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दलित इंजीनियर से मारपीट के आरोपी भाजपा कार्यकर्ता का जमानत के बाद हुआ ‘हीरो’ जैसा स्वागत, वीडियो वायरल

उत्तर प्रदेश में दलित सरकारी अधिकारी से कथित मारपीट के एक मामले में जमानत पर रिहा हुए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) कार्यकर्ता मुन्ना बहादुर सिंह का समर्थकों द्वारा किए गए भव्य स्वागत ने नया विवाद खड़ा कर दिया है।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय से जमानत मिलने के बाद 13 दिसंबर 2025 को मऊ जिला जेल से बाहर आते ही सिंह को माला पहनाकर काफिले के रूप में बलिया ले जाया गया, जिसके वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गए।

इस घटनाक्रम को लेकर विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों ने कड़ी आपत्ति जताई है और इसे जाति आधारित हिंसा के मामलों में राजनीतिक संरक्षण का उदाहरण बताया है।

मामला 23 अगस्त 2025 का है, जब बलिया जिले में उत्तर प्रदेश विद्युत निगम लिमिटेड के अधीक्षण अभियंता लालजी सिंह के कार्यालय पर कथित तौर पर हमला किया गया था। आरोप है कि मुन्ना बहादुर सिंह 15–20 लोगों के साथ कार्यालय में घुसे और दलित अधिकारी के साथ मारपीट की।

घटना का एक वीडियो भी सामने आया था, जिसमें आरोपी अधिकारी को चप्पल से पीटते, घूंसे मारते और जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करते हुए नजर आए। बाद में कार्यालय के कर्मचारियों ने बीच-बचाव कर अधिकारी को बचाया।

पीड़ित इंजीनियर लालजी सिंह ने मीडिया को बताया कि हमला पूरी तरह से अकारण था। उनके अनुसार, हमलावरों ने किसी बिजली समस्या या शिकायत का जिक्र किए बिना ही गाली-गलौज और मारपीट शुरू कर दी थी।

वहीं, मुन्ना बहादुर सिंह ने आरोपों से इनकार करते हुए दावा किया कि वह गांवों में लंबे समय से चली आ रही बिजली कटौती की समस्या को लेकर गए थे। उनका कहना है कि इंजीनियर ने उन पर “नेतागिरी” करने का आरोप लगाया, कॉलर पकड़ा और इसी से विवाद बढ़ गया।

पीड़ित की शिकायत के आधार पर पुलिस ने आरोपी के खिलाफ अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम सहित कई धाराओं में मामला दर्ज किया था, जिसके बाद सिंह को गिरफ्तार किया गया।

गिरफ्तारी के बाद भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं ने उनके समर्थन में रैलियां निकाली थीं। जमानत मिलने के बाद हुए स्वागत समारोह में कई स्थानीय नेता भी मौजूद रहे। एक पूर्व विधायक ने सोशल मीडिया पर इसे “झूठा मामला” बताते हुए अदालत के फैसले का स्वागत किया।

आरोपी के स्वागत के वीडियो सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। कई लोगों ने सवाल उठाया है कि दलित अधिकारियों से जुड़े मामलों में आरोपियों को इस तरह खुलेआम महिमामंडित किया जाना न्याय व्यवस्था और सामाजिक समानता के लिए खतरनाक संकेत है।

फिलहाल मामला अदालत में विचाराधीन है। कानूनी जानकारों का कहना है कि जमानत मिलना बरी होने के समान नहीं होता और मुकदमे की सुनवाई अभी जारी है।

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