैसा कि दावा किया जाता है) दुकानों का आवंटन न होने जैसे मुद्दे, भाजपा कैंडिडेट के हार का कारण बनीं। आश्चर्य की बात ये है की पूरे अयोध्या मंडल से बीजेपी साफ हो गई और उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में भाजपा का बुरा हाल हुआ।

सेकुलर विपक्ष और मुस्लिम समुदाय

इस चुनाव में एक चीज जो साफ तौर पर कई विश्लेषकों ने माना वो ये कि मुस्लिम समुदाय ने भाजपा की संप्रदायिक राजनीति के खिलाफ एक जुट होकर वोट किया।⁷ यह बताया कि एकजुट कैसे हुआ जाता है। नफरत की राजनीति को कैसे हराया जाता है। यही वजह थी कि इस बार के चुनाव में भाजपा की ‘बी टीम’ बन कर बैकडोर से खेलने वाली मायावती की “बहुजन समाज पार्टी” (बी. एस. पी.) ने चुन चुन कर मुस्लिम कैंडिडेट को टिकट दिया। जिस से वोटों का ध्रुवीकरण हो सके। जबकि भाजपा की बी टीम कही जाने वाली ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने पूरे भारत में सिर्फ तीन सीट पर ही अपने कैंडिडेट उतारे और एक सीट हैदराबाद से असदुद्दीन ओवैसी ही जीत कर सांसद पहुंचे। परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर कम से कम यूपी में INDIA गठबंधन का बीएसपी की वजह से भारी नुकसान हुआ। फिर भी विपक्ष को इस का अंदाजा नहीं। परिणाम जारी होने के बाद बहुजन समाज पार्टी की मुखिया ने हर बार की तरह इस बार भी हार का ठीकरा मुसलमानों पर डालते हुए पार्टी की हार का जिम्मेदार मुस्लिम समाज को बताया। चेतावनी दी की आगे से टिकट बटवारे में इसका ख्याल रखा जायेगा। पार्टी की इतनी बुरी हार के बाद जब उन्हें अपने पार्टी को लेकर आत्म मंथन करना था तब मायावती जी ने मुसलमानों को हार का जिम्मेदार ठहराने का काम किया।
2014 का चुनाव देश की राजनीति में बड़े बदलाओं और बड़े बड़े नारों के आधार पर लड़ा गया चुनाव था। उस समय चुनाव में भारतीय जनता पार्टी एक तरफ अपने लोक लुभावने वादों से जाता को अपनी तरफ आकर्षित कर रही थी। दूसरी तरफ कांग्रेस पर मुस्लिम हितैसी होने का आरोप लगा कर देश के बहुसंख्यक समाज के मन में डर और घृणा पैदा करने का कार्य किया। सांप्रदायिक भाषणों का दौर चल रहा था। देश की राजनीति पूरे उफान पर थी। परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस पार्टी बुरी तरह चुनाव में हार गई। हार का विश्लेषण और उसका परिणाम ला कर ‘मायावती की भांति’ इन्होंने भी मुस्लिम हितैसी जैसे मुद्दों पर डाल दिया जिसका भाजपा ने इलेक्शन में लाभ कमाया था। छात्र नेता और फिलहाल जेल में बिना ट्रेल बंद उमर खालिद 2019 के चुनावो के बाद दिए अपने एक भाषण में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सेकुलरिज्म