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हिमांशी नरवाल और शैला नेगी के साथ जो हुआ, उसके बाद लड़कियों को इन सोशल मीडिया के जंतुओं की गाली से घबराने की ज़रूरत नहीं: सर्वप्रिय सांगवान (पत्रकार)

पहलगाम हमले में हिमांशी नरवाल ने अपने पति को अपनी आँखों के सामने खो दिया. उसने फिर भी मीडिया के सामने आकर कहा कि वे और उनका परिवार मुसलमानों या कश्मीरियों के ख़िलाफ़ माहौल नहीं चाहते, लेकिन अपने लिए न्याय चाहते हैं. इसके बाद सोशल मीडिया पर उनके ख़िलाफ़ गंदगी की भरमार है.

नैनीताल में शैला नेगी ऐसे ही सांप्रदायिक लोगों से भिड़ गईं, जो एक नाबालिग से रेप का मामला सामने आने के बाद मुसलमानों की दुकान तोड़ने लगे, उनसे मारपीट करने लगे. पूरा माहौल सांप्रदायिक कर दिया. इसके बाद उनके साथ भी वही हुआ जो हिमांशी नरवाल के साथ हो रहा है.

लेकिन ये सब अब मुझे हैरान नहीं करता है. क्योंकि, अन्याय के ख़िलाफ़ लड़ाई कभी भी आसान नहीं होती. उसमें इतनी ही गंदगी झेलनी पड़ती है. ये परीक्षा है कि आप अपने मूल्यों के साथ किस हद तक टिके रहते हैं.

अनुराग कश्यप जैसे लोगों को भी ये देखना चाहिए. पहले तो आप बेलगाम कुछ भी बोलते हैं. फिर आप अपने परिवार, अपनी बेटी को मिल रही गालियों पर बिफ़र जाते हैं और सिर्फ़ इसलिए माफ़ी माँग लेते हैं.

पहली बात तो ये कि कुछ लोगों ने आलोचना का एक बहुत ही आसान रास्ता पकड़ लिया है. इनके लिए आलोचना का मतलब किसी व्यक्ति या समुदाय पर चोट करना है. ये लोग जनमानस को कन्विंस नहीं करना चाहते हैं. आलोचना तो ऐसी होती है कि लोगों को सोचने पर मजबूर कर दे.

कितने लोग सोचने पर मजबूर हुए, उससे अपने मूल्यों का, अपने काम का आकलन मत कीजिए. आपका ज़मीर मैदान में है, और जब तक अडिग है, वही आपकी जीत है.

दूसरा, जिस फुले फ़िल्म के लिए आप स्टैंड ले रहे हैं, वहाँ से थोड़ी प्रेरणा भी ले लीजिए. बहुत प्रचलित क़िस्सा है कि सावित्रीबाई फुले जब लड़कियों को पढ़ाने निकलती थीं, तो लोग उन पर गोबर फेंकते थे. लेकिन वे साड़ी बदल कर अपना काम करने पहुँच जाती थी. किसी के गोबर, किसी की गाली ने उन्हें अपने मूल्यों से, अपने काम से डिगने नहीं दिया.

हिमांशी नरवाल और शैला नेगी के साथ जो हुआ, उससे एक बात समझ लेनी चाहिए कि लड़कियों को इन सोशल मीडिया के जंतुओं की गाली से घबराने की ज़रूरत नहीं. क्योंकि इनमें से 90 फ़ीसदी तो छिपे हुए हैं. उनमें अपनी पहचान ज़ाहिर करने की ही हिम्मत नहीं है. और जब तक आप पहचान वालों की गीदड़ भभकियों को लाइमलाइट में लाती रहेंगी, तब तक ये लाइमलाइट चाहते रहेंगे.

सावित्रीबाई फुले का नाम अमर है, और जो उन पर गोबर फेंकते थे, उन्हें आज तक गोबर फेंकने वाला ही कहा जाता है।

(यह पोस्ट सर्वप्रिय सांगवान की सोशल मीडिया से कॉपी किया गया है)

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