पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या कर दी गई है. वे छत्तीसगढ़ के बस्तर में एक सड़क निर्माण में हो रहे भ्रष्टाचार पर रिपोर्ट कर रहे थे. बताया गया है कि ठेकेदार ने उनकी हत्या करवाई और उनका शव अपने यहां सेप्टिक टैंक में चुनवा दिया।
राम चंद्र छत्रपति, जिनकी हत्या के दोषी राम रहीम जेल में सज़ा काट रहे हैं. उनकी हत्या के 17 साल बाद उन्हें इंसाफ़ मिल पाया था. मध्य प्रदेश में 35 साल के पत्रकार संदीप शर्मा की हत्या रेत माफ़िया के लोगों ने की थी. उन पर डंपर ट्रक चढ़ा दिया गया।
उत्तर प्रदेश में शुभम मणि त्रिपाठी की हत्या भी रेत माफ़िया ने की. उन्होंने तो पहले ही फ़ेसबुक पोस्ट लिख कर अपनी जान को ख़तरा बताया था।
पर ये लोग बड़े चैनल में काम नहीं करते, सरकारों के लिए काम नहीं करते, इसलिए इनको क्यों सरकार सिक्योरिटी देगी! इनके तो मुकदमे ही अदालतों में सालों साल लटके रहेंगे।
बिहार के सुभाष कुमार महतो, महाराष्ट्र के शशिकांत वारिशे.. कितने स्थानीय पत्रकारों की हत्या ड्यूटी निभाते हुए की गई.
ये समझ लीजिए कि पत्रकार किसी सरकार को नहीं चाहिए. वरना किसी माफ़िया की हिम्मत ही नहीं होती. अगर सरकारों को भ्रष्टाचार से परहेज़ होता तो माफ़िया ही ना बनते।
अगर जनता को पत्रकार चाहिए, तो मुकेश चंद्राकर और उनके जैसे सभी पत्रकारों के लिए इंसाफ़ माँगिए।
(यह लेख सर्वप्रिया सांगवान के एक्स एकाउंट से उठाया गया है)