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आतंकवाद के आरोप में 598 दिनों से जेल बंद 11 मुस्लिम युवकों को कोर्ट ने किया रिहा, जज बोले- आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं है

आतंकवाद के झूठे आरोप में गिरफ़्तार किए गए 11 मुस्लिम युवकों को इलाहबाद हाइकोर्ट ने रिहा करते हुए कहा कि, इनके खिलाफ़ प्रयाप्त सबूत नहीं हैं।

न्यायमूर्ति अताउर्रहमान मसूदी और न्यायमूर्ति मनीष कुमार निगम की पीठ ने सभी 11 आरोपियों को जमानत देते हुए कहा कि मामले के रिकॉर्ड और उससे जुड़े दस्तावेजों पर विचार करने और अभियोजन पक्ष को सुनने के बाद आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है।

जेल से रिहा हुए अलीम, मुद्दसिर, नदीम, हबीबुल इस्लाम, हारिस, आसमोहम्मद, कामिल, कारी शहजाद, मौलाना लुकमान, अली नूर, नवाज़िया अंसारी, मुख्तार और मौलाना लुकमान पर प्रतिबंधित संगठन अल कायदा और उसके भारतीय समकक्षों के साथ कथित तौर पर शामिल होने के आरोप में आतंकवाद निरोधी दस्ते द्वारा गिरफ्तार किया गया था।

मुस्लिम युवकों के वकील फुरकान पठान के मुताबिक़, अभियोजन पक्ष उन्हें गिरफ्तार करते समय किए गए दावों को साबित करने में विफल रहा है और आवश्यकता पड़ने पर आरोपी को अदालत में भी पेश नहीं किया, इसलिए अदालत ने डिफ़ॉल्ट जमानत दे दी. ये गिरफ्तारियां आधारहीन तरीके से की गईं और ऐसा साबित भी हुआ।

इस मामले को लेकर मौलाना अरशद मदनी का कहना है कि, हम आतंकवाद के आरोप में गिरफ़्तार किए गए 11 मुस्लिम युवकों को जमानत पर रिहा करने के लखनऊ उच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले का स्वागत करते है। इस ऐतिहासिक फैसले में तय समय सीमा के भीतर आरोपपत्र दाखिल करने से मना करते हुए उन्हें जमानत दी गई है। हम 18 महीने बाद इन लोगों की रिहाई की सराहना करते हैं।

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