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हिंदुत्ववादियों की भीड़ द्वारा पिता की हत्या के 3 साल बाद भी न्याय के लिए भटक रहा मुस्लिम युवक

भारत में मुसलमानों के खिलाफ हिंदुत्ववादी भीड़ द्वारा हत्या के मामलों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है, कानूनी सहायता का अभाव और लंबे समय तक चलने वाले अदालती मामलों ने पीड़ित परिवारों को थका हुआ और निराश कर दिया है।

30 वर्षीय शाहरुख त्यागी के पिता दाऊद त्यागी की हिंदुत्ववादी भीड़ द्वारा हत्या कर दिए जाने को लगभग तीन वर्ष हो चुके हैं।

मकतूब मीडिया कि रिपोर्ट के मुताबिक़, 2 सितंबर 2022 को, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के विनयपुर गाँव के निवासी दाऊद त्यागी अपने परिवार के कुछ सदस्यों के साथ अपने घर के बाहर बैठे थे, इसी दौरान मोटरसाइकिल पर लगभग 20 लोग लाठी और देशी पिस्तौल गांव में घुस आए।

हिंदुत्ववादी भीड़ ने त्यागी और उनके साथ बैठे लोगों पर हमला कर दिया, हमले के दौरान बाकी लोग जान बचाकर भाग गए लेकिन भीड़ ने दाऊद को घेर लिया और लाठियों से हमला कर दिया। गेहूँ के किसान दाऊद त्यागी के सिर पर चोटें आईं और उसकी छाती, पैर, चेहरे और सिर पर चोट के निशान थे। जिसके कारण उसकी मौत हो गई।

हमले के दौरान शाहरुख की बहन पर भी भीड़ द्वारा हमला किया गया, लेकिन वह किसी तरह भागकर अपनी जान बचाने में सफल रही।

मकतूब से बात करते हुए शाहरुख त्यागी ने कहा कि घटना के बाद से जीवन का सामना करना बेहद कठिन हो गया है।

उन्होंने कहा, “मेरे पिता एक स्वस्थ व्यक्ति थे जिन्होंने कभी किसी के साथ गलत नहीं किया। उनकी मृत्यु ने न केवल मुझे और मेरे परिवार को तबाह कर दिया है, बल्कि इसने जीवन भर के लिए एक खालीपन भी छोड़ दिया है जिससे हम नहीं जानते कि कैसे निपटें।”

घटना के समय आस-पास के गांवों से करीब 13 हिंदुओं को गिरफ्तार किया गया था। कुछ को छोड़ दिया गया है, जबकि अन्य अभी भी हिरासत में हैं। हालांकि, मुख्य अपराधी अभी भी आज़ाद हैं।

इससे त्यागी और उनके परिवार पर बहुत दबाव बढ़ गया है। उन्होंने कहा, “हमें नियमित रूप से जान से मारने की धमकियाँ मिलती हैं। मुझ पर आरोपियों के साथ-साथ उनका समर्थन करने वाले कुछ समूहों से भी केस वापस लेने का बहुत दबाव है।”

इस घटना से भारी आक्रोश पैदा होने के बावजूद त्यागी और उनके परिवार को कानून और राजनीतिक दलों दोनों ने ही छोड़ दिया है। उन्होंने सवाल किया, “समाजवादी पार्टी (सपा) या कांग्रेस से भी कोई मदद के लिए आगे नहीं आया। क्या उनके वादे सिर्फ़ दिखावे के लिए हैं या उन्हें वाकई मुसलमानों की ज़िंदगी की परवाह है?”

बागपत पुलिस ने अपने आधिकारिक बयान में हमले की बात स्वीकार की है, लेकिन दावा किया है कि यह सांप्रदायिक नहीं था। मामले में 3 सितंबर 2022 को खेकड़ा थाने में अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी।

आरोपों में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), 1860 की धारा 147 (दंगा करने के लिए दंड), 148 (घातक हथियार से लैस होकर दंगा करना), 149 (किसी गैरकानूनी सभा का प्रत्येक सदस्य एक सामान्य उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किए गए अपराध का दोषी) और 302 (हत्या) का हवाला दिया गया।

त्यागी ने कहा कि वह अभी भी 2022 में अटके हुए महसूस करते हैं। उन्होंने कहा, “मेरी सभी महत्वाकांक्षाएं और जीवन लक्ष्य रुक गए हैं।”

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