सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केरल उच्च न्यायालय के उस फैसले पर रोक लगा दी, जिसमें एर्नाकुलम जिले की 404.76 एकड़ मुनंबम संपत्ति को वक्फ भूमि नहीं माना गया था। शीर्ष अदालत ने 27 जनवरी तक यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुयान की पीठ ने स्पष्ट किया कि उसने केरल सरकार द्वारा विवादित भूमि की प्रकृति और सीमा की जांच के लिए एक सदस्यीय जांच आयोग नियुक्त करने के फैसले को बरकरार रखने संबंधी उच्च न्यायालय की टिप्पणी पर रोक नहीं लगाई है। यह आदेश केरल वक्फ संरक्षण वेदी की ओर से दाखिल विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) पर सुनवाई के दौरान दिया गया।
पीठ ने कहा, “इस मामले पर विचार आवश्यक है। 27 जनवरी से शुरू होने वाले सप्ताह में जवाब दाखिल करने के लिए नोटिस जारी किया जाए। तब तक उच्च न्यायालय का यह निष्कर्ष कि संबंधित संपत्ति वक्फ नहीं है, स्थगित रहेगा और यथास्थिति बनी रहेगी।”
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हुज़ेफ़ा अहमदी ने दलील दी कि उच्च न्यायालय ने रिट याचिका की सीमाओं से बाहर जाकर निर्णय दिया। उनका कहना था कि याचिका केवल जांच आयोग की नियुक्ति को चुनौती देने तक सीमित थी, जबकि अदालत ने 1950 के विलेख की जांच कर भूमि को वक्फ न मानते हुए उपहार करार दे दिया, जिसकी मांग किसी भी पक्ष ने नहीं की थी।
अहमदी ने यह भी कहा कि विलेख की वैधता और भूमि की स्थिति से जुड़े सवाल वक्फ न्यायाधिकरण के विशेष अधिकार क्षेत्र में आते हैं, जहां मामला पहले से लंबित है।
राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता संगठन एक तीसरा पक्ष है और वक्फ के मुतवल्ली ने आयोग के गठन को चुनौती नहीं दी थी। उन्होंने यह भी बताया कि जांच आयोग अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप चुका है।
वहीं, भूमि के मौजूदा निवासियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता वी. चितंबरेश ने कहा कि याचिका अब निष्फल हो चुकी है और 2019 में अचानक इस जमीन को वक्फ घोषित किए जाने से पहले दशकों से वहां रह रहे निवासियों को कभी नहीं सुना गया।
वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने अदालत को अवगत कराया कि एक दीवानी अदालत पहले ही इस भूमि को वक्फ संपत्ति न मानने का फैसला दे चुकी है।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह सवाल भी उठाया कि जब संबंधित कार्यवाही वक्फ न्यायाधिकरण के समक्ष लंबित है, तो क्या उच्च न्यायालय भूमि की प्रकृति पर तथ्यात्मक निष्कर्ष देने का उपयुक्त मंच है।
न्यायमूर्ति मिश्रा ने टिप्पणी की कि उच्च न्यायालय को उन निष्कर्षों पर नहीं पहुंचना चाहिए था, जिनकी किसी पक्ष ने मांग नहीं की थी।

