शर्जील से जब मेरी मुलाक़ात हुई तो मुझे जिस चीज़ ने सबसे ज़्यादा प्रभावित किया वह थी उसकी फ़कीरी. हवाई चप्पल बिखरे बाल आम सा कुर्ता पायजामा और बदन में तेज़ी के ऐसा जैसे ज़हन में हर वक़्त यह हो के वक़्त कम है।
ऐसे फ़कीर लोग ही दूसरे के लिए सोच सकते हैं। यूरोप की रिसर्च छोड़ो जिसको 40 लाख सालाना इण्डिया में सैलरी का ऑफऱ हो उसको छोड़ देना ,फिर इतिहास पढ़ने चले जाना ।
यह तो बताता है के बन्दा फ़कीर है ,पैसे की कोई अहमियत उसके लिए नहीं है।
शर्जील का भाई बता रहा है के आज तक शर्जील ने अपनी पूरी ज़िन्दगी में अपने लिए एक कपड़ा नहीं ख़रीदा। भाई का पहन लिया दोस्त का पहन लिया काम चल गया।
लाखो की सैलरी पर काम भी किया ,JNU में भी पढ़ने के लिए 30 हज़ार महीने मिलते थे ,ख़रीदे तो सिर्फ़ किताब,10ओ ज़बान सीख डाले ताकि जानकारी मूल श्रोत से मिले।
छोटा भाई ख्याल रखता है शर्जील के कपड़े का ,और कपड़ा भी पहनेगा क्या अदद कुर्ता पायजामा।
भाई बता रहा है के बचपन से यह फ़ितरत रही के रिक्शेवाले सब्ज़ी वाले को 30 की जगह 50 दे दिया। स्कूल में माँ से खुद के टिफ़िन के लिए मिले पैसे को फ़कीर को दे दिया।
आज हम CAA /NRC पर प्रोटेस्ट कर रहे हैं पर इसमें से कौन असम का बारे में सोच रहा, क्या सिर्फ़ अपनी नहीं सोच रहे हम सब ?
शर्जील जेल में है इसलिए के उसने आसाम की सोचा जो दूसरे नहीं सोच रहे। आसाम में आने वाले ज़ुल्म से बचाने की क्या तरकीब लगायी जाए ,इस पर परेशान हो गया। यह तो वही हमदर्दी है जिसमें एक बच्चा अपना टिफ़िन अपने से ज़्यादा भूखे को दे देता है।
कोई उसकी सुने या ना सुने ,कोई उसकी माने या ना माने उसने कोशिश तो की है, उसका तकरीरों से यह कहना के एक को भी डिटेंशन सेंटर में ले जाया जाने लगे तो मिल के डिटेंशन सेंटर को जला दो। यह दिखाता है के एक इंसानी ज़िन्दगी पर भी ज़ुल्म ना होने पाए इसके लिए वह स्कॉलर आईडिया सोच रहा था।
मगर आज वह खुद डिटेंशन में है , किसको फर्क पड़ रहा है ? क्या सभी मिल कर जेल तोड़ रहे हैं , तोड़ना छोड़ो ,बोलना तक ज़रूरी समझते हैं?
पर जिसमें फ़कीरी है उसका क्या ले भी लोगे? जान ही ना जिसकी वैसे भी ऐसे लोगों को कभी फ़िक्र नहीं होती।
(यह लेख Shadan Ahmad ने लिखा हैं)