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देश की संसद में 40 मुसलमान सांसद है लेकिन तानाशाही और ज़ुल्म के शिकार हाजी शहज़ाद के समर्थन में बोलने से सब डर रहें है

देश की संसद में 40 मुसलमान सांसद है जिसमें 24 लोकसभा तो 16 राज्यसभा में है, लोकसभा में कांग्रेस के 9 TMC के 5 और समाजवादी पार्टी के 4 सांसद है, आप सभी 40 सांसदों की प्रोफाईल विज़िट कीजिए और देखिये कि छतरपुर में 20 करोड़ ₹ की कोठी और करोड़ो की गाड़ियां तोड़े जाने का कितने सांसदों ने विरोध किया है, कितने सांसदों ने तानाशाही से हुए ज़ुल्म का शिकार हाजी शहज़ाद के समर्थन में बोलते हुए इस कार्रवाई को असंवैधानिक करार दिया है ? कितने सांसदों ने सवाल करते हुए पीड़ित के साथ अपनी हमदर्दी ज़ाहिर की है? इकलौते सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ही दिखाई दिये जिन्होंने हर बार की तरह इस बार भी बुलडोज़र का पुरज़ोर तरीक़े से विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट जाने का फ़ैसला किया, इकलौते इमरान प्रतापगढ़ी ही दिखाई दे रहे जिनके इस मामलें पर लगातार बयान आ रहे है!

आप 39 मुस्लिम सांसदों की टाइम लाइन की तलाशी लीजिए, अभी तक किसी भी मुस्लिम सांसद ने मुसलमान और उनके टूटते ख़्वाब और मकानों पर एक शब्द भी नही लिखा है, मुसलमान कोटे से कांग्रेस ने लगातार दूसरी बार नसीर हुसैन को राज्यसभा में भेजा है, वो दूसरी बार के सांसद है आज मैं उन्हें मेंशन कर रहा हूँ तो शायद कुछ लोगों को पहली बार पता चल रहा होगा कि कोई राज्यसभा में नासिर हुसैन नाम का भी सांसद है जिसे दूसरी बार राज्यसभा भेजा गया है, आपको ख़बर इसलिए नही है क्योंकि इन्होंने अपनी टाइम लाइन या मीडिया में या किसी भी तरह के बयान में आज तक मुसलमानों के लिए एक शब्द तक नही बोला है, ये साहब चुपके से मुस्लिम कोटे से INC के राज्यसभा में बैठे हुए है लेकिन मुसलमानों के नाम पर साहब को सांप सूंघ जाता है, आप सवाल कीजिए पूर्व केंद्रीय मंत्री व वर्तमान में CWC के सदस्य सलमान खुर्शीद साहब से कि ” साहब आप तो सीनियर नेता होने के साथ साथ सीनियर एडवोकेट भी है, आप चाहते तो अब तक मुसलमानों से जुड़े दर्जनों मामलों को राहुल गांधी की टेबल और सुप्रीम कोर्ट के कटघरे में ले जा सकते थे पर आपकी चुप्पी पार्टी की नज़रों में आपको क़ैद करके मार रही है, आप ग़ुलाम बन रहे है इसलिए कांग्रेस मुसलमानों पर चुप रहती है”

यूपी ने इस बार 5 बार मुस्लिम सांसद दिये है जिसमें ग़ाज़ीपुर,  सहारनपुर, कैराना, संभल, रामपुर से बनने वाले सांसद भी बुलडोज़र पर चुप है, सोशल मीडिया पर चर्चे थे कि पढ़े लिखे सांसद आ रहे है संसद को हिलाकर रख देंगे, सुनो मुसलमानों इन माननीयों से अभी तक 2 शब्द लिखने के लिए मोबाईल तक नही हिल पा रहा है और आप ख़्वाब देख रहे थे संसद हिलाने के, धुबरी से बदरुद्दीन अजमल को 10 लाख से अधिक वोटों से हराकर रकीबुल हसन संसद पहुंचे तो तमाम मुसलमानों ने उनकी जीत की सिर्फ़ इसलिए ख़ुशी मनाई कि वो 1 मिलियन यानी भारी संख्या में वोटों से जीते है, क्या हुआ इस खुशी का? भले रकीबुल 10 लाख की जगह 10 वोटों से जीतकर संसद पहुंचते लेकिन कमसे कम मुसलमानों के मामलों में अपने सिले हुए लबों से धागा तोड़कर बोलते तो अपनी भी ख़ुशी का ठिकाना नही रहता , ओवैसी साहब ने भी अभी तक छतरपुर में चले बुलडोज़र और बेबुनियादी कार्रवाई पर एक शब्द तक नही बोला है, पोस्ट लिखे जाने तक कुछ बोल गये हो तो माफ़ी चाहूंगा!

मेरा सीधा मक़सद ये है कि देश मे जितने भी मुस्लिम सांसद है सवाल उनसे होने चाहिए, उनको बताना चाहिए कि जब आपकी पार्टी आपके साथ भेदभाव करती है या करेगी तो हम ही है जो आपके समर्थन में बोलकर उन पार्टियों को झुकने के लिए मज़बूर करते है या करेंगे , लेकिन आप मुसलमान कोटे और वोटों से सांसद बनकर अपने दलों के राष्ट्रीय अध्यक्षों की जी हुज़ूरी में लगे है, आपने अपना वज़ूद दिखाना बंद करके ग़ुलामी की राह को पकड़ लिया है ये ही वजह है कि मुसलमानों के साथ जब भी कोई मामला होता है तो मुसलमान को अपने समर्थन में बुलवाने के लिए भीख की तरह बयान मांगने पड़ते है और भीख मांगने के बाद भी बयान तक नही मिल पाते है , क्योंकि आपकी पार्टियों के अध्यक्षों को मालूम है कि हमारी पार्टी में जो मुसलमान नेता है उन्हें हमसे कोई शिकायत नही आम मुसलमान से क्या लेना देना, सबसे पहले मुस्लिम सांसदों को बोलने के लिए मज़बूर किया जाये उन्हें एहसास कराया जाये कि मुसलमानों के मामलों पर इकट्ठा होकर बोलने की बेहद आवश्यकता है ,आप बोलेंगे तो आपकी पार्टियों पर प्रेशर बनेगा और एक दिन वो भी हर एक मामलें पर बोलने के लिए मज़बूर होंगी !

मुझे मालूम है मेरी इस पोस्ट के बाद कई मुस्लिम सांसदों के फ़ोन आने वाले है जिनके फ़ोन नही आयेंगे वो अपने समर्थकों से गालियां लिखवाएंगे, इस बार हम भी तैयार है, आप गालियां दिलवायेंगे दिलवाइये ,लेकिन हम भी आपको प्यार से आपकी ताक़त का एहसास करायेंगे कि आप बहुत कुछ है लेकिन आप अपने सरदार को खुश करने के लिए अपना वज़ूद खो चुके है!

(यह लेखक के अपने विचार हैं लेखक ज़ाकिर अली त्यागी पत्रकार हैं)

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