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भारत

क्या मुसलमानों का काम लाठी-डंडे खाना और फर्जी FIR झेलना रह गया है

भारत एक लोकतांत्रिक देश है। लोकतांत्रिक देश की सबसे बड़ी खूबसूरती होती है शांतिपूर्ण ढंग से चुनाव सम्पन्न कराना। भारत में कुछ दिनों से हम देख रहें है कि चुनाव के वक्त अक्सर हिंसा की खबरें, आम बात हो चुकी है।

हमनें लोकसभा चुनाव के दौरान भी देखा था कि संभल समेत पश्चिमी उत्तर के कई जगह से खबरे आई थीं कि मुस्लिम समुदाय के लोगो को वोटिंग से रोका जा रहा है या फिर मुस्लिम बहुल बूथों पर स्लो वोटिंग कराई जा रही थी इसके अलावा कई जगह से प्रशासन द्वारा वोटरों के साथ मार पिटाई करने की भी खबरें आई थी, उसके बावजूद मुसलमानों ने जमकर वोटिंग की थी और वोटिंग लोकतंत्र और संविधान बचाने के लिए भी की थी.

क्योंकि विपक्ष यानी इंडिया गठबंधन बार बार यह कह रहा था कि अगर बीजेपी आ जाएगी तो लोकतंत्र खतरे में आ जाएगा संविधान बदल दिया जाएगा, हेट क्राइम बढ़ जाएंगे. जिसको देखते हुए मुसलमानों ने लाठी डंडे खाते हुए जमकर इंडिया गठबंधन को वोट किया जिसका नतीज़ा यह निकला की इंडिया गठबंधन एक मज़बूत विपक्ष बनकर उभरा।

आपको याद होगा हाल ही में उत्तराखंड की मंगलौर विधानसभा सीट पर उपचुनाव संपन्न हुआ है, इस दौरान भी मुस्लिम समुदाय को कथित तौर पर वोट से रोकने के लिए प्रशासन द्वारा लाठीचार्ज किया गया और बदसलूकी की गई हालांकि इस सब के बावजूद मुसलमानों ने तथाकथित सेक्युलर कांग्रेस और उसके उम्मीदवार को वोट किया.

लेकिन अब सवाल यह उठता है कि जब जब संविधान बचाने या फिर विपक्ष को बचाने की बात आती है तब तब मुसलमान अपनी जान की परवाह किए बगैर इंडिया गठबधन और कांग्रेस जैसी पार्टियों को वोट देता है लेकिन जब मुसलमानों पर जुल्म होता है, मुसलमानों के खिलाफ हिंसा होती है या फिर मुस्लिम पत्रकारों के खिलाफ़ फर्जी एफआईआर दर्ज़ की जाती है तो यह ठगबंधन और इनके नेताओं के मुंह से आवाज़ तक नहीं निकलती. क्या मुस्लिम समुदाय इनके लिए सिर्फ़ वोट बैंक बनकर रह गया है या फिर मुसलमानों का काम लाठी डंडे खाना और फर्जी एफआईआर झेलना रह गया है.

चुनाव के नतीजे आने के बाद से जिस तरीक़े से लगातार मॉब लिंचिंग की घटनाएं बढ़ी है उस पर एक बार भी मुहब्बत की दुकान खोलकर बैठे राहुल गांधी ने एक शब्द नहीं बोला है, पत्रकार वसीम अकरम त्यागी, ज़ाकिर अली त्यागी, यूट्यूब चैनल हिंदुस्तान मीडिया के खिलाफ दर्ज़ हुई एफआईआर के खिलाफ एक बार भी राहुल गांधी, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, ममता बनर्जी जैसे नेताओं ने आवाज़ नहीं उठाई है, बात बात पर मीडिया को बिकाऊ कहने वाले नेता यह बता सकते है कि जब निष्पक्ष पत्रकारों पर एफआईआर दर्ज़ की जाती है तब तुम्हारा माइक खामोश क्यों हो जाता है, क्या आप लोगों का माइक मुसलमानों को सिर्फ़ बीजेपी का डर दिखाने के लिए ही ऑन होता है?

जब राहुल गांधी के ऊपर राजनीतिक द्वेष की भावना से ईडी द्वारा कार्रवाई की जा रही थीं तब वसीम अकरम त्यागी और जाकिर अली त्यागी जैसे सैकड़ों पत्रकार इस कार्रवाई की निंदा कर रहें थे तथा अपना पत्रकारिता धर्म निभा रहें थे लेकिन आज जब इन पत्रकारों के खिलाफ फर्जी एफआईआर की जा रहीं है तो राहुल गांधी एक ट्वीट तक नहीं कर पा रहें.

चुनावी नतीजों के बाद इस देश का मुसलमान सोच रहा था कि इस बार मजबूत विपक्ष बना है तो हमारे हक़ में मजबूती से आवाज़ उठाई जाएगी लेकिन इस विपक्ष ने एक महीने में ही बता दिया कि अगर मुसलमानों पर जुल्म होगा तो हम खामोश रहेंगे हमसे कोई उम्मीद मत रखिए, हमें सिर्फ लोकतंत्र बचाने के नाम पर वोट देते रहिए, आपकी सुरक्षा की गारंटी हम नही लेंगे,

मिस्टर राहुल गांधी और इंडिया गठबंधन के तमाम नेताओं एक बार सोचिए अगर मुसलमानों ने आपको वोट देनी बंद कर दी तो आपका क्या होगा, आप सत्ता में आना तो दूर मजबूत विपक्ष भी नहीं बन पाओगे. इस देश के मुसलमानों ने असदुद्दीन ओवैसी और बदरुद्दीन अजमल को छोड़कर आपको अपना नेता चुना लेकिन आपने क्या किया, आप तो सिर्फ़ मुसलमानों की मौत का तमाशा देखते रहें, आखिर कब राहुल गांधी और इंडिया गठबंधन को मुसलमानों की याद आएगी, क्या अब महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड विधानसभा चुनाव के दौरान लोकतंत्र खतरे में आएगा, या फिर इस बार मुसलमान आपको सबक सिखाएगा.

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