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वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने दिया हेमंत बिस्वा सरमा को करारा जवाब, बोले- असम में बांग्ला बोलने वाला हर मुसलमान बंग्लादेशी नहीं हो सकता

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा को करारा जवाब देते हुए कहा है कि, असम में बांग्ला बोलने वाला हर मुसलमान बंग्लादेशी नहीं हो सकता।

मामला असम और पश्चिम बंगाल में बांग्ला भाषी लोगों को लेकर शुरू हुआ था, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट के ज़रिए लिखा कि, बांग्ला, जो देश की दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है और असम की भी दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है।

अपने मातृभाषा के सम्मान और सांप्रदायिक सौहार्द के लिए खड़े होने वाले शांतिपूर्ण नागरिकों को प्रताड़ित करने की धमकी देना न केवल भेदभावपूर्ण है, बल्कि असंवैधानिक भी है।

असम में भाजपा का यह विभाजनकारी एजेंडा अब सभी सीमाएं पार कर चुका है। लेकिन असम की जनता इसका डटकर मुकाबला करेगी — एकजुट होकर, मज़बूती से।

मैं हर उस निर्भीक नागरिक के साथ खड़ा हूं, जो अपनी भाषा, पहचान और लोकतांत्रिक अधिकारों की गरिमा की लड़ाई लड़ रहा है।

इसका जवाब देते हुए मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि, दीदी, मुझे आपको याद दिलाने दीजिए, असम में हम अपने ही लोगों से नहीं लड़ रहे हैं। हम सीमा पार से हो रही, निरंतर और अनियंत्रित मुस्लिम घुसपैठ का निर्भय होकर विरोध कर रहे हैं, जिसने पहले ही एक चिंताजनक जनसांख्यिकीय बदलाव ला दिया है।
कई ज़िलों में हिंदू अब अपनी ही ज़मीन पर अल्पसंख्यक बनने के कगार पर हैं।

यह कोई राजनीतिक कथा नहीं है—यह सच्चाई है। यहां तक कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी ऐसी घुसपैठ को “बाहरी आक्रमण” करार दिया है।
और फिर भी, जब हम अपनी ज़मीन, संस्कृति और पहचान की रक्षा के लिए खड़े होते हैं, तो आप इसे राजनीतिक रंग देना पसंद करती हैं।

हम लोगों को भाषा या धर्म के आधार पर नहीं बाँटते। असमिया, बांग्ला, बोडो, हिंदी—सभी भाषाएं और समुदाय यहां सद्भाव और सह-अस्तित्व के साथ रहते आए हैं।
लेकिन कोई भी सभ्यता जीवित नहीं रह सकती, यदि वह अपनी सीमाओं और सांस्कृतिक नींव की रक्षा करने से इनकार कर दे।

जहां हम असम की पहचान को बचाने के लिए साहसी और निर्णायक कदम उठा रहे हैं, वहीं आपने, दीदी, बंगाल के भविष्य से समझौता कर लिया है. एक विशेष समुदाय द्वारा अवैध अतिक्रमण को बढ़ावा देना, वोट बैंक के लिए एक धार्मिक समुदाय का तुष्टिकरण,
और सीमा पर जारी घुसपैठ के बावजूद राष्ट्रीय अखंडता पर चुप्पी साधना— ये सब सिर्फ़ सत्ता में बने रहने के लिए।

असम अपनी विरासत, अपनी गरिमा और अपने लोगों की रक्षा के लिए—साहस और संवैधानिक स्पष्टता के साथ—लड़ता रहेगा।

इसपर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने कहा कि, असम में हर बांग्ला बोलने वाला मुसलमान बांग्लादेशी नहीं होता। असम और अविभाजित बंगाल का इतिहास और भूगोल इतना जटिल है कि उसे इतनी सरल और आलसी सोच से नहीं समझा जा सकता।

हेमंत बिस्वा सरमा ने इसका भी जवाब देते हुए कहा कि, ठीक है, मान लेते हैं कि क़ानूनी रूप से वे सभी विदेशी नहीं होंगे।
लेकिन हम, असम के लोग—विशेषकर हिंदू—अपनी ही ज़मीन पर निराशाजनक अल्पसंख्यक बनते जा रहे हैं।
और यह सब कुछ सिर्फ़ 60 वर्षों में हो गया है।

हमने अपनी संस्कृति खो दी, अपनी ज़मीन खो दी, अपने मंदिर खो दिए।
क़ानून हमें कोई उपाय नहीं देता। इसीलिए हम हताश हैं—बदले के लिए नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व के लिए।

हाँ, हो सकता है कि हम एक हारती हुई लड़ाई लड़ रहे हों,
लेकिन हम अंत तक लड़ेंगे—गरिमा के साथ, क़ानून के भीतर रहकर, और असम की आत्मा के लिए।

हमें मत रोको। सिर्फ़ हमें अपने अधिकारों के लिए लड़ने से मत रोको। हमारे लिए यह, अस्तित्व की आख़िरी लड़ाई है।

संजय हेगड़े ने इसपर कहा कि,
जब आप यह स्वीकार करते हैं कि “क़ानूनी रूप से, वे सभी विदेशी नहीं हो सकते,” तो इसका अर्थ है कि क़ानूनी रूप से वे भारतीय नागरिक हैं।

आप कभी एक वकील हुआ करते थे, और आज आप एक संवैधानिक पद पर हैं।
इसलिए यह आपकी गरिमा के अनुकूल नहीं है कि आप भारत के नागरिकों के ख़िलाफ़ कार्य करें या उन्हें भारत अथवा उसके किसी भी हिस्से से निकालने की बात करें।

यह शोभा नहीं देता कि कोई भारतीय, अपने ही भारतीयों के विरुद्ध ‘लड़ाई’ करे।

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