अल्लामा मुहम्मद इक़बाल का जन्म 9 नवंबर 1877 को सियालकोट पंजाब में हुआ. इक़बाल अविभाजित भारत के मशहूर फ्लॉसफ़र, मोर्ररिख, मुसन्निफ़, अदीब, ख़तीब, मुबल्लिग़, मुफक्कीर, मुक़र्रिर, मुअज़्ज़, इंक़लाबी और दूरंदेशी शायर थे।
इनकी शायरी को आधुनिक काल की बेहतरीन शायरी में गिना जाता है. उन्होंने 1905 में तराना ए हिंद “सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा” लिखा।
21 अप्रैल 1938 को 60 वर्ष की उम्र में मोहम्मद इक़बाल का इंतकाल हो गया था. उससे पहले उन्होंने एक और इंकलाबी गीत लिखा था. जिसको “तराना ए मिल्ली” कहते हैं।
जो इस प्रकार हैं –
चीन-ओ-अरब हमारा हिन्दोस्ताँ हमारा
मुस्लिम हैं हम वतन है सारा जहाँ हमारा
तौहीद की अमानत सीनों में है हमारे
आसाँ नहीं मिटाना नाम-ओ-निशाँ हमारा
दुनिया के बुत-कदों में पहला वो घर ख़ुदा का
हम इस के पासबाँ हैं वो पासबाँ हमारा
तेग़ों के साए में हम पल कर जवाँ हुए हैं
ख़ंजर हिलाल का है क़ौमी निशाँ हमारा
मग़रिब की वादियों में गूँजी अज़ाँ हमारी
थमता न था किसी से सैल-ए-रवाँ हमारा
बातिल से दबने वाले ऐ आसमाँ नहीं हम
सौ बार कर चुका है तू इम्तिहाँ हमारा
ऐ गुलिस्तान-ए-उंदुलुस वो दिन हैं याद तुझ को
था तेरी डालियों में जब आशियाँ हमारा
ऐ मौज-ए-दजला तू भी पहचानती है हम को
अब तक है तेरा दरिया अफ़्साना-ख़्वाँ हमारा
ऐ अर्ज़-ए-पाक तेरी हुर्मत पे कट मरे हम
है ख़ूँ तिरी रगों में अब तक रवाँ हमारा
सालार-ए-कारवाँ है मीर-ए-हिजाज़ अपना
इस नाम से है बाक़ी आराम-ए-जाँ हमारा
‘इक़बाल’ का तराना बाँग-ए-दरा है गोया
होता है जादा-पैमा फिर कारवाँ हमारा