उत्तर प्रदेश में प्रशासन ने कांवड़ यात्रा के रूट पर फल-सब्ज़ी विक्रेताओं एवं रेस्टोरेंट-ढाबा मालिकों को बोर्ड पर अपना नाम लिखने का आदेश दिया गया है।
जिसके बाद से देशभर में इस आदेश की आलोचना हो रहीं है मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस समेत तमाम नेताओं ने इस आदेश का विरोध किया है।
कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा का कहना है कि यह मुसलमानों के आर्थिक बॉयकॉट की दिशा में उठाया कदम है या दलितों के आर्थिक बॉयकॉट का, या दोनों का, हमें नहीं मालूम।
जो लोग यह तय करना चाहते थे कि कौन क्या खाएगा, अब वो यह भी तय करेंगे कि कौन किस से क्या ख़रीदेगा? जब इस बात का विरोध किया गया तो कहते हैं कि जब ढाबों के बोर्ड पर हलाल लिखा जाता है तब तो आप विरोध नहीं करते।
इसका जवाब यह है कि जब किसी होटल के बोर्ड पर शुद्ध शाकाहारी भी लिखा होता है तब भी हम होटल के मालिक, रसोइये, वेटर का नाम नहीं पूछते।
किसी रेहड़ी या ढाबे पर शुद्ध शाकाहारी, झटका, हलाल या कोशर लिखा होने से खाने वाले को अपनी पसंद का भोजन चुनने में सहायता मिलती है।
लेकिन ढाबा मालिक का नाम लिखने से किसे क्या लाभ होगा?
पवन खेड़ा के मुताबिक़, भारत के बड़े मीट एक्सपोर्टर हिंदू हैं। क्या हिंदुओं द्वारा बेचा गया मीट दाल भात बन जाता है? ठीक वैसे ही क्या किसी अल्ताफ़ या रशीद द्वारा बेचे गए आम अमरूद गोश्त तो नहीं बन जाएँगे।