पर दोहरा रवैया अपनाने के मामले पर निशाना साधते हुए कहा था कि “2014 के बाद कांग्रेस ने कहा कि हम हार गए,क्योंकि बीजेपी ने हम को मुसलमान परस्त घोषित कर दिया। पिछले पांच साल में इन लोगो (कांग्रेस) ने इस गलती को ठीक करने की कोशिश की/तथाकथित गलती को। इस गलती तो ठीक करने से वो 44 से 52 पहुंचे है (2014 और 2019 के चुनाव में जीत की सीटों की संख्या) आप को अपनी आइडियोलॉजी को समझना पड़ेगा, आइडियोलॉजी पर खड़ा होना पड़ेगा।” अपने भाषण में आगे वह आजादी के समय महात्मा गांधी का वर्णन करते हुए कहते हैं कि “जिस वक्त भारत देश दंगो में जल रहा था ऐसे समय पर गांधी दंगो से पीड़ित लोगो के बीच में थे और अल्पसंख्यकbसमाज की सुरक्षा की वकालत कर रहे थे चाहे वह पाकिस्तान का हिंदू हो या हिंदुस्तान का मुसलमान।” आगे वह सवाल करते हैं कि अपने आप को सेकुलर कहने वाले किसी नेता में इतनी हिम्मत नहीं है कि वह अपने आप को अल्पसंख्यक समुदाय का हितैसी बोल सके।¹
उमर खालिद के इस वक्तव्य का एक एक शब्द 2024 के चुनाव की सच्चाई और सेकुलर नेताओ की हकीकत बयान करता है। यह बात एक हकीकत है न सिर्फ कांग्रेस पार्टी बल्कि उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करने वाली समाजवादी पार्टी भी मुस्लिम मुद्दों पर बोलने से साफ बचती दिखाई दी। ऐसा प्रतीत होता है कि इन पार्टियों के पास मुस्लिम समुदाय की राजनीति पर भाजपा को जवाब देने के लिए कोई ठोस आधार नहीं है। जबकि संविधान के बड़े बड़े दावे ये मंचो से करते है। यह न सिर्फ पार्टी की रणनीति में कमी है बल्कि एक बड़े समुदाय पर होने वाले हर नाइंसाफी पर चुप्पी साधने का आसान तरीका है। इन पार्टियों को भी मालूम है कि मुसलमानों का वोट तो इन्हे ही मिलेगा चाहे ये इनके मुद्दों पर बात करें या न करें। अगर ऐसा नहीं होता तो पिछले साल नूह में हुई हिंसा में एक मस्जिद के इमाम समेत कई लोग मारे गए और कई घायल हुए लोगों के बीच राहुल गांधी को जाना चाहिए था। राहुल गांधी जो चुनाव से पहले भारत जोड़ों यात्रा और भारत जोड़ों न्याय यात्रा करते है। पूरे भारत में कश्मीर से कन्याकुमारी और त्रिपुरा से गुजरात तक मुहब्बत की दुकान खेलने की बात करते हैं। भारत को जोड़ने की बात करते हैं, भारतीय लोगो को न्याय दिलाने की बात करते हैं। कभी मजदूरों के बीच होते हैं, कभी एएमयू के छात्रों के बीच, कभी दिल्ली के मुखर्जी नगर, कभी कार्पेंटर्स के बीच तो कभी कुलियों के बीच नजर आते हैं। नजर नहीं आते तो दंगा पीड़ित मुसलमानों के बीच, मोबलिंचिग में मारे गए लोगों के बीच, विकास के नाम पर तोड़े जा रहे मकान के पीड़ितों के बीच।

