NDA सरकार में मंत्रिमंडल का बँटवारा हो गया, मगर इस चुनाव में भाजपा की सबसे बंज़र सियासी ज़मीन को अपनी साख़ दाव पर रखकर सींचने वाले दिलीप मंडल को कुछ नहीं मिला. अफ़सोस!
इस चुनाव में जाति और आरक्षण के सवाल पर मोदी जी समेत पूरी भाजपा बुरी तरह घिर चुकी थी. संविधान बदले जाने का सवाल गाँवों तक पहुँच गया था. भाजपा बेदम थी। मगर आपने ऐसे मोड़ पर ऐतिहासिक पलटी मार कर उन्हें ऐसी संजीवनी दे डाली, कि मोदी जी से ज़्यादा मंडल जी की रील्स भाजपाई शेयर करते नज़र आए। मगर मंडल जी! क्या मिला आपको? आपके इस विचलन को बहुजन समाज के सामने हम एक केस-स्टडी की तरह डिकोड करते रहेंगे।
दिलीप मंडल जी! आप बहुजन वैचारिकी को सोशल मीडिया से लेकर आंदोलनों तक खड़ा करने वाले रहे। लाखों लोगों का भरोसा जीता। आप नायक बन गये थे। आख़िर किस मजबूरी में सब कुछ गँवा बैठे? बाक़ी दलों से जुड़ने वालों से भी शिकायत की जा सकती है, मगर भाजपा पर भरोसा करने वालों को बस सांत्वना देकर तिरस्कृत ही करना पड़ेगा।
आपने पहले भी तमाम राजनीतिक दलों के लिए काम किया। मगर आपकी छवि ध्वस्त नहीं हुई। आज आप बीजेपी व RSS के लिए काम करने लगे, तो न कुछ भाजपा ने दिया और कमाई हुई छवि भी हाथ से फिसल गई। आप तो कहीं के नहीं हुए। हमारे यहाँ कहावत है- ‘गये मियाँ रहिमन, न यहमन न वहमन’। आप तो कहीं के न हुए।
दिलीप मंडल जी! चुनाव में मैं भी शामिल था, मगर मुझे एक दशक पुरानी अपनी सामाजिक न्याय की वैचारिक लड़ाई और विचारधारा से एक शब्द भी दायें-बायें नहीं होना पड़ा। ललकार कर भाजपा-RSS के ख़िलाफ़ लड़े। आप भी तो कल तक हमारे साथ ही लड़ रहे थे। अचानक सब कुछ क़ुर्बान कर दिया। आपके इस क़दम ने बहुजनों का भरोसा खोया है।
आप किसे मज़बूत कर बैठे, उस भाजपा के जो इस मुल्क को तबाह करने पर आमादा है? आप उस RSS को संजीवनी देने लगे, जो सामाजिक न्याय और संविधान की मूल भावना पर ख़तरा है। आप हिंदू-मुस्लिम में नैरेटिव में बहुजनों को फँसा गये? क्यों? क्या आपको ये नहीं पता कि असली लड़ाई विचारधारा की है? आप तो इसके अगुआ रहे हैं, फिर ये क्यों किया?
दिलीप मंडल जी! आप पर लिखना तो नहीं चाह रहा था, क्योंकि आपसे एक बेहद आत्मीय संबंध रहा है। आपने हम जैसों को बहुत कुछ दिया। मगर ये उसी विचारधारा की हमारी साझा यात्रा का सबक़ है कि विचारधारा से बड़ा निजी रिश्ता नहीं है। मेरी जगह आप होते, तो आप भी यही करते।
हम आपके इस क़दम के ख़िलाफ़ खड़े हैं। सामाजिक न्याय की वैचारिक लड़ाई को बीजेपी-RSS के ट्रैप में हम फँसने नहीं देना चाहते। बाक़ी सबसे बहस सम्भव है, मगर इनसे कत्तई नहीं। लाठी मारने और गोली मारने वालों में फ़र्क़ होता है। आप तो ये फ़र्क़ ही मिटा बैठे। आप जवाब दें तो बताइएगा, क्या मिला आपको? क्यों किया ये? बहुजन समाज के लोगों! भाजपा-RSS के हाथों इस्तेमाल होने वाली मुहरें न बनना, वरना दिलीप मंडल बना दिये जाओगे।
(यह लेख डॉक्टर लक्ष्मण यादव के एक्स (ट्विटर) से उठाया गया है)