कासिफ अर्सलान के अनुसार, ये बात उन दिनों की है जब मैं सीवान अड्डा न.1 के पास एक रुम मे रह कर पढ़ाई कर रहा था। शायद 1999-2000 का साल रहा होगा। बिजली नहीं होने और गर्मी का दिन होने के वजह से मैं और मेरे कुछ करीबी मित्र लाॅज के छत के ऊपर बैठ कर पढ़ाई कर रहे थे।
तभी अचानक से नवलपुर रेलवे लाईन के तरफ से महिलाओं और बच्चों के रोने के साथ साथ मर्दो के चिख़ने की मिली- जुली आवाजें आनी शुरु हो गईं। कुछ अनहोनी की आशंका हुई और हम सभी मित्र नीचे दौड़ पड़े। नीचे जाके ये फैसला हुआ के मौका-ए-वारदात के तरफ कुच किया जाए और पता किया जाए के आखिर इतनी रात गये क्या समस्या हुई है।
वहाँ जाने पर पता चला के एक गरीब हिन्दु परिवार जो एक एक रुपया जोड़ कर अपनी बेटी की शादी के लिए कुछ गहने और कपड़े बनवाये थे वो चोरी हो गए है। चुँकी पुरा महल्ला इकट्ठा हो गया था तो उसी भीड़ में से किसी ने अपने घर से शहाबुद्दीन “साहेब” को उनके बंगले के फोन पे फोन कर सुचना दे दिया।
आधे घंटे मे “साहेब” मौकाये वारदात पे पाँच गाड़ियों के काफिले के साथ पहुँचे और बताया के अभी एक आंदर के तरफ के गाँव के तिलक समारोह से वापस हुआ ही था के फोन आ गया और यहाँ आ गया।
जिस गरीब परिवार के यहाँ चोरी हुई थी उनको कहा के “रऊआ फिकर ना करीं, जाते जाते महल्ले के एक सज्जन को आवश्यक दिशा निर्देश देते गए के थाना को भी सुचित कर के रिपोर्ट लिखा दें।
अगले दो पहर उस महल्ले के एक लड़के से पता चला के चोर सारा समान जैसा का तैसा वापस नदी किनारे फेंक गए थे और वो समान उस गरीब परिवार को वापस हुआ।
सीवान में किसी भी दुसरे नेता का “साहेब” होना मुश्किल ही नहीं, ना मुमकिन है. कोई जाति , जमात का भेद नहीं। अफसोस ये होता है के कुछ टुच्चे लोग उनका नाम बदनाम कर के दौलत खुब कमाए लेकिन जब उनका साथ देने की बारी आई तो सब अलग हो गए।
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