भारतीय जनता पार्टी और मुस्लिम समुदाय

भाजपा सरकार की राजनीति ही मुस्लिम केंद्रित होती है। मुस्लिम समुदाय का खौफ दिलाकर देश के बहुसंख्यक समाज के अंदर खौफ का माहौल बनाना और उसका लाभ अलग अलग राज्य में हुए चुनावों में हासिल करना या लोकसभा के चुनाव में। 2014 में भाजपा की सरकार बनने के बाद मोबलिंचि की घटनाओं का लगातार एक चैन है जो चलता चला आ रहा है। यह चैन कैसे टूटे और देश को मोबलिंचिंग जैसी भ्यवाह महामारी से कैसे छुटकारा मिले यह गंभीर विचार विमर्श का विषय है। हमे याद है 2014 में अखलाक पहला नाम था। तब से आज तक इसका शिकार दलित, मुसलमान और अल्पसंख्यक समाज ही हुआ है। परंतु आखिरी व्यक्ति कौन होगा इसकी जानकारी न तो मुझे है न आपको न ही हमारे सरकार को। सरकार ने लोक सभा में एक सवाल का जवाब देते हुए कहा था कि “मोबलिंचिंग के आधार पर कितने लोगों की आज तक मौत हुई है, ऐसा कोई डाटा सरकार के पास नहीं है।”²
मोबलिंचिंग की घटना न सिर्फ एक घटना है बल्कि यह एक आरएसएस और भाजपा द्वारा आयातित महामारी है जिसका शिकार इस देश का मुसलमान और दलित वर्ग का समाज है। यह महामारी समाज के एक समुदाय को अछूत और अपाहिज बनाना चाहती है। ताकि यह समुदाय अर्थात मुसलमान जो कि राजनीतिक रूप से किनारे किया जा चुका है, भीड़ की हिंसा के बाद आर्थिक और सामाजिक रूप से भी अपाहिज हो जाए। पहले भीड़ द्वारा हिंसा के माध्यम से लोगों में भय पैदा किया गया, तत्पश्चात मुस्लिम समुदाय के दुकानों और उनके सामानों का बहिष्कार करने की घोषणा खुले आम मंचो से कराई गई, धर्म संसद में खुले आम नफरत और हत्या पर उकसाने वाले भाषण दिए गए। यह सारे तरीके सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम समुदाय को घेरने, इनके विकास को रोकने और सशक्त होने में बाधा उत्पन्न करने का प्रयास है। इन सब चीजों से भाजपा का राजनीतिक समीकरण बिगड़ने से बचेगा और बहुसंख्यक समाज उनको वोट करता रहेगा।
परिणामस्वरूप भाजपा की सारी राजनीति मुस्लिम नफरत, बहुसंख्यक समुदाय के अंदर भय पैदा करने और तथाकथित झूठे विकास के लोक लुभावने नारों के मध्य चक्कर काटता दिखाई देता है।

दो पक्ष

अब देश की राजनीति में सिर्फ दो पक्ष हैं। एक वर्तमान भाजपा सरकार का पक्ष और दूसरा विपक्ष। एक पक्ष है जो मुस्लिम समुदाय के नाम पर राजनीति करती है तथा विपक्ष को उसका हितैसी होने का आरोप लगाती है। दूसरा विपक्ष है जो मुसलमानों पर बात करने से डरता है कि कहीं उन पर मुस्लिम हितैसी का धब्बा न लग जाए। एक तरफ भाषाई मर्यादा को तार तार करते हुए मुसलमानों के खिलाफ नफरत के जहर घोले जा रहे और दूसरी तरफ बिलकुल खामोशी। ऐसे में मुसलमान सामूहिक रूप से भारतीय राजनीति का नया दलित बनाता जा रहा है जिस पर सत्ता शासित लोग अत्याचार कर रहें हैं और उन पर हो रहे अत्याचार पर कोई बात तक करने को तैयार नहीं है।

