गुजरात हाईकोर्ट ने शुक्रवार को अहमदाबाद के सारसपुर इलाके में स्थित 400 साल पुरानी मंचा मस्जिद के आंशिक विध्वंस पर रोक लगाने से इंकार कर दिया। यह मस्जिद साबरमती रेलवे स्टेशन के पास सड़क चौड़ीकरण परियोजना के लिए चिह्नित की गई है।
मस्जिद के मुत्तवल्ली ने इस फैसले के खिलाफ अपील दायर की थी। इससे पहले 23 सितंबर को सिंगल जज बेंच ने अहमदाबाद म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन (AMC) के आदेश को सही ठहराया था।
एएमसी ने नोटिस जारी कर मस्जिद ट्रस्ट को परिसर का एक हिस्सा खाली करने का निर्देश दिया था, ताकि सड़क चौड़ीकरण का काम हो सके।
ट्रस्ट का तर्क था कि मस्जिद एक पंजीकृत वक्फ संपत्ति है और ऐतिहासिक धरोहर का महत्व रखती है। ऐसे में इसका आंशिक विध्वंस धार्मिक स्वतंत्रता और संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन होगा।
ट्रस्ट ने यह भी आरोप लगाया कि सुनवाई की प्रक्रिया म्यूनिसिपल कमिश्नर की जगह डिप्टी एस्टेट ऑफिसर ने पूरी की, जो गुजरात प्रांतीय नगर निगम अधिनियम (GPMC Act) के तहत नियमों के खिलाफ है।
वहीं एएमसी ने अदालत में कहा कि सभी प्रक्रियाओं का पालन किया गया है और सड़क चौड़ीकरण का फैसला सार्वजनिक हित में लिया गया है। इसमें केवल मस्जिद ही नहीं, बल्कि कई मंदिर, मकान और व्यावसायिक प्रतिष्ठान भी प्रभावित हो रहे हैं।
न्यायमूर्ति ए.एस. सुपेहिया और न्यायमूर्ति एल.एस. पिरज़ादा की डिवीजन बेंच ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि मस्जिद की मुख्य संरचना नहीं तोड़ी जाएगी और सड़क चौड़ीकरण योजना केवल धार्मिक स्थलों तक सीमित नहीं है। अदालत ने पाया कि सिंगल जज का आदेश विधिसंगत है और उसमें कोई खामी नहीं है, इसलिए अपील खारिज की जाती है।
मंचा मस्जिद मुस्लिम समुदाय के लिए ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व रखती है। राजस्व अभिलेखों में इसका नाम दर्ज है और यह समय-समय पर पुनर्निर्मित और मरम्मत होती रही है। 1950 के बाद इसे “मंसा मस्जिद ट्रस्ट” के रूप में पंजीकृत किया गया था।
गौरतलब है कि 2024 के अंत में गुजरात के गिर सोमनाथ ज़िले में भी कई मुस्लिम धार्मिक स्थलों, कब्रिस्तानों और घरों को तोड़ा गया था, जिस पर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के उल्लंघन का आरोप लगा था। उस समय औलिया-ए-दीन कमेटी ने याचिका दाखिल कर इस कार्रवाई को अवैध और सामुदायिक संपत्ति अधिकारों पर हमला बताया था।