2014 के बाद से ही महाराष्ट्र में AIMIM ने राजनीतिक तौर पर अपने पैर पसारने शुरू किये थे। 2014 विधानसभा और 2019 के विधानसभा में मजलिस ने 2-2 विधायकों के साथ अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करवाई थी। इसके साथ ही 2019 में इम्तियाज जलील औरंगाबाद से सांसद भी चुने गए थे मगर 2024 में वो सांसदी का चुनाव हार गए थे।
विधासनभा चुनाव 2019 में पूरे महाराष्ट्र में 10 मुस्लिम विधायक चुने गए थे। जिसमें से AIMIM की तरफ से मुफ़्ती इस्माइल क़ासमी (मालेगांव मध्य) और शाह अनवर फ़ारूक़ (धुले शहर) से विधायक चुने गए थे।
इसके अलावा 2019 के विधानसभा चुनाव में 5 विधानसभा सीटें ऐसी थी जहां पर AIMIM के उम्मीदवारों ने मजबूत उपस्थिति के साथ दूसरा स्थान हासिल किया था। भायखला विधानसभा से वारिस पठान, सोलापुर शहर मध्य विधानसभा से हाजी फ़ारूक़ मक़बूल, नांदेड़ उत्तर विधानसभा से फिरोज लाला, औरंगाबाद पूर्व विधानसभा से डॉ गफ्फार क़ादरी और औरंगाबाद मध्य विधानसभा से नसीरुद्दीन सिद्दीकी शानदार चुनाव लड़ने के बावजूद हार गए थे।
इस प्रकार कहा जाये तो सीधे तौर पर इन सात सीटों पर तो AIMIM की सीधी दावेदारी है जहां वो अपनी मजबूत राजनीतिक पकड़ के साथ जमीन पर मौजूद है। इसके अलावा पुरे प्रदेश में 25 सीटें ऐसी है जहां पर सीधे तौर पर मुसलमान मतदाता ही जीत हार को तय करता है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार AIMIM महाराष्ट्र के प्रदेशाध्यक्ष इम्तियाज जलील ने महाविकास अघाड़ी में शामिल होने के अपने प्रस्ताव के तहत 28 सीटों की मांग की है। इस मामले में शिव सेना के संजय राउत ने कहा है कि इस मुद्दे पर वो शरद पवार के फैसले के बाद कुछ तय करने की स्थिति में होंगे।
याद रखियेगा जिन सीटों पर AIMIM हाल के समय में मजबूत हुयी है उन पर सीधा शिवसेना का प्रभाव होता था। इसलिए शिवसेना और AIMIM के गठबंधन की ख़बरें अगर हकीकत में तब्दील होती है तो काफी हद तक प्रदेश की राजनीति को तब्दील कर देंगी।
हालिया राजनीतिक और समाजिक घटनाक्रम में खास तौर पर रसूल अल्लाह की बेअदबी के मामले में बुलंद आवाज की वजह से जिस AIMIM का सीधा प्रभाव महाराष्ट्र की 7 विधानसभा सीटों पर था वो अब बढ़ कर 12 सीटों तक पहुंच चुका है। ऐसे में सेकुलर पार्टियों के गठबंधन द्वारा असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी को नजरअंदाज करना मुमकिन नहीं है।