बरेली पुलिस पर सात मुस्लिम पुरुषों को झूठे “धर्मांतरण रैकेट” में फंसाकर अवैध हिरासत और यातना देने के आरोप लगे हैं। इन गंभीर आरोपों को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) और उत्तर प्रदेश राज्य मानवाधिकार आयोग (SHRC) ने पुलिस को नोटिस जारी किया है।
यह कार्रवाई परवीन अख्तर नामक महिला की शिकायत पर हुई है, जिनके पति महमूद बेग उन सात हिरासत में लिए गए व्यक्तियों में शामिल हैं।
एनएचआरसी ने एक कड़े शब्दों वाले आदेश में बरेली के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (SSP) को मामले की जांच कर 9 सितंबर 2025 तक विस्तृत रिपोर्ट पेश करने को कहा है।
मकतूब मीडिया कि रिपोर्ट के मुताबिक़, आयोग ने कहा—“शिकायत में लगाए गए आरोपों की प्रकृति को देखते हुए उचित होगा कि वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, बरेली मामले की जांच करें और शिकायतकर्ता को भी शामिल करते हुए अपनी रिपोर्ट आयोग को भेजें।”
65 वर्षीय महमूद बेग की पत्नी परवीन अख्तर का कहना है कि 28 अगस्त को रात में बरेली पुलिस की स्पेशल ऑपरेशंस ग्रुप (SOG) सादे कपड़ों में उनके पति को बिना किसी एफआईआर, वारंट या गिरफ्तारी मेमो के उठा ले गई। तब से उनका पता नहीं है।
परवीन अख्तर ने कहा, “मेरे पति डायबिटिक और कमजोर हैं। कई दिनों तक मुझे नहीं पता था कि वो कहाँ हैं। जब मैंने उनकी रिहाई की गुहार लगाई तो पुलिस ने एक लाख रुपये मांगे। मुझे डर है कि उन्हें अंदर मार डालेंगे और फिर झूठे केस में फंसा देंगे।”
उन्होंने आगे बताया कि पुलिसवालों ने उनके बेटे को भी धमकाया था। बेटा मुदस्सिर कहता है—“करीब 11 लोग गाड़ियों से आए और मेरे पिता को आधी रात में उठा ले गए। जब मैंने विरोध किया तो एक ने मुझ पर बंदूक तान दी और खुद को पुलिसवाला बताया।”
परिवार का आरोप है कि हिरासत में महमूद बेग को बुरी तरह पीटा गया, उन्हें बिजली के झटके दिए गए और खाली कागज़ों या जबरन इक़बालिया बयानों पर हस्ताक्षर कराए गए।
इसी हफ्ते इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी संज्ञान लिया और पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों—एडीजी, आईजी और एसएसपी अनुराग आर्य—को 8 सितंबर को व्यक्तिगत रूप से पेश होकर हिरासत में लिए गए लोगों को कोर्ट में पेश करने का आदेश दिया। अदालत ने कहा कि यदि आरोप सच साबित होते हैं तो यह मौलिक अधिकारों का गंभीर उल्लंघन होगा।
अब 8 सितंबर को हाईकोर्ट की सुनवाई और 9 सितंबर को एनएचआरसी की रिपोर्ट तय करेगी कि इस मामले में आगे क्या कदम उठाए जाते हैं।