मुसलमान देश का नया दलित

मुसलमान समुदाय भारत का नया दलित है³ यह बात मैं नहीं कह रहा बल्कि सी पी आई (एम एल) पार्टी के जनरल सेक्रेटरी दीपांकर भट्टाचार्य ने ‘अंबेडकर सुदर’ पुरस्कार से सम्मानित किए जाने पर कही है। उन्होंने कहा कि “अंबेडकर ने स्पष्ट चेतावनी जारी की थी और हमसे कहा था कि हम सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार की शुरूआत से संतुष्ट न हों, बल्कि आर्थिक और सामाजिक असमानता के खिलाफ कड़ा संघर्ष करें, जिसे अगर अनियंत्रित छोड़ दिया गया, तो वोटों की समानता अर्थहीन हो जाएगी।”
आगे वह कहते हैं कि “मुसलमान अपने ‘पूर्ण हाशिये पर और यहूदी बस्ती’ होने के कारण भारत के नए दलित के रूप में उभर रहे थे।”
2006 में सच्चर कमेटी की रिपोर्ट आई जिस के अनुसार “भारत के मुसलमानों की स्थिति दलितों से भी खराब है”⁴ जिस को आधार बनाकर मुस्लिम नेता सरकारी नौकरियों में मुसलमानों के आरक्षण की बात करते आ रहे। तब केंद्र में कांग्रेस की सरकार और पिछले 10 साल से भाजपा सरकार, परंतु परिणाम में कोई परिवर्तन नहीं।
सच्चर कमेटी की रिपोर्ट आने के आज 18 साल हो गए लेकिन मुस्लिम समुदाय की स्थिति ठीक होने की जगह लगातार और खराब होती जा रही है। सांप्रदायिक हिंसा, नफरती भाषण, बहिष्कार और मोबलिंचिंग के बाद अब सरकारी बुल्डोजर की राजनीति मुस्लिम समुदाय को भारत में सब से पिछड़े समुदाय के रूप में पहचान दे रहे है।
भारत का मुस्लिम समुदाय सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास जैसे लोक लुभावने नारे तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी के अनुसार “भारत मुसलमानों के लिए स्वर्ग”⁵ जैसे खोखले बयानों और मीडिया की हेड लाइनों तक सीमित रह गया है। भाजपा की मुस्लिम समुदाय विरोधी राजनीति पर अपनी टिप्पणी देते हुए दिलीप मंडल ने लिखा कि “भारतीय राज्य का मुसलमानों के प्रति क्रूर होना कोई नई बात नहीं है और निश्चित रूप से यह भाजपा शासन के लिए अनोखी बात नहीं है। लेकिन सत्तारूढ़ दल जो कर रहा है वह एक सामाजिक पुनर्रचना है।”⁶ अर्थात भारतीय जनता पार्टी द्वारा यह राजनीति बहुत बड़े प्लानिंग के साथ मुस्लिम समुदाय को हासिये पर डालने की साजिश है।

आगे की राह

कहा जाता है कि राजनीति में कभी कोई चीज एक जैसी नहीं रहती है। भारतीय राजनीति भी कभी एक जैसी नहीं रही है। अनेक उतार चढ़ाव और बदलाओं से होते हुए भारत देश इस स्थिति तक पहुंचा है। देश की स्थिति और मनोदशा के आधार पर राजनीति अपना रुख बदलती है। इसके लिए जरूरी है की जनता अपनी राजनीति को बदले, राजनीति में कुछ नए विचार और विमर्श के मुद्दे लाएं। जब आप चर्चा का विषय होंगे तो आप पर बात की जाएगी और सुनी भी जाएगी। जमात इस्लामी हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष सैयद सादतुल्लाह हुसैनी मासिक पत्रिका ‘जिंदगी ए नव’⁷ में चुनावों का विश्लेषण करते हुए सुझाव देते हुए लिखते हैं कि “राजनीति/ Politics और political action /राजनीतिक कार्यवाई के मध्यम से मुस्लिम समुदाय अपनी स्थिति को सुधार सकता है।”⁷ यदि मुस्लिम समुदाय अपनी राजनीति की लड़ाई सड़क और सांसद दोनो में करना सीख जाए और जनता के मध्य अपनी बात पहुंचाने का माध्यम पैदा कर ले तो तकदीर बदल सकती है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अल्पसंख्यक विभाग के राष्ट्रीय अध्यक्ष और राज्य सभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने भी अलग अलग मंचो से कहा कि हमे अपनी आवाज खुद बनना होगा और अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी पड़ेगी। समाजवादी पार्टी के बहुत बड़े मुस्लिम चेहरे के रूप में देखे जाने वाले आजम खान हो या फिर आल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन के राष्ट्रीय अध्यक्ष अध्यक्ष बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी हर किसी ने यही कुछ सुझाव दिए हैं। अब देखना ये है कि हम कितना इन सुझावों पर कार्य करते हैं और सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवम् शैक्षणिक स्तर पर हालत सुधारने में कितनी सफलता प्राप्त करते हैं।

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