दिल्ली में हाल ही में वामपंथी छात्र संगठनों से जुड़े कई छात्र कार्यकर्ताओं के साथ कथित रूप से की गई हिरासत में यातना, अवैध अपहरण और यौन हिंसा की धमकियों के खिलाफ जामिया मिल्लिया इस्लामिया के नौ छात्र संगठनों ने एक संयुक्त बयान जारी कर दिल्ली पुलिस की तीखी आलोचना की है।
बयान में कहा गया है कि 9 से 11 जुलाई के बीच दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने भगत सिंह छात्र एकता मंच (BSCEM), Forum Against Corporatization and Militarization, और अन्य जनसंगठनों से जुड़े सात छात्र कार्यकर्ताओं को बिना किसी वारंट और कानूनी प्रक्रिया के उठाया।
इन कार्यकर्ताओं में गुरकीरत, गौरव, गौरांग, बादल, एहतमाम-उल-हक़, और सम्राट सिंह शामिल हैं। सभी कार्यकर्ताओं ने हिरासत के दौरान अत्यंत क्रूर व्यवहार का आरोप लगाया है।
छात्र संगठनों का दावा है कि हिरासत में कार्यकर्ताओं को नंगा किया गया, पीटा गया, बिजली के झटके दिए गए और उनके साथ अपमानजनक व्यवहार किया गया, जिसमें सिर को शौचालय में डुबोना भी शामिल था।
महिला कार्यकर्ताओं को रॉड से बलात्कार की धमकी दी गई — जिसे यौन यातना माना जाता है। बयान में यह भी कहा गया कि सम्राट सिंह, जो एक मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं, उन्हें हरियाणा के यमुनानगर स्थित उनके घर से बिना स्थानीय पुलिस की जानकारी के उठा लिया गया। यह दिल्ली पुलिस के अधिकार क्षेत्र के बाहर की कार्रवाई थी।
जहां छह कार्यकर्ताओं को 16 से 18 जुलाई के बीच रिहा कर दिया गया, वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज के दर्शनशास्त्र के छात्र ‘रुद्र’ अभी भी लापता हैं।
मकतूब मीडिया कि रिपोर्ट्स के अनुसार, रुद्र ने 18 जुलाई की सुबह हावड़ा–नई दिल्ली दूरंतो एक्सप्रेस से यात्रा शुरू की थी और सुबह 7:40 बजे अपने मित्र को कॉल कर बताया कि वह नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंच गया है। इसके बाद से उनका कोई पता नहीं चला है।
छात्र संगठनों ने रुद्र के लापता होने को भी दिल्ली पुलिस की अवैध कार्रवाई से जोड़ा है और तुरंत उनकी सुरक्षित वापसी की मांग की है।
जामिया के छात्रों ने बयान में लिखा:
“हमने जामिया मिल्लिया इस्लामिया में साफ़ देखा है कि कैसे प्रशासन और पुलिस के ज़रिए छात्रों को निशाना बनाया जाता है — चाहे वो फीस बढ़ोतरी के खिलाफ बोलना हो, हॉस्टल मुद्दे उठाना हो, या किसी भी तरह का विरोध करना हो। इसके बाद छात्रों को सस्पेंड किया जाता है, निष्कासित किया जाता है या उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाती है।”
छात्र संगठनों ने राज्य पर आरोप लगाया कि वह छात्रों की आवाज़ को दबाने के लिए फासीवादी तरीकों का इस्तेमाल कर रहा है और लोकतांत्रिक असहमति को अपराध की तरह पेश कर रहा है।
मानवाधिकार संगठनों की प्रतिक्रिया
राज्य दमन के खिलाफ अभियान (Campaign Against State Repression – CASR) ने एक अलग बयान में कहा कि ये कार्रवाइयाँ भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 और 22 के घोर उल्लंघन हैं।
CASR ने कहा:
“ना तो गिरफ्तारी मेमो तैयार किए गए, ना परिवारों को सूचित किया गया, ना ही बंदियों को वकीलों से मिलने दिया गया। यह सीधे तौर पर D.K. Basu बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (1997) सुप्रीम कोर्ट के निर्णय और भारतीय न्याय संहिता (BNS 2023) के तहत आपराधिक अपराध हैं।”
बयान में हिरासत में दी गई यातनाओं को क्रिमिनल इंटिमिडेशन, वॉलेंटरी ग्रिवस हर्ट, किडनैपिंग, और अनलॉफ़ुल डिटेंशन के अंतर्गत आने वाले गंभीर अपराध बताया गया है। साथ ही, SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम और मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के उल्लंघन की भी बात की गई है।
छात्र समूहों और मानवाधिकार संगठनों ने निम्नलिखित मांगे रखी हैं:
- रुद्र की तत्काल सुरक्षित वापसी
- सभी अवैध रूप से हिरासत में लिए गए छात्रों की रिहाई
- जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों पर आपराधिक मामला दर्ज हो
- राज्य द्वारा छात्र आंदोलनों के दमन पर स्वतंत्र न्यायिक जांच बैठाई जाए