उर्दू से नफ़रत लगातार बढ़ती ही जा रहीं हैं. जिसके कारण अब मुस्लिम छात्रों का उर्दू सीखना बहुत मुश्किल होता जा रहा हैं।
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में स्थित सेंट जोसेफ़ को-एड स्कूल जो की मिशनरी स्कूल हैं. यहां पर पढ़ने वाले छात्र पिछले 1.5 साल से उर्दू भाषा को हटाने का विरोध कर रहें हैं।
छात्र बार बार स्कूल के फादर (प्रिंसीपल) से मिलकर फिर से उर्दू को सिलेबस में शामिल करने की मांग करते हैं लेकिन उनको भगा दिया जाता हैं।
केंद्रीय विद्यालय शिक्षा बोर्ड (CBSE) के दिशानिर्देशों से चलने वाला यह मिशनरी स्कूल 9वीं कक्षा के छात्रों को चार भाषा हिंदी, संस्कृत, उर्दू और जर्मन पढ़ने का विकल्प देता है।
डेढ़ साल पहले स्कूल प्रशासन ने जर्मन भाषा को सिलेबस से हटा दिया था क्योंकि उसको पढ़ने वाले सिर्फ 8 छात्र थे. इसके बाद प्रशासन ने उर्दू को भी बिना कारण के सिलेबस से हटा दिया. जबकि उर्दू पढ़ने वाले छात्रों की संख्या 50 के करीब थीं।
बिना किसी कारण के स्कूल से उर्दू भाषा को हटाने पर जब बच्चों के माता-पिता स्कूल प्रशासन से मिलने गए तो उनको कहा गया “अगर आप अपने बच्चों को उर्दू सिखाना चाहते हैं, तो मदरसा जाइये।”
पत्रकार कासिफ काकवी का कहना हैं कि “पिछले 1.5 सालों से भोपाल के St. Joseph Co-ed School के करीब 300 बच्चे ऊर्दू को सिलेबस से हटाने का विरोध कर रहे हैं. कई बार एप्लीकेशन के बाद जब बच्चों/ पेरेस्ट्स फादर से मिलने गए तो उन्हें डाट कर भगा दिया गया और स्कूल से नाम काटने की धमकी दी गई।”
पिछले 1.5 सालों से भोपाल के St. Joseph Co-ed School के करीब 300 बच्चे ऊर्दू को सिलेबस से हटाने का विरोध कर रहे हैं।
कई बार एप्लीकेशन के बाद जब बच्चों/ पेरेस्ट्स फादर से मिलने गए तो उन्हें डाट कर भगा दिया गया और स्कूल से नाम काटने की धमकी दी गई। @CollectorBhopal @arifmasoodbpl pic.twitter.com/mDcHBYxUJV
— काश/if Kakvi (@KashifKakvi) March 12, 2022
कितने अफ़सोस की बात हैं देश की तीसरा आधिकारिक ज़ुबान को एक स्कूल पढ़ाने से इंकार कर रहा है. ऐसा महसूस होता है कि यह एक एजेंडे के तहत किया जा रहा है. शिवराज सिंह चौहान और ज़िला शिक्षा आधिकारी से अनुरोध है कि इस पर संज्ञान ले।