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दिल्ली चुनाव फासीवाद और इस्लामोफोबिया को रोकने एवं राज्य के अत्याचारों को वोट से जवाब देने का मौका है: सैफुर रहमान

दिल्ली विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां अब थम चुकी हैं और 5 फरवरी, बुधवार को मतदान होना है। राजनीतिक दल अपने पक्ष में वोटों को बदलने के लिए जी-जान से जुटे हैं, जबकि आम लोग अपने परिवार और परिचितों से सलाह-मशविरा कर अंतिम फैसला कर रहे हैं।

इस मौके पर दिल्ली के मुसलमानों को यह समझना होगा कि “वोट सिर्फ किसी को जिताने या हराने के लिए नहीं दिया जाता, बल्कि इसका इस्तेमाल रणनीतिक रूप से करके विभिन्न चुनौतियों का सामना किया जाता है और एक मजबूत राजनीतिक संदेश दिया जाता है।

*हमारे सामने तीन बड़ी चुनौतियाँ

*1 बीजेपी-आरएसएस के एजेंडे को रोकना
सबसे बड़ी चुनौती भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के फासीवादी एजेंडे को और तेज़ होने से रोकना है। अगर जज़्बात से ऊपर उठकर देखा जाए, तो संघ परिवार का असली मकसद हर उस भारतीय मुस्लिम के लिए खतरा है जो तौहीद और रिसालत पर पूरा यकीन रखता है।

यह सही है कि बाकी राजनीतिक दल भी अपने फायदे के लिए मुसलमानों की अनदेखी कर सकते हैं, लेकिन वे हमारे अकीदे, हमारे वजूद और देश के लोकतंत्र के लिए संघ परिवार जितने खतरनाक नहीं हैं।

*2. हमारी राजनीतिक अहमियत को बनाए रखना
आज देशभर में मुसलमानों की राजनीतिक अहमियत लगभग खत्म कर दी गई है। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (AAP) ने मुस्लिम वोटरों को सिर्फ एक “गुलाम वोट बैंक” समझ लिया है।

-2019 में CAA विरोधी प्रदर्शनों पर केजरीवाल का रुख मुस्लिम-विरोधी रहा।
-2020 दिल्ली दंगों के दौरान AAP मूकदर्शक बनी रही।
-कोरोना काल में तबलीगी जमात को निशाना बनाकर इस्लामोफोबिया को हवा दी गई।
-इस बार के चुनाव प्रचार में केजरीवाल ने किसी भी मुस्लिम-बहुल विधानसभा क्षेत्र में जाने से परहेज किया।

  1. हमारे मुद्दों को मुख्यधारा की राजनीति से मिटा दिया गया है
    आज देश की चुनावी राजनीति में हमारे सवाल और मुद्दे पूरी तरह गायब कर दिए गए हैं। हमारे खिलाफ राज्य के जुल्म, हमारे राजनीतिक क़ैदि,शिक्षा और आर्थिक समस्याएं,और हमारे इलाकों की तरक्की—इन पर कोई चर्चा नहीं होती। ऐसा लगता है जैसे “हमें तीसरे दर्जे का नागरिक बना दिया गया हो”।

*दिल्ली चुनाव में हमारे लिए क्या मौके हैं?
इन चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए एक संगठित और समझदारी भरी रणनीति अपनाने की जरूरत है:

*1. बीजेपी को रोकना
दिल्ली में बीजेपी को रोकने के लिए AAP को 50 से कम सीटों पर सिमटने से बचाना होगा। जहां भी आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच करीबी मुकाबला हो, वहां बीजेपी को हराने के लिए AAP को वोट देना होगा।

*2. एक मज़बूत सेक्युलर विपक्ष खड़ा करना
कुछ विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस मजबूत स्थिति में है, जैसे बाबरपुर, कालकाजी, कस्तूरबा नगर और जंगपुरा। इन सीटों पर कांग्रेस को मज़बूत कर दिल्ली विधानसभा में एक ठोस विपक्ष खड़ा किया जा सकता है, जो मुसलमानों के मुद्दों पर सरकार पर दबाव बना सके।

*ओखला, मुस्तफाबाद और करावल नगर में अपनी आवाज मज़बूत करें
दिल्ली में बीजेपी को रोकने के साथ-साथ हमें अपनी खुद की राजनीतिक ताकत भी बनानी होगी और अपनी लड़ाई को मजबूती देनी होगी।

-ओखला और मुस्तफाबाद: ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने ओखला से शिफ़ाउर्रहमान और मुस्तफाबाद से ताहिर हुसैन को उम्मीदवार बनाया है। ये दोनों CAA विरोधी प्रदर्शनों में भाग लेने के कारण जेल में बंद हैं।
-करावल नगर: इस सीट पर बीजेपी के विवादित नेता कपिल मिश्रा के खिलाफ सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) के हाफ़िज़ मोहम्मद हाशिम मलिक उम्मीदवार हैं।

यह चुनाव सिर्फ किसी को जिताने-हराने का नहीं है, बल्कि यह तय करने का है कि क्या हम अपनी क़ौम के लिए कुर्बानी देने वालों के साथ खड़े हैं या नहीं।और अपनी लड़ाई को राजनीतिक मजबूती देने को तैयार हैं या नहीं?

*अब फैसला आपके हाथ में है!
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था, “EVM का बटन ऐसे दबाओ कि झटका शाहीन बाग तक जाए!”
अब दिल्ली के मुसलमानों की बारी है कि वे वोट के जरिए एक ताकतवर संदेश दें।

-जैसे असम में जेल में बंद अखिल गोगोई को जिताया गया**
-जैसे पंजाब में अमृतपाल सिंह को निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जिताया गया

उसी तरह, ओखला, मुस्तफाबाद और करावल नगर में अपने संघर्षशील नेताओं को जिताकर इस्लामोफोबिया और राज्य के अन्याय को करारा जवाब दें। साथ ही, देशभर में एक स्वतंत्र मुस्लिम और बहुजन राजनीतिक नेतृत्व खड़ा करने की लड़ाई को भी मज़बूती दें।

अब वक्त है कि हम अपनी सियासी ताकत को पहचानें और अपने भविष्य का फैसला खुद करें!

(यह लेखक के अपने विचार है लेखक सैफुर-रहमान इंसाफ़ टाइम्स के चीफ़ एडिटर है